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LIC-ADANI निवेश बवाल: सरकारी दखल या विपक्ष की सियासत?

3.9 अरब डॉलर के निवेश प्रस्ताव पर देशभर में घमासान, LIC और सरकार ने आरोपों को बताया निराधार !

देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और उद्योगपति गौतम अडानी के कारोबार में भारी निवेश को लेकर सियासत गरमा गई है। अमेरिका के अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने 24 अक्टूबर 2025 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें आरोप लगाया गया कि भारत सरकार, विशेषकर वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने एलआईसी को अडानी समूह की कंपनियों में करीब 3.9 अरब डॉलर (लगभग 33,000 करोड़ रुपये) का निवेश करने के लिए योजना बनाई थी। कहा गया कि यह कदम मई 2025 में केंद्र सरकार के द्वारा उस समय उठाया गया जब अडानी समूह भारी कर्ज और अंतरराष्ट्रीय जांच के संकट में था।​

निवेश विवाद की शुरुआत और पृष्ठभूमि

रिपोर्ट के अनुसार, इस निर्णय के पीछे सरकार का यह तर्क था कि “10-साला सरकारी बांड” (यह दस वर्ष की परिपक्वता अवधि वाला सरकारी बॉन्ड होता है, जिसमें दस साल बाद मूलधन निवेशक को लौटाया जाता है और इस दौरान ब्याज मिलता रहता है। यह भारत में एक आम दीर्घकालिक निवेश साधन है, जिसका ब्याज दर वित्तीय दुनिया में मानक की तरह देखा जाता है) की तुलना में अडानी समूह के कॉर्पोरेट बांड पर ज़्यादा लाभ मिल सकता है, और इस निवेश से ‘LIC के जनादेश’ के साथ देश के आर्थिक लक्ष्यों को भी समर्थन मिलेगा। वाशिंगटन पोस्ट ने दावा किया कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने मिलकर यह प्रस्ताव तैयार किया, जिसे निवेश के जोखिम के बारे में आंतरिक चेतावनी के बावजूद अनुमोदित कर दिया गया।​

जनता की प्रतिक्रिया और राजनीतिक विवाद

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मई 2025 में अडानी पोर्ट्स (APSEZ) को अपने पुराने कर्ज़ को चुकाने के लिए लगभग 585 मिलियन डॉलर की आवश्यकता थी, और ये रकम एलआईसी द्वारा बॉन्ड खरीद के ज़रिए जुटाई गई। इस कदम का कांग्रेस, विपक्षी दल तथा कई आर्थिक विशेषज्ञों ने तीखा विरोध किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित अन्य नेताओं ने इसे “जनता के पैसे का दुरुपयोग” बताते हुए सरकार की आलोचना की।​

एलआईसी और सरकार की प्रतिक्रिया

LIC ने वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट को ‘सिरे से झूठा और आधारहीन’ बताया है। एलआईसी ने जारी बयान में कहा कि उसकी निवेश प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र और बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के अनुसार होती है—इसमें वित्त मंत्रालय, नीति आयोग या किसी भी सरकारी निकाय की कोई भूमिका नहीं है। कंपनी ने यह भी दोहराया कि एलआईसी का अडानी समूह में निवेश उसकी कुल परिसंपत्ति का 2% से भी कम है और उसके सबसे बड़े निवेश रिलायंस, आईटीसी, एचडीएफसी बैंक और एसबीआई जैसे अन्य समूहों में हैं.​

एलआईसी ने स्पष्ट किया कि जिन 3.9 अरब डॉलर के निवेश की बात रिपोर्ट में कही गई है, वैसा कोई दस्तावेज, प्रस्ताव या सरकारी योजना कभी तैयार नहीं की गई। एलआईसी ने अपने बयान में कहा कि ऐसे आरोपों का उद्देश्य भारतीय वित्तीय संस्थाओं की प्रतिष्ठा को बदनाम करना और एलआईसी की “मजबूत निर्णय प्रक्रिया” पर सवाल खड़ा करना है.​

अडानी समूह और अधिकारीयों की प्रतिक्रिया

अडानी समूह ने भी वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट को भ्रामक, तथ्यहीन और दुर्भावनापूर्ण बताया। समूह ने कहा कि एलआईसी सहित अन्य बड़े संस्थागत निवेशकों का उसमें विश्वास उनके पारदर्शी और मजबूत नीतिगत बुनियाद पर आधारित है, न कि किसी सरकारी दबाव या विशेष योजना पर.​

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि एलआईसी का अडानी में निवेश तुलनात्मक तौर पर बहुत कम है—जहां टाटा समूह में एलआईसी का निवेश ₹1.3 लाख करोड़ है, वहीं अडानी में यह मात्र 2% है। उनके अनुसार, यह निवेश, अन्य कंपनियों की तरह ही, बोर्ड के निर्देश और नियामकीय निगरानी के तहत किया गया है.​

विवाद और निवेश के आँकड़े

एलआईसी फिलहाल 351 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करती है और कुल परिसंपत्ति 55 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। उसके पोर्टफोलियो में जोखिम विभाजन और निवेश नीति के अनुसार ही कोई भी बड़ा निर्णय लिया जाता है.​

मई 2025 में अडानी पोर्ट्स एंड SEZ के ₹5,000 करोड़ (लगभग $570 मिलियन) के बॉन्ड एलआईसी ने खरीदे थे, लेकिन रिपोर्ट में दावा किए गए $3.9 अरब जैसे निवेश का कोई सबूत सामने नहीं आया है। निवेशकों को आश्वस्त करते हुए एलआईसी ने बताया कि उसकी शीर्ष 500 भारतीय कंपनियों में निवेश का मूल्य पिछले दशक में 10 गुना से अधिक बढ़ा है.​

निष्क्रिय सवाल-जवाब

एलआईसी के शीर्ष अधिकारियों, पूर्व प्रमुखों और सरकारी अधिकारियों ने दावा किया है कि कोई सरकारी दबाव कभी नहीं था, और संस्था की निवेश प्रणाली पूरी तरह नियामकीय है। विपक्ष मामले को संसद में उठाने की तैयारी कर रहा है, जबकि सरकार और एलआईसी दोनों ने बार-बार सभी आरोपों को सिरे से नकारा है। वर्तमान में सिर्फ रिपोर्ट और विवाद चल रहे हैं, जबकि एलआईसी, भारत सरकार और अडानी समूह सभी ने किसी भी ग़लत योजना या दबाव के आरोपों का खंडन किया है। मामले की वास्तविकता, नियामकीय समीक्षा और सार्वजनिक पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिये संस्थाएँ अपने-अपने पक्ष पर अडिग हैं।

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