छत्तीसगढ़ में अपराधों की परतें : सुशासन के कटघरे में गृहमंत्री विजय शर्मा !
रायपुर से बीजापुर तक हत्या, लूट, साइबर ठगी और नक्सली वारदातें — आंकड़े और घटनाएं बताती हैं कि सुशासन का दावा अपराध की हकीकत के सामने कितना खोखला है।

छत्तीसगढ़ में “सुशासन” का ढोल पीटने वाली सरकार के सामने अपराध का आईना बार-बार सवाल खड़ा कर रहा है। राजधानी रायपुर से लेकर नक्सल प्रभावित बीजापुर तक घटनाओं की लंबी सूची यह बताती है कि कानून-व्यवस्था का हाल कितना लचर है। आंकड़े, वारदातें और जनता का डर—सब मिलकर गृहमंत्री विजय शर्मा की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करते हैं।
राजधानी का खोखला सुरक्षा कवच
रायपुर hct : राजधानी रायपुर को अपराध मुक्त दिखाने की कोशिशें सरकार करती रही है, लेकिन हकीकत बार-बार सामने आ जाती है। हाल ही में एक अंतरराज्यीय गिरोह ने “डिजिटल गिरफ्तारी” का झांसा देकर दर्जनों नागरिकों से लाखों रुपये ठग लिए। (TOI रिपोर्ट)। पुलिस ने मामले का खुलासा किया, लेकिन सवाल यह है कि जब राजधानी में ही साइबर सुरक्षा की पोल खुल रही हो, तो छोटे शहरों का क्या हाल होगा?
इसी बीच हत्या के मामले ने दहशत बढ़ाई। नदी किनारे बोरी में बंद दो लाशें मिलीं – एक महिला और दूसरी युवक की। (NBT रिपोर्ट)। एक ही पैटर्न में हुई इन वारदातों ने राजधानी की सुरक्षा पर गहरे सवाल उठाए।
दुर्ग: गैंगवार और प्रशासन की चुप्पी
दुर्ग जिले की हालत भी किसी से छिपी नहीं। यहां गैंगवार की घटनाएं आम नागरिक के लिए खौफनाक अनुभव बन गई हैं। शहर के बीचोंबीच गोलियां चलने लगीं, मानो अपराधी गिरोहों को कानून का कोई डर न रहा हो। दुकानदारों और राहगीरों ने खुलेआम हथियार लहराते अपराधियों को देखा, लेकिन प्रशासन की चुप्पी ही सुर्खियां बनी। क्या यही है गृहमंत्री का दावा किया गया “सुरक्षा कवच”?
बीजापुर : पत्रकार की हत्या
बस्तर संभाग का बीजापुर जिला लंबे समय से हिंसा का केंद्र रहा है। इसी दौरान पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने प्रदेश में सनसनी फैला दी। यह सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि लोकतंत्र की आवाज़ पर हमला था। सरकार ने कार्रवाई दिखाने के लिए मुख्य आरोपी के मकान पर बुलडोज़र चला दिया। लेकिन पत्रकारों और नागरिकों के बीच यह सवाल गूंजता रहा कि क्या बुलडोज़र न्याय का विकल्प है या फिर सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बटोरने का हथकंडा?
गरियाबंद : आंकड़ों से झलकता अपराध
गरियाबंद जिले की आधिकारिक अपराध सांख्यिकी बताती है कि सुशासन के दावे कितने खोखले हैं। 2022 में 64, 2023 में 68 और 2024 में 62 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। अपहरण की घटनाएं 2022 में 25 से बढ़कर 2023 में 39 तक पहुंचीं। (आधिकारिक स्रोत)। आंकड़े साफ कहते हैं कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। हत्या जैसी घटनाएं स्थिर जरूर रहीं, लेकिन इन संवेदनशील अपराधों का ग्राफ प्रशासन की गंभीरता पर ही सवाल खड़ा करता है।
कोरबा : जेल सुरक्षा में सेंध
कोरबा जिले की जेल से चार आरोपी फरार हो गए, जो बलात्कार और POCSO जैसे गंभीर मामलों में बंद थे। (ET रिपोर्ट)। यह घटना सिर्फ जेल प्रशासन की लापरवाही नहीं बल्कि पूरे सुरक्षा तंत्र पर सवाल है। अगर जेल जैसे नियंत्रित वातावरण में ही आरोपी सुरक्षित नहीं रखे जा सकते, तो आम नागरिक अपनी सुरक्षा की उम्मीद किससे करे?
नक्सल हिंसा : जवानों की लगातार शहादत
बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद अब भी जिंदा है और इसका खामियाजा सबसे ज्यादा सुरक्षा बलों को भुगतना पड़ रहा है। जनवरी 2025 में बीजापुर के इरापल्ली गांव में IED धमाके में 8 जवान और एक ड्राइवर शहीद हो गए। इसके बाद फरवरी 2025 की मुठभेड़ में 31 नक्सली ढेर हुए, लेकिन इस जीत की कीमत भी 2 जवानों की शहादत रही। (Wiki स्रोत)। सवाल यह है कि आखिर कब तक जवानों की लाशें ही सुरक्षा नीति की नाकामी का सबूत देती रहेंगी?
जनता का सवाल
राजधानी से लेकर नक्सल इलाकों तक अपराध की यह परतें जनता के सामने हैं। चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण, पत्रकारों की हत्या और नक्सली हमले हर जिले की घटनाएं यह कहती हैं कि गृहमंत्री विजय शर्मा के “सुशासन” का दावा जमीन पर टिकता नहीं दिख रहा। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर सुरक्षा व्यवस्था सिर्फ बयानबाजी में मजबूत क्यों है ? क्या यह हालात गृहमंत्री को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी नहीं ?
