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कटु सत्य…
लोकतंत्र नाम का, यह राजतंत्र है
बाद आजादी के राज करने का यह मूलमंत्र है,
जन हित की कह जननेता कहलाते हैं
चुनते ही जनता द्वारा राजनेता बन जाते हैं,
मकां किराए पर ले गुज़ारते जीवन करदाता
और नेता मुफ्त बंगलों का लुफ़्त उठाते हैं,
होता गरीबों का ऐसा घर है रौशनी से
ज्यादा जिनमें बिजली के बिल का डर है,
चुभती घमुरियाँ ले बैशाख-ज्येष्ठ की
बच्चे कितने ही, बिन पंखे सो जाते हैं,
और ५-६ अंको की तनखा वाले नेता
मुफ्त में बिजली पाते हैं,
पसीजता पसीना ताप से करदाता का जब
तब ये ए.सी में आराम फरमाते हैं,
साधारण ही थे पहले जो
बन नेता अत्यंत महत्वपूर्ण कहलाते हैं,
चलते थे साथ कल तक बिन भय जो
उनके लिए आज मतदाता रोके जाते हैं,
भिन्न-भिन्न है पार्टी इनकी किंतु
सब एक ही बात दोहराते हैं,
हम साथ है जनता के
सब जन का हित चाहते हैं,
ध्येय जन विकास ही है सबका जब
क्यों नहीं सब एक हो जाते हैं,
छल से भरी हर राजनीतिक पार्टी
कोई अपनी नहीं सब पराई है,
देश के विकास की ख़ातिर नहीं
ये वर्चस्व की लड़ाई है,
गर है हितैषी सच मे देश के
बॉर्डर पर जाकर दिखलाएं,
लहू बहा देश की खातिर जान दे
शहीद कहलाएं,
देश हित में बलिदान हो
जो सैनिक जान गवाते हैं,
चिताओं पर उनकी सेंकते सत्ता की रोटी
ये नेता दिखावे के अश्रु बहाते हैं,
जन-जन के प्यारे है जब
किस बात से फिर भय खाते हैं,
क्यू संग जेड सुरक्षा ले
जनता के मध्य जाते हैं,
चिंतन में मेरे
ऐसे विचार आते हैं,
अपनी कथनी-करनी ज्ञात इन्हें सब
इसलिए तो ये घबराते हैं,
महज वाहन चालक लाइसेंस की खातिर,
आठवीं पास की अनिवार्यता लाते हैं,
किंतु बिन डिग्री के भी लोग यहाँ
शिक्षा मंत्री बन जाते हैं,
शिक्षित चिकित्सकों को
फटकार लगाते हैं,
नही ज्ञान चिकित्सा का जिनको
वो नेता स्वास्थ्य मंत्री कहलाते हैं,
पढ़े लिखे अधिकारियों से अपनी
जी हज़ूरी करवाते हैं,
शिक्षा कानून की ली नही जिस नेता ने
वो भी क़ानून मंत्री बन जाते है,
धर्मनिरपेक्षता,समानता लुप्त हो रही देश में
और मौसमी देशभक्त संविधान का राग दोहरातें है।
*गोपाल पाठक।
(वर्तमान परिप्रेक्ष्य के ध्यानान्तर्गत उक्त पंक्तियाँ पत्रकार गोपाल पाठक की स्वतंत्र लेखनी से)