शादी के 25 दिन बाद अलग हो गए दोनों, तलाक को लेकर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने तलाक को लेकर बड़ा फैसला दिया है। दरअसल, एक पति-पत्नी शादी के 25 दिन बाद ही अलग हो गए थे। पति ने हरिद्वार के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट ने 2021 में हरिद्वार के फैमिली कोर्ट के जज के फैसले के खिलाफ पति द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया।
समाचार पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, पति की याचिका स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, यह देखते हुए कि यह विवाह अब ‘मृत विवाह’ हो चुका है, ऐसे में तलाक न देना क्रूरता के समान होगा। हाई कोर्ट ने उस विवाह को खत्म करने की अनुमति दे दी, जिसमें दोनों पक्ष अपनी शादी के 25 दिन बाद अलग हो गए थे।
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने कहा कि लगभग पांच साल तक अलग रहने के बाद उनके बीच भावनात्मक जुड़ाव या पैच-अप की कोई गुंजाइश नहीं बची है। इस विवाह के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह विवाह एक मृत विवाह से अधिक कुछ नहीं है। ऐसे में यदि दोनों पक्षों को तलाक नहीं दिया जाता है, तो यह दोनों पक्षों के लिए क्रूरता होगी
साथ ही कोर्ट ने पति को छह सप्ताह के भीतर स्वयं द्वारा दिए गए वचन के अनुसार स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि दोनों की शादी 02.05.2019 को हुई थी और वे 2019 से अलग रह रहे हैं। तलाक के मामले के लंबित रहने के दौरान 2021 में फैमिली कोर्ट द्वारा तय किया गया गुजारा भत्ता 20000 रुपये था। हालांकि, अपीलकर्ता पति द्वारा हिंदू विवाह की धारा 13(1)(ia) के तहत दायर तलाक की याचिका 2021 में खारिज कर दी गई।
कोर्ट ने यह देखने के बाद कहा कि उनके विवाह बंधन से कोई संतान पैदा नहीं हुई है। चूंकि दोनों पक्ष योग्य हैं, इसलिए यदि उन्हें इस रिश्ते से मुक्त नहीं किया गया तो यह क्रूरता होगी। पक्षों के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है। कोर्ट ने प्रकाशचंद्र जोशी बनाम कुंतल विसंजी शाह (2024) और शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (2023) के मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों पर भी भरोसा किया। इन मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अलगाव की लंबी अवधि के बाद विवाह का टूटना स्वीकार्य माना जा सकता है।