“दूषित पेयजल से मौत” के मामले में सुपेबेड़ा पछाड़ने को आतुर ग्राम “फरसरा”….

डिगेंद्र नेताम
देवभोग
गरियाबंद। जिला के विकासखंड के सुपेबेड़ा जो “किडनी की बीमारी से मौत” के चलते आज अपनी पहचान देश-प्रदेश बना चुका है। यहाँ अब तक दूषित पेयजल के कारण 100 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी है।
अब ऐसा ही दूसरा स्थान मैनपुर के फरसरा ग्राम लेने जा रहा है, जहाँ की आबादी लगभग 150 की है जिनमें अधिकतर आदिवासी समुदाय से कमार-भुंजिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। यहाँ लोग सालों से दूषित पानी पीने को मजबूर हैं ! गड्ढे खोदकर बूंद-बूंद पानी को सहेज रहे हैं।
मैनपुर : पीने योग्य पानी के लिए सूखी नदी में गड्ढा खोदकर पानी सहेजते लोग…
वन विभाग की ओर से लोगों की घरों तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से नल-जल योजना के तहत लाखों रुपए बहाया (खर्च किया) गया लेकिन; उक्त योजना महज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई और आज तक किसी पानी नसीब नहीं हुई।
इस गांव में नदी, तालाब, कुँआ अब सूख चुके हैं। पीने की पानी के लिए ग्रामीणों ने नदी में एक गड्ढा खोद रखे हैं जहाँ इंसान के साथ जानवर भी अपनी प्यास बुझा रहे हैं। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण किस नरकीय जीवन बिताने को मजबूर हैं। वहीं वर्तमान सरकार “नरवा-गरुवा, घुरूवा बाड़ी” का नारा देकर निर्जीवों में प्राण फूंकने के निरर्थक प्रयास में लाखों बरबाद करने में मशगूल है !
यदि शासन-प्रशासन इस दिशा में अतिशीघ्र कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो वह दिन दूर नहीं जब मैनपुर के इस ग्राम में “मौत का तांडव” सुपेबेड़ा को भी पछाड़ दे और जिम्मेदार नुमाइंदे हाथ बांधकर सिर्फ श्रद्धाजंलि अर्पित करते इतिश्री कर दें…

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