ChhattisgarhConcern
Read Next
4 days ago
गरियाबंद : आवास घोटाला, मुख्यमंत्री के आदेशों पर भ्रष्टाचार ने फेर दी लकीर…!
5 days ago
फागुनदाह से बागतराई : छह किलोमीटर की दूरी, पंद्रह किलोमीटर की मजबूरी ?
5 days ago
Dogs and Indians Not Allowed आधुनिक भारत में शर्मनाक भेदभाव!
1 week ago
पीएम आवास (ग्रा) के तहत 1526 परिवारों का सामूहिक गृह प्रवेश उत्सव सम्पन्न
2 weeks ago
जाति प्रमाणपत्र की राजनीति’ में फंसी प्रतापपुर की विधायक !
2 weeks ago
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने RSS पर प्रतिबंध की मांग की
2 weeks ago
LIC-ADANI निवेश बवाल: सरकारी दखल या विपक्ष की सियासत?
3 weeks ago
रायपुर सेन्ट्रल जेल में “फाइव स्टार होटल” का सुख, गृह मंत्री की काबिलियत पर उठे सवाल
3 weeks ago
राखड़ डंपिंग घोटाला: सीपत एनटीपीसी प्लांट में भारी भ्रष्टाचार
4 weeks ago
नक्सलियों का आत्मसमर्पण : हिंसा से संवाद और विकास की दिशा में नया भारत
Related Articles
Check Also
Close
लेकिन कॉलोनी की तस्वीर को ही देखकर यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बोर्ड यह जिम्मेदारी कितनी मुस्तैदी से निभा रहा है। कॉलोनी की आधी लिफ्ट प्रायः खराब ही रहती है। बोर्ड के इंजीनियर मिश्रा, जो इस कॉलोनी को स्वस्थ्य रखने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, की दलील है कि इससे रहवासियों की कसरत बेहतर ढंग से हो रही है और उनकी पेट की चर्बी कम हो रही है। कुछ आये हुए लोग शाश्वत ढंग से चले भी जाये, तो यह जनसंख्या नियंत्रण में उनका विनम्र योगदान हो सकता है, सो नालियां भी बजबजा रही है। बोर्ड के पैसों का अपव्यय होने से रोक रहे हैं, सो अलग।
टैंकर पर नंबर तक नहीं है। जिसको पानी पीना हो, कपड़े धोना हो या कुछ और धोना-पखारना हो, वह नीचे तक आये और 6वीं मंजिल तक चढ़ाकर ले जाये ! नहाने की जरूरत पड़ेगी नहीं, क्योंकि निकला हुआ नमकीन पसीना ही काफी होगा शरीर को शुद्ध करने के लिए. 500 फ्लैट्स के लिए 24 घंटे में एक या दो ही टैंकर आते हैं, इसलिए इस बात की कोई गारंटी नही कि आपको चुल्लू भर पानी भी मिल ही जाए! औकात है, तो बिसलरी के जार मंगाइये और मिश्रजी को दुआ देते हुए अपना गला तर कीजिये। वैसे ध्यान से तस्वीर देखेंगे, तो यह टैंकर भी बड़ी तेजी से रिस ही रहा है।
पिछले चार माह से कॉलोनी के वाटर पंप खराब है। बोर्ड के पास इसे सुधारने के लिए पैसे नहीं है, जबकि फ्लैट का हर रहवासी साल में 8000 रुपये मेंटेनेन्स फीस और जल शुल्क देने के लिए मजबूर है। इसका उपयोग वे निजी टैंकर मालिकों के जरिये गुणवत्ताहीन पानी सप्लाई करके कर रहे हैं। पानी में जितना खर्च हो रहा है, शायद उससे चौथाई में पंप और लिफ्ट सुधर जाते, नालियां ठीक हो जाती। लेकिन तब हाउसिंग बोर्ड और मिश्रजी को उनके समाज-कल्याण, प्रदेशोत्थान और मानव सेवा के लिए याद कौन करता, जो निरंतर 24 घंटे मकान नहीं, घर बनाने में और वहां के रहवासियों का घंटा बजाने में जुटे है!!


