मिस्टर इंडिया ऑफ ब्यूरोक्रेसी : जब फरारी ही योग्यता बन जाए…!
"फरार भी, अफसर भी : छत्तीसगढ़ के सिस्टम पर चढ़ा एक अदृश्य भ्रष्टाचार का कलेक्टर"

“1987 में आई थी ‘मिस्टर इंडिया’ — जिसमें अनिल कपूर एक घड़ी के सहारे गायब होकर भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाता था। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ‘रियल मिस्टर इंडिया’ मिला है — जो खुद भ्रष्टाचार की घड़ी पहनकर 30 सालों से सिस्टम को चकमा दे रहा है। फर्क बस इतना है, फिल्म वाला मिस्टर इंडिया गायब होकर न्याय लाता था, और ये वाला साहब… गायब रहकर मलाईदार कुर्सियाँ हथियाता रहा!”
रायपुर hct : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से एक ऐसा मामला सामने आया है, जो लोकतंत्र नहीं, “लुकतंत्र” को उजागर करता है। एक ऐसा व्यक्ति, जो अदालत की नजर में स्थायी वारंटी है, पुलिस के रजिस्टर में तीन दशकों से फरार है, लेकिन प्रशासन में एडिशनल कलेक्टर के पद पर तैनात होकर सरकारी ज़मीनें बाँट रहा है, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बन रहा है, और भू-माफिया के लिए नामांतरण की डील कर रहा है।
शिकायत के मुताबिक सरकारी सम्पत्ति, बस में तोड़ – फोड़ और पत्थरबाजी के इस आपराधिक प्रकरण में पुलिस ने तमाम आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं के तहत FIR दर्ज की थी। इसमें शामिल आरोपियों की सूची में आरोपी क्रमांक { 6} आखिर फरारी के दौरान कैसे नौकरी करते रहे ? इसे लेकर जाँच की मांग की गई है।
जब कानून सिर्फ आम जनता पर लागू हो
पुलक भट्टाचार्य नामक यह शख्स, 1990 के आरक्षण विरोधी आंदोलन में हिंसा और सरकारी संपत्ति के नुकसान के मामले में अभियुक्त बना। मामला अदालत पहुँचा, पर साहब अदालत में नहीं पहुँचे। साल 2015 में स्थायी वारंटी घोषित कर दिया गया। पर ना गिरफ्तारी हुई, ना सस्पेंशन ! उल्टे साहब ने तहसीलदार से सीढ़ी चढ़ते हुए डिप्टी कलेक्टर और फिर एडिशनल कलेक्टर तक का सफर तय कर लिया।
सरकारी तंत्र की बेरुख़ी देखिए — जो आदमी फरार है, वो पदोन्नत भी है, पदस्थ भी है, और प्रभावशाली भी है।

तो सवाल ये है…
- क्या अदालत के आदेश सिर्फ आम जनता के लिए हैं ?
- क्या फरारी अब सरकारी सेवा की नई पात्रता है ?
- क्या राजनीति की शरण में बैठकर वारंट को वॉर्डरूप की फाइल बना देना कानून का मज़ाक नहीं ?
अफसर नहीं, व्यवस्था का व्यंग्य बना ADM
शिकायतों के दस्तावेज बताते हैं कि यह अफसर झूठी जानकारी देकर नौकरी में घुसा, पुलिस वेरिफिकेशन तक गायब रहा, लेकिन सिस्टम की चुप्पी ने उसकी ‘गैर-मौजूदगी’ को मौन सहमति बना दिया।
रायपुर में ADM रहते हुए 60 करोड़ की सरकारी जमीन बिना रजिस्ट्री एक भू-माफिया को ट्रांसफर कर दी गई — और छत्तीसगढ़ सरकार को 7 करोड़ के राजस्व का नुकसान दे डाला।
और सब कुछ तब हुआ जब अदालतें साहब को तलाश रही थीं, और पुलिस कह रही थी – “अभी तक पता नहीं चला साहब कहाँ हैं!”
जब सत्ता हो साथ, तो फाइलें खुद ही झुक जाती हैं
कहा जा रहा है कि ADM साहब को पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर का ‘वरदहस्त’ प्राप्त रहा, जिससे वे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर तक बने और अकबर एंड कंपनी के रियल एस्टेट नेटवर्क में सशक्त भूमिका निभाई। हाउसिंग बोर्ड हो या ज़मीन माफिया — साहब का नाम हर मलाईदार मोर्चे पर दर्ज है।
लेकिन न ACB हिली, न EOW जागी, न ED ने झाँकने की ज़हमत उठाई। क्योंकि जांच का फॉर्मूला बड़ा साफ है — जो पकड़ में न आए, वो भ्रष्ट नहीं होता !
लात…
जिस देश में फरारी काबिलियत हो, वहां गिरफ्तारी महज गरीबों के लिए सजावट है।
अदालतें चिल्लाती रहीं, लेकिन अफसर मलाई खाते रहे, और सिस्टम आंख मूंद कर “मोगेम्बो खुश हुआ” का डायलाग मारता रहा…
साहब की घड़ी अदृश्य नहीं, बेईमानी से बनी थी, और जब तक ऐसी घड़ियाँ टिक-टिक करती रहेंगी, व्यवस्था खुद ‘गायब’ ही रहेगी।
