रायगढ़।जिले में फोटोग्राफी एवं वीडियोग्राफी के लिए एक संस्था है, आरपीए यानी “रायगढ़ फ़ोटोग्राफ़ी एसोसिएशन”, जिसमें ज़िले भर के शहरी और ग्रामीण पेशेेेवर फ़ोटोग्राफ़र्स, वीडियोग्राफ़र्स सक्रिय रहकर अपने कार्य को बख़ूबी अंजाम देते हैं, मगर इस संस्था में कुछ शातिर और भ्रष्ट व्यवस्था के संरक्षण से उपजे एक घुसपैठिये ने पेशेवर लोगों के हक व अधिकार में डाका डाल रहा है।
रायगढ़ फोटोग्राफी एसोशिएशन में दक्ष लोगों के बीच असंतोष की चिंगारी; दावानल बनकर अब उस शातिर व्यक्ति और भ्रष्ट व्यवस्था को अपने चपेट में लेने को धधक उठा है।
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही, सो छनते-छनाते यह बात पत्रकारों तक भी पहुंची और उक्त शातिर नटवरलाल का पोल आखिरकार खुलकर *पर्दाफाश.इन के साथ *शोर.कॉम भी होने लगा।
रायगढ़ के जुझारू पत्रकार नीतिन सिन्हा ने “हाईवे क्राइम टाईम.इन” को जानकारी देते हुए बताया कि; हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान तथा सरकारी कार्यक्रमो, निर्वाचन कार्यो सहित 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय त्योहारों एवं चक्रधर समारोह तथा अनेक मंत्रियों-विधायकों के सरकारी दौरों सहित विभिन्न सरकारी आयोजनों में फोटोग्राफी का कार्य एक खास शख्स के द्वारा किया जाता है और इस शख्स का नाम है निशांत। आखिर कौन है यह निशांत….?
कलेक्टर बंगला के पास स्थित नटवर स्कूल में सरकारी शिक्षक के रूप में कार्य करने वाला यह निशांत, सैकड़ो स्कूली छात्रों का भविष्य गढ़ने के बदले मिलने वाली सैलरी के बावजूद बच्चों को पढ़ाने की बजाय सिर्फ अधिकारियों एवं नेताओ के इर्द-गिर्द फोटो खींचने वाले इस सेटिंगबाज गुरुजी पर तीन-तीन कलेक्टरों के कार्यकाल के बावजूद किसी भी कलेक्टर के द्वारा संज्ञान न लिया जाना किसी वृहद भ्रष्टाचार को आंख बंदकर बढ़ावा दिए जाने का संकेत है
क्या निशांत की नियुक्ति जनसपंर्क विभाग में बतौर फोटोग्राफर है या फिर उसके द्वारा नटवर स्कूल से फोटोग्राफी के लिए कोई आवेदन या अनुमति प्राप्त किया है ? यदि नही तो फिर विगत 3 कलेक्टरों के कार्यकाल से लगातार सरकारी कार्यक्रमो की फ़ोटोग्राफी में लगे निशांत को किसने अनुमति दी है ? घोर आश्चर्य की बात तो यह है कि क्या एक शासकीय शिक्षक का पीआरओ में बतौर फोटोग्राफर कार्य निर्वहन करना उचित है और उक्त शिक्षक को जिला प्रशासन द्वारा पदमुक्त क्यों नही किया जा रहा है ? यह सवाल अब जिले के “रायगढ़ फ़ोटोग्राफ़ी एसोसिएशन” ने उठाया है।
सवाल तो यह भी है कि, हालिया सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान क्रिटीकल फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की आड़ में लाखों रुपये की बिल-व्हाउचर प्रस्तुत करने वाले विवादित फोटोग्राफर को फिर से लोकसभा चुनाव के लिए गुपचुप तौर पर दोबारा जिम्मेदारी सौंपने का काम हो चुका है।
पारदर्शिता पूर्ण निर्वाचन सम्पन्न कराने का ढोल पीटने वाले निर्वाचन आयोग की ढोल पहले ही फट चुकी है और अब इस खुलासे के बाद संदेह का घना कुहासा भी छंट चुका है। विगत विधानसभा चुनाव के दौरान ही मतदाताओं को दिग्भ्रमित करने दर्जनों फर्जी उम्मीदवार को चुनाव में उतारने वाली बिचौलिया दिग्गज नेताओं के खिलाफ की गई शिकायत में यही चुनाव आयोग की खामोशी सारा भेद खोल दे रही है।
*सूत्र साभार।
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