सीपत एनटीपीसी की राख में दबी इंसानियत, ड्राइवर की मौत पर चुप्पी !
राखड़ लोडिंग के दौरान ड्राइवर की दबकर मौत, 24 घंटे तक शव छिपाने की कोशिश… प्रबंधन, पुलिस और तहसीलदार की भूमिका पर सवाल

बिलासपुर hct : 14 जुलाई 2025 की रात, रलिया डैम। एनटीपीसी सीपत की राखड़ लोडिंग साइट पर एक ड्राइवर की जिंदगी राख में दफ्न हो गई, और अगले 24 घंटे में इंसानियत भी। हादसा रात 11 से 12 बजे के बीच हुआ। ड्राइवर राखड़ में दबा और उसकी मौत हो गई। लेकिन असली ‘हादसा’ तो उसके बाद शुरू हुआ— ना एनटीपीसी प्रबंधन मौके पर आया, ना ठेका कंपनी, ना ट्रांसपोर्टर। मौत की खबर दबा दी गई, और शव तक को चुपचाप हटाने की साजिश रची गई।
सूत्रों के मुताबिक, हादसे के बाद ना गांव के जनप्रतिनिधियों को बताया गया, ना परिवार को। यहां तक कि पुलिस प्रशासन, जो रात में सूचना मिलने के बावजूद दिनभर चुप रहा ! रात 10 बजे के बाद चोरी-छिपे शव उठाने की तैयारी करता रहा। जब गांव के लोग और जनप्रतिनिधि मौके पर पहुंचे, तो पुलिस और तहसीलदार ने उन्हें धमकाया – “शव हटाने नहीं दोगे तो तुम पर केस होगा।” सवाल उठता है, क्या अब इंसाफ की मांग करना भी अपराध हो गया है?
एनटीपीसी और ठेकेदार की ‘सुरक्षा नीति’ कागज पर नियम, मैदान में मौत
हादसे ने एनटीपीसी और उसके ठेकेदारों की सुरक्षा व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है।
- लोडिंग पॉइंट पर निगरानीकर्मी अनिवार्य होने के बावजूद घटना के समय कोई मौजूद नहीं था।
- ड्राइवर और मजदूर बिना बीमा, बिना ईएसआईसी और पीएफ के काम कर रहे थे।
- 24-24 घंटे ड्यूटी, ट्रक बिना हेल्पर और ओवरलोड चलाए जा रहे हैं।
- गांव की कमजोर सड़कों पर ओवरलोड ट्रक फर्राटे भरते हैं, सड़कें तबाह हो चुकीं।
- स्पीड लिमिट का मखौल उड़ाते ये ट्रक पहले भी कई मौतों का कारण बन चुके हैं।
- लोडिंग प्वाइंट और बांध के रास्तों में घुप्प अंधेरा और सन्नाटा, लेकिन प्रबंधन की आंखें बंद।
गांव के लोगों का कहना है कि अगर हेल्पर मौजूद होता, निगरानीकर्मी ड्यूटी पर होते और सुरक्षा नियमों का पालन होता, तो यह मौत टल सकती थी। पर एनटीपीसी के लिए नियम और सुरक्षा शायद सिर्फ कागजों की शोभा हैं।
पुलिस और तहसीलदार : इंसाफ के रखवाले या एनटीपीसी के ‘गार्ड’?
हादसे के बाद प्रशासन की भूमिका ने हालात और ज्यादा बदनाम कर दिए।
सूत्र बताते हैं कि शव को चुपचाप हटाने का दबाव पुलिस और तहसीलदार दोनों की ओर से आया। परिवार और जनप्रतिनिधियों को धमकाया गया कि “यह एनटीपीसी का मामला नहीं, पुलिस का मामला है… विरोध करोगे तो कार्रवाई होगी।”
सवाल यह है कि क्या पुलिस और तहसीलदार अब इंसाफ के नहीं, बल्कि कॉरपोरेट प्रबंधन के चौकीदार बन गए हैं?
असली सवाल
- क्या एनटीपीसी सीपत में ड्राइवर और मजदूरों की जान का मूल्य राख के धुएं जितना भी नहीं बचा?
- क्या तहसीलदार और पुलिस अब जनता की सुरक्षा छोड़, कंपनियों की सुरक्षा करने में लगे हैं?
- और कब तक इन मौतों को “सिर्फ हादसा” कहकर दबाया जाएगा?
यह हादसा कोई पहला नहीं। रलिया डैम और राखड़ लोडिंग साइट्स पर पहले भी कई मजदूर और ड्राइवर अपनी जान गंवा चुके हैं। पर हर बार की तरह इस बार भी प्रबंधन की चुप्पी, प्रशासन की दबंगई और नियमों की धज्जियां सिर्फ यह बताती हैं कि यहां इंसान की कीमत राख से ज्यादा नहीं।

