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Chhattisgarh

राजनीतिक दबाव और लिफ़ाफ़े के बीच आवागमन करता यातायात….

रायपुर (hct) | सत्ता परिवर्तन के बाद छत्तीसगढ़ के पुलिस विभाग में लगातार बदलाव देखने को मिला है नई सरकार के गठन के बाद से ही पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों का स्थानांतरण और उनके विभाग/पदों में परिवर्तन किया जा रहा है हालांकि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों पर अभी इसकी आंच अभी नही पड़ी है |
राज्य को व्यवस्था के साथ संचालित रखने में पुलिस का महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए परिवर्तन जैसा भी हो किंतु पुलिस प्रशासन की कार्यशैली में नकारात्मक परिवर्तन नही आना चाहिए अगर ऐसा होता है तो समाज में अपराधिक गतिविधियों का बढ़ना तय है, ऐसा ही कुछ बदलाव वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी सहित समस्त जिलों की यातायात पुलिस में देखने को मिल रहा है,
एक ओर यातायात पुलिस ने ई-चालान की सकारात्मक और सराहनीय मुहिम शुरू की है वहीं दूसरी ओर केवल हेलमेट चेकिंग, तीन सवारी और शहरों की नो-पार्किंग कार्यवाही में ही नज़र आ रही है जबकि बहुत कुछ है जनहित में करने के लिए जो केवल ई-चालान के माध्यम से कर पाना फ़िलहाल सम्भव नही है इसके लिए जद्दोजहद की आवश्यकता है राज्य में विशेष कर राजधानी रायपुर में तीन-तीन DSP सतीश ठाकुर जी, विन्धराज सिंह जी एवं मणी शंकर चन्द्रा जी सहित अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री एम.आर मंडावी की मौजूदगी में विवादों में घिरी रहने वाली रायपुर यातायात पुलिस बेहद सुस्त पड़ गई है शायद VIP ड्यूटी करते-करते इतनी थक गई है कि जनहित में कोई काम होता दिखाई नही दे रहा ऐसे तो प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद यातायात पुलिस के द्वारा प्रतिदिन चेकिंग चालान के नाम पर कि जाने वाली लूट से दोपहिया चालकों को थोड़ी राहत है किन्तु तमाम सुविधाओं के होते भी तेज रफ्तार और ध्वनि प्रदूषण का सिलसिला सड़कों और गलियारों में यथावत कायम है जबकि कुछ माह पूर्व यातायात पुलिस ने सराहनीय एवं उत्कृष्ट कार्यवाही करते हुए तेज़ रफ़्तार और ध्वनि प्रदूषण पर अच्छी खासी लगाम लगा दी थी, ऐसे में अब लगता है जैसे यातायात पुलिस ने समाज हित में उनके कर्त्तव्य निर्वहन से ही मुह मोड़ लिया, प्रतीत होता है जैसे कसम उठा ली हो कि दिन में सिर्फ हेलमेट चेकिंग और बाजारों की नो-पार्किंग पर ही कार्यवाही करेंगें एवं रात में शराब चैकिंग वो भी मात्र दोपहिया वाहनों पर
शायद इनका मानना है कि अपराधी/शराबी कार में नही घूमते इस लिए चार पहिया चालकों को इन्होंने विशेष छूट दे रखी है न काली फ़िल्म वाली कार रोकी जाती है ना कार चालक की शराब चेकिंग

साथ ही यातायात मुख्यालय ने तो कई आरक्षकों को दिन रात नए मुख्यमंत्री जी को खुश करने उनकी सड़क व्यवस्था हेतु ही समर्पित कर रखा हैं मतलब जिस मार्ग से सीएम महोदय को गुजरना होता है वहां पर उनके गुजरने के नियत समय से 3-4 घंटे पूर्व ही उक्त अधिकारी/आरक्षक को उपस्थित होना अनिवार्य है जिसकी VIP ड्यूटी लगी हो ऐसे में यातायात पुलिस किसी वृक्ष की छांव में तेज धूप का लुफ़्त उठाने को मजबूर है और अगर कोई काम नही है तो थाने में बैठे मोबाइल में टाइम पास करेंगें
“समझ ही नहीं आता कि राज्य में यातायात पुलिस जनहित के लिए भी है या केवल नेताओं की यातायात व्यवस्था के लिए जबकि खुद राजनेता भी जनता द्वारा चुने हुए जन सेवक हैं”
यातायात पुलिस अधिकारियों की नज़र अंदाज़ी तथा गैर जिम्मेदारी का भरसक लाभ भारी/मध्यम वाहन मालिकों/चालकों एवं मनचले दु-पहिया बाइकर्स के द्वारा लिया जा रहा है नतीजा
हाईवे को शहर से जोड़ती सड़कों के किनारे भारी वाहनों की दुर्घटना को आमन्त्रित करती पार्किंग, तेज रफ्तार, ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, लापरवाही और शासन से छूट के बावजूद मन-मुताबिक ओवरलोडिंग (ओवरलोडिंग पर यातायात के हाथ बंधे हुए हैं और परिवहन अधिकारी अन्य कार्यों में व्यस्त हैं)|
आज प्रदेश में भारी वाहन विशेषकर यात्री बसें ज्यादा सवारियों के लालच में जहाँ चाहे बीच सड़क पर अचानक बस रोक कर सवारी चढ़ाती/उतारती है और समय सीमा की पाबन्दियों के कारण यमदूत बनकर प्रेशर हॉर्न दबाए हुए सड़कों पर दौड़ रही है इन भारी वाहनों की गति और इनमें लगे प्रतिबंधित हॉर्न की ध्वनि इतनी तीव्र होती कि आगे चल रहे दुपहिया चालक को हार्ट अटैक आ जाए या अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाए किंतु भारी वाहनों की मनमानी तथा गली मोहल्ले में बाइकर्स की तेज़ रफ्तार और प्रेशर हार्न की ध्वनि जिले के आला अधिकारियों, पुलिस अधीक्षक एवं यातायात के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को दिखाई/सुनाई नहीं पड़ती कारण ट्रान्सपोर्ट एवं ट्रेवल्स के संचालकों का बहीखाता जिनके द्वारा यातायात अधिकारियों सहित थानों में महीने के महीने सहयोग के तौर पर लिफ़ाफ़ा पहुँचता है उसके बाद थोड़ा राजनीतिक दबाव भी है खैर कारण जो भी हो इन सब में पुलिस प्रशासन के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की गैर जिम्मेदारी प्रत्यक्ष है यही वज़ह है कि आए दिन यातायात पुलिस किसी न किसी विवाद में घिरी ही रहती है यातायात पुलिस को देखते है दोपहिया चालकों को परेशानी और जेब कटना नज़र आता है| आख़िर कब तक किसी न किसी बहाने ये केवल दोपहिया चालकों का शिकार करते रहेंगे है! चार पहिया कारों/बसों/अन्य भारी वाहनों पर इनकी नज़र पड़ेगी कभी! क्या रफ़्तार के भय और हॉर्न के शोर से मुक्ति मिलेगी! ये सब आम आदमी के लिए चिंतन मात्र का विषय बन कर रह गया है, हालांकि यातायात की गैर ज़िम्मेदारी का मुख्य कारण यातायात पुलिस पर पिछले 15 सालों से चले आ रहे राजनैतिक दवाब का हावी होना है पर यातायात को मिलने वाले मासिक लिफ़ाफ़ों की भी अपनी अहम भूमिका है जिसे नकारा नही जा सकता है जिसके चलते भारी वाहनों के विरुद्ध नोपार्किंग,ओवर स्पीड और अन्य लापरवाही को नज़र अंदाज़ किया जाता है फ़िलहाल ओवर लोडिंग की कार्यवाही में यातायात पुलिस के हाँथ बंधे हुए हैं लेकिन क्षेत्रीय परिवाहन अधिकारी के अलावा यातायात पुलिस को भी अधिकार मिलना चाहिए कि वह लिफ़ाफ़ों से निकल कर जनहित में भारी वाहनों की लापरवाही के विरुद्ध अनुशासनात्मक न्यायालय प्रकरण की कार्यवाही करें|

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