संचालक जनसम्पर्क विभाग का विज्ञापन के नाम पर बंदरबांट !
मुख्यमंत्री की नाक के नीचे "अँधा बांटे रेवड़ी" का हो रहा खेला ...

“दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम” कबीरदास जी के इस दोहे में बुद्धिमानी की बात की गई है। मगर हमारे चूने हुए नेतागण बेहद बुद्धिमता का परिचय दे रहे हैं इसमें कोई शक नहीं ! देश “अमृतकाल” के दौर से गुजर रहा है, अमृत काल वह महत्वपूर्ण समय है जब अमानवीय, देवदूतों और मनुष्यों के लिए अधिक से अधिक सुख के द्वार खुलते हैं। स्वाभाविक सी बात है कि “जिसने राम को लाया है,” बेवकूफों ने उसी राम के बाप को सिंहासन सौंप रखी है। मेरा इशारा साफ है कि केंद्र में रामजादों की सरकार है, देश ही क्या प्रदेश में भी रामजादे ही सत्तारूढ़ हैं।
रायपुर hct : एक तरफ जहाँ देश की आबादी डेढ़ अरब 1.5 के आंकड़े को छूने लालायित है उस देश के वजीर-ए-आला को विदेश भ्रमण से फुर्सत नहीं। जहाँ बीते साढ़े चार वर्षों के दौरान राजग सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं पर 280 मिलियन डॉलर, यानी 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं, वहीं सरकारी नीतियों से जुड़े विज्ञापनों पर 640 मिलियन डॉलर, यानी 4,607 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। विदेश यात्राओं और सरकार विज्ञापनों पर कुल 920 मिलियन डॉलर (6,622 करोड़ रुपये) खर्च किए हैं।
बड़े मियां तो बड़े मियां; छोटे मियां …
प्रदेश में “विष्णु का सुशासन” का ढोल पीटा जा रहा है, और उसी के विभाग में चाहे वह खनिज का हो या फिर मीडिया मैनेजमेंट की; चहुँ और ढोल के अंदर पोल नजर आ रहा है। अभी प्रदेश के लघु एवं मध्यम वर्ग के समाचार पत्र पत्रिकाओं तथा वेब पोर्टल के संचालको ने एक मुहीम छेड़ रखा है जिसके तहत प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक मासिक पत्रिका समअप को 50,00,000 और फिर उसके बाद 14,00,000.00 रूपए के विज्ञापन से अनुग्रहित किया गया है…!
वहीँ प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली से प्रकाशित होने वाली “आउटलुक” (साप्तहिक और पाक्षिक) पत्रिका को 36 पेज का बुकलेट प्रकाशन हेतु 88,23,529.00 रूपए देकर ना जाने ऐसा क्या सामग्री प्रकाशित करवाई गई है ! जबकि इस पत्रिका का रायपुर में कोई कार्यालय भी नहीं है।
बता दें कि वैसे भी छत्तीसगढ़ संवाद के पास टीडीएस राशि कटौती का कोई लेखा जोखा तो है नहीं और ऐसा करने संवाद ना सिर्फ केंद्र को अरबों का चूना लगा रहा है बल्कि प्रदेश के जनता गाढ़ी कमाई से प्राप्त राजस्व (टैक्स) को पानी की तरह बहाया गया और जा रहा है…
आखिर क्या प्रकाशित हुआ है इन पत्रिकाओं में
आखिर ऐसा कौन सा समाचार का प्रकाशन किया गया है इन पत्रिकाओं ने या फिर सरकार की ऐसी कौन से नब्ज दबाई गई जिसकी इतनी बड़ी रकम अदायगी की गई यह जाँच का विषय है। और यह भी गौर करने वाली बात है कि प्रदेश से प्रकाशित होने वाली उन तमाम पत्र-पत्रिकाओं से सरकार को ऐसी क्या दुश्मनी है जिसे दरकिनार कर चाहे वह भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की, कबीर दास जी के उक्त दोहे की भांति ये सरकार और उनके नुमाइंदे बखूबी अंजाम देकर अपनी बुद्धिमानी का परिचय दे रहे हैं !
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मांगे मिले ना भीख …
देश के लघु एवं मध्यम वर्ग के समाचार पत्र – पत्रिकाओं तथा वेब पोर्टल के संचालको ने एक जुटता का परिचय देते हुए एक whatsapp बनाकर संवाद में फ़िलहाल हलचल तो मचा दिया है; मगर जिस ईमारत की नीव ही भ्रष्टाचार की ईंट पर गढ़ी गई हो, उनसे सहानुभूति की अपेक्षा बेमानी है। ‘हक़’, कटोरा लेकर “भगवान के नाम पर दे दे बाबा” कहने से नहीं मिलता; उसे छिनना पड़ता है। जैसे आजदी गाँधी के चरखे से नहीं मिली, उसके लिए अनेक क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया है; वैसे ही “संवाद” में बैठे बधिर अंधे लोगों से संवाद करना संवादहीन ही साबित होगा…

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