सरकार ने बंद किए 51,000 स्कूल, तब एक महिला ने मिट्टी की दीवार से भविष्य गढ़ दिया
पश्चिम बंगाल की आदिवासी महिला मालती मुर्मू ने जंगल के एक कोने में निःशुल्क स्कूल खोला, जहाँ सरकार ने दशकों तक सिर्फ वादे किए, पर कभी स्कूल नहीं पहुँचा।

पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) hct : जब सरकार ने देशभर में 51,000 स्कूलों को बंद करने की फाइल पर हस्ताक्षर किए, तब एक आदिवासी महिला ने जंगलों के बीच एक स्कूल बना डाला। बिना किसी वेतन, बिना किसी सरकारी मदद, सिर्फ बच्चों के भविष्य की चिंता में। मालती मुर्मू, अयोध्या पहाड़ियों के जिलिंग सेरेन्ग गाँव की निवासी हैं। शादी के बाद जब उन्होंने देखा कि उनके गाँव में बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है, तो उन्होंने इंतज़ार करना छोड़ खुद ब्लैकबोर्ड उठा लिया।
वहाँ स्कूल खुला, जहाँ सरकार के दावे सालों से झूल रहे थे
पहले उन्होंने एक पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे गाँववालों की मदद से एक छोटा सा स्कूल खड़ा किया — दीवारें मिट्टी की, छत टिन की। आज वहाँ करीब 45 बच्चे पढ़ते हैं — संताली, हिंदी और अंग्रेज़ी में।
सरकार के बंद स्कूल बनाम मालती का खुला भविष्य
जहाँ सरकारों के पास “संघनन” के नाम पर स्कूल बंद करने के लिए योजनाएं हैं, वहाँ मालती के पास खुले दिल से बच्चों को पढ़ाने का जज़्बा है।
सरकारी आंकड़े शिक्षा का ग्राफ गिरा रहे हैं, और मालती मुर्मू पहाड़ियों में साक्षरता का ग्राफ चढ़ा रही हैं।
डिजिटल इंडिया का सपना, लेकिन बजट काग़ज़ों में ही डिजिटल
मालती अब चाहती हैं कि बच्चों के लिए कंप्यूटर कक्षा भी शुरू हो। पर सरकारी योजनाएँ ऐसी हैं कि पहाड़ियों तक ब्रॉडबैंड नहीं पहुँचता, न ही मंत्रीजी के दौरे।
यह कहानी केवल मालती की नहीं, उस भारत की है जिसे बंद स्कूलों में नहीं, खुले इरादों में भविष्य दिखता है
यह वही भारत है जिसे नीति-निर्माता भूल चुके हैं, जहाँ बिजली नहीं, नेटवर्क नहीं, लेकिन उम्मीद है। और उम्मीद ही शिक्षा की असली शुरुआत है।
