गरियाबंद से मुजफ्फरनगर तक फैला समाज कल्याण का ‘सुनियोजित’ घोटाला”
गरियाबंद में 3.25 करोड़ का गबन और धमतरी में 8 करोड़ की आहट, वहीं मुजफ्फरनगर में रिंकू राही की चीख अब भी गूंज रही है!

गरियाबंद : समाज कल्याण की योजना, लेकिन कल्याण किसका ?
“समाज कल्याण विभाग” नाम में ही करुणा, पर हकीकत में करोड़ों की लूट। गरियाबंद जिले में 3.25 करोड़ रुपये के गबन की पुष्टि हुई है। दो पूर्व उप-संचालकों मुन्नीलाल पाल और एलएस मार्को पर सरकारी राशि का दुरुपयोग कर निजी हित में खर्च करने का आरोप लगा है। यह वही विभाग है जो वृद्धों, दिव्यांगों और जरूरतमंदों की योजनाओं को लागू करता है यानी जिनका हक मारा गया, वो तो पहले से ही टूटा हुआ था।
रायपुर hct : 31 जुलाई 2025 को गरियाबंद के समाज कल्याण विभाग में एक आवेदन से भूचाल आ गया। वर्तमान उप-संचालक दोनर प्रसाद ठाकुर ने दो पूर्व अधिकारियों मुन्नीलाल पाल (2018–2022) और एल.एस. मार्को (2015–2018) के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मामला था: 3 करोड़ 25 लाख 50 हजार रुपये के गबन का।
समाज कल्याण’ या ‘सरकार की तिजोरी से सेवा शुल्क’ ?
सिटी कोतवाली गरियाबंद में उप-संचालक दोनर प्रसाद ठाकुर की शिकायत पर दोनों अधिकारियों पर IPC की धारा 409 और 34 के तहत मामला दर्ज हुआ। शिकायत रायपुर निवासी ‘कुंदन सिंह ठाकुर’ द्वारा लोक आयोग में की गई थी, जिसके बाद कलेक्टर ने तीन सदस्यीय समिति बनाई। नतीजा; कार्यालय में न जावक पंजी, न चेकों का हिसाब, न नस्तियां। सीधे शब्दों में कहें तो, सरकारी कागजों को टॉयलेट पेपर समझा गया।
एफआईआर की कॉपी देखने के लिए यहां क्लिक करें : Click here
एक तीन सदस्यीय संयुक्त जांच समिति – जिसमें अपर कलेक्टर अरविंद कुमार पांडे, कोषालय अधिकारी पीसी खलखो और स्वयं दोनर ठाकुर शामिल थे – ने जब दफ्तर की फाइलें टटोलीं, तो हर कोने से ‘गायब रिकॉर्ड’, ‘बिना प्रविष्टि के चेक’, और ‘फर्जी निकासी’ की बू आने लगी।
🔍 जांच में मिले ये चौंकाने वाले तथ्य:
- राज्य निराश्रित निधि (SRC) के नाम से जारी चेकों की कोई स्पष्ट रसीद नहीं।
- जारी मांग पत्रों की जावक पंजी में कोई प्रविष्टि नहीं थी।
- चेक किन फर्मों को और किस प्रयोजन से दिए गए — कोई जानकारी नहीं।
- सहायक ग्रेड-2 ओमप्रकाश सिन्हा, पीलाराम वर्मा व पवन सोनी के कथन लिए गए।
- बैंकों से मिले दस्तावेजों से पुष्टि हुई कि बिना वैधानिक अनुमति के चेक जारी कर रकम निकाल ली गई।
कुछ चुनिंदा निकासी तारीखें :
तारीख | बैंक | राशि (₹) |
---|---|---|
26/09/2016 | यूनियन बैंक रायपुर | 22 लाख |
24/11/2017 | PNB रायपुर | 25 लाख |
22/06/2018 | (तीन चेक) | 83 लाख |
01/03/2019 | कोटक महिंद्रा बैंक | 48 लाख |
10/03/2019 | – | 49 लाख |
19–20/08/2019 | – | 98.5 लाख |
इन चेकों से न तो विभाग को पता था कि रकम किसे दी गई, और न यह कि क्यों दी गई। सरकारी धन को इस बेशर्मी से उड़ाया गया जैसे कि यह कोई रिटायरमेंट पार्टी हो।
धमतरी : असली झटका यहां से आ सकता है !
गरियाबंद में गबन की पुष्टि के बाद अब धमतरी में 8 करोड़ की हेराफेरी की आहट सुनाई दे रही है। मज़े की बात ये कि मुन्नीलाल पाल वहीं भी दस साल (2012-2022) तक जमे रहे। खबर है कि वहां भी ‘बैंकिंग क्रिएटिविटी’ दिखाई गई थी फर्जी खाते, असली निकासी।
मुन्नीलाल पाल ने 2012 से 2022 तक धमतरी में भी समाज कल्याण विभाग की जिम्मेदारी संभाली। खबर है कि वहां 8 करोड़ रुपये के गबन के संकेत मिले हैं। फर्जी बैंक खाते, नाम मात्र के दस्तावेज, और निकासी के पीछे ‘नकली योजनाएं’; सब कुछ ठीक उसी स्टाइल में। यानी अफसर महोदय ने एक नहीं, दो-दो जिलों को ‘पर्सनल पोर्टफोलियो’ समझ लिया था।
मुजफ्फरनगर: जब ईमानदारी को गोली लगी
अब अगर आपको लगता है कि ये केस सिर्फ छत्तीसगढ़ की सीमा तक सीमित है, तो चलिए उतर प्रदेश की गलियों में ले चलते हैं — जहाँ रिंकू राही नाम के एक ईमानदार अधिकारी ने समाज कल्याण विभाग की परतें उधेड़ी थीं। 50 करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट बनाई, RTI डाली, दस्तावेज जुटाए और फिर… उन्हें गोली मार दी गई…
सत्ता को रिंकू राही की सच्चाई नहीं सुहाई — और उस समय पूरा सिस्टम ‘मौन व्रत’ में चला गया।
- बतौर जिला समाज कल्याण अधिकारी, उन्होंने देखा कि स्कॉलरशिप, विधवा पेंशन और पुत्री विवाह जैसी योजनाओं में भारी हेराफेरी हो रही है।
- RTI डाली, सूचना न मिली। केंद्रीय सूचना आयोग तक पहुंचे।
- मेरठ के कमिश्नर मृत्युंजय नारायण की रिपोर्ट में 50 करोड़ का गबन सामने आया।
- लेकिन सच्चाई की कीमत चुकानी पड़ी — रिंकू राही को गोली मार दी गई।
क्या ये इत्तेफाक है कि ‘कल्याणकारी योजनाओं’ में सबसे ज्यादा घोटाले होते हैं?
- जहां जनता की सबसे कमजोर परत होती है,
- वहीं फाइलें सबसे कमजोर बन जाती हैं,
- और जवाबदेही सबसे गायब।
गरियाबंद से मुजफ्फरनगर तक फैली ये श्रृंखला बताती है कि समाज कल्याण विभाग एक संवेदनशील डिपार्टमेंट नहीं, बल्कि एक ‘सॉफ्ट टारगेट’ बन चुका है घोटालों का, अफसरशाही के संरक्षण का, और राजनीतिक चुप्पी का।
“जब रिंकू राही को गोली लग सकती है और गरियाबंद में जांच के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं होती — तो क्या आने वाले समय में RTI डालना ही देशद्रोह घोषित कर दिया जाएगा?”

