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समन्वय समिति ने किया कर्रेगुट्टा में घातक नक्सल विरोधी अभियान की निंदा

नक्सल विरोधी अभियान 'ऑपरेशन संकल्प' की कड़ी निंदा, सामूहिक हत्याओं की स्वतंत्र जांच। की मांग

रायपुर hct : शांति समन्वय समिति (सीसीपी) ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा पहाड़ियों में 21 दिन तक चले नक्सल विरोधी अभियान ‘ऑपरेशन संकल्प’ की कड़ी निंदा की है। समिति ने इस अभियान में हुई सामूहिक हत्याओं की स्वतंत्र जांच की मांग की है, जिसमें 31 लोगों की मौत की बात कही गई है। सीसीपी ने इसे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन करार देते हुए कहा कि इस अभियान में पारदर्शिता की कमी और मृतकों के शवों के साथ अमानवीय व्यवहार चिंता का विषय है।

14 मई को सीआरपीएफ के महानिदेशक और छत्तीसगढ़ के डीजीपी की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस अभियान को ‘सफल’ बताया गया, लेकिन सीसीपी ने कई गंभीर सवाल उठाए। समिति ने कहा कि मृतकों के शवों को पांच दिन बाद सड़ती-गलती हालत में पेश किया गया, जिससे संदेह पैदा होता है कि सुरक्षा बलों ने संदिग्ध माओवादियों को हिरासत में लेने या कानूनी गिरफ्तारी का कोई प्रयास नहीं किया। इसके अलावा, प्रत्येक शव के लिए भारी इनामी राशि का दावा और 20,000 से अधिक सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद अभियान की कमान को लेकर अस्पष्टता चिंताजनक है।

विरोधाभासी बयान और पारदर्शिता की कमी

छत्तीसगढ़ के कर्रेगुटा में बीते एक सप्ताह से सुरक्षाबलों के द्वारा माओवादियों के घेरे रखने की बात मीडिया सुर्ख़ियों में रही और “ऑपरेशन संकल्प” के तहत मुठभेड़ में 31 लोगों के मारे जाने की जानकारी सामने आई थी, चूँकि ठीक इसी दरमियान देश की सेना ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर धावा बोलकर उसके 9 ठिकानों को जमींदोज कर दिया, प्रदेश की यह बड़ी घटना स्ट्रीम लाइन मीडिया” में सुर्खियां बटोरने से विफल रहा। मगर एक बात जो घूटी-घूटी सी है वह यह कि…
जहाँ प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने 10 मई को मीडिया से मुखातिब होकर कहा कि कर्रेगुटा के पहाड़ी में मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने 22 से ज्यादा नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि की, घोर आश्चर्य कि प्रदेश के नक्कारा गृहमंत्री विजय शर्मा; इस बात को सिरे से ख़ारिज करते हुए कह रहे हैं कि बस्तर में कोई भी “संकल्प” नामक ऑपरेशन नहीं चलाया जा रहा है और मौत के आंकड़ों को भी झुठलाते नजर आ रहे हैं… ! बस्तर में कोई भी “संकल्प” नामक ऑपरेशन नहीं चलाया जा रहा है और मौत के आंकड़ों को भी झुठलाते नजर आ रहे हैं… !


पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस अभियान पर सवाल उठाए, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट हटाने, अधिकारियों के परस्पर विरोधी बयानों और पारदर्शिता की कमी की ओर इशारा किया। बघेल ने मृतकों की पहचान, उनकी संबद्धता और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तत्काल सार्वजनिक करने की मांग की है

युद्धविराम प्रस्ताव के बावजूद अभियान

सीसीपी ने इस अभियान के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह तब शुरू किया गया, जब सीपीआई (माओवादी) ने 28 मार्च को एकतरफा युद्धविराम (आत्मरक्षा को छोड़कर) की घोषणा की थी और शांति वार्ता के लिए सहमति जताई थी। इसके बावजूद, 21 अप्रैल को कर्रेगुट्टा पहाड़ियों को तीन सप्ताह तक घेर लिया गया। समिति ने इसे शांति प्रक्रिया को कमजोर करने की साजिश करार दिया।

अमानवीय व्यवहार और मानवाधिकार उल्लंघन

अभियान के दौरान क्षेत्र में भारी गोलाबारी और हेलीकॉप्टरों से हमले किए गए, जिससे स्थानीय आदिवासियों में दहशत फैल गई। अस्पताल में शवों की पहचान के लिए पहुंचे मीडियाकर्मियों को सड़ते-गलते और कीड़े पड़े शव दिखे, जिनमें 16 साल के किशोर भी शामिल थे। सीसीपी ने इसे जिनेवा संधि और अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (आईसीआरसी) के नियमों का उल्लंघन बताया।

सीसीपी की मांगें

  • सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों की अध्यक्षता में लोकतांत्रिक/मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की टीम द्वारा स्वतंत्र जांच।
  • नक्सल विरोधी अभियानों को आधिकारिक तौर पर गृहयुद्ध घोषित कर संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों की निगरानी में लाना।
  • मृतकों के शवों के साथ अमानवीय व्यवहार के लिए जिम्मेदार कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई।
  • ऑपरेशन कागार को तत्काल समाप्त कर युद्धविराम की घोषणा।
  • सीपीआई (माओवादी) के साथ शांति वार्ता शुरू कर आंदोलन से जुड़े मुद्दों का समाधान।

संपर्क :

  1. कविता श्रीवास्तव: +91 93515 62965
  2. क्रांति चैतन्य: +91 99122 20044
  3. डॉ. एमएफ गोपीनाथ: +91 79935 84903

शांति समन्वय समिति ने इस अभियान को आदिवासियों और स्वदेशी समुदायों के खिलाफ क्रूरता का प्रतीक बताया और सभी लोकतांत्रिक आवाजों से इसकी निंदा करने की अपील की।

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