लॉकडाउन : अब 3 मई तक…
“स्वास्थ्य सुविधाएं व जनहित के मुद्दों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता”
*भरत सोनी।
COVID-19 (कोरोना) के संक्रमण से भारत ही नहीं पूरा विश्व संक्रमित है। जिससे निपटने प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पूर्व में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी। किन्तु स्थिति में पूर्ण नियंत्रण नहीं होने पर पुनः 19 दिन अर्थात 3 मई तक लॉकडाउन आगे बढ़ाया गया है, साथ ही यह भी आश्वस्त किया है कि यदि 20 अप्रैल तक जिन स्थानों पर स्थिति नियंत्रण में होगी, वहां आंशिक छूट दी जा सकती है।
प्रधानमंत्री द्वारा अपने पूर्व राष्ट्रीय संबोधन में यह कहा गया था कि; यदि इन 21 दिनों में हम नहीं संभले तो हम 21 साल पीछे हो जाएंगे, साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि इन 21 दिनों जो जहाँ है वहीं रहे। सभी की व्यवस्था सरकार के द्वारा की जाएगी किंतु इन 21 दिनों में सरकार की कमजोरियों की वजह से जो स्थिति सामने उत्पन्न हुई है; उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या हम इन 21 दिनों में वास्तव मे 21 साल पहले पहुंच गए ? लॉकडाउन की स्थिति का आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ा और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए राहतों का फल प्राप्त हुआ कि नहीं ? प्रथम दृष्टि में ही देखा जाए तो जिस कोरोना वायरस के चलते तालाबंदी किया गया, उसके अनुसार कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण के लिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए, किन्तु सरकार ने लॉक डाउन पर स्वास्थ्य से ज्यादा लाठी पर जोर लगाया। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण है, गरीब मजदूर परिवार का उचित व्यवस्था, रहने, खाने की उत्तम व्यवस्था के साथ स्वास्थ्य, पर तालाबंदी के दूसरे व तीसरे दिन से ही इन्हें अपनी सरकार पर से भरोसा उठ गया और ये निकल पड़े अपने घर की ओर, लाखों लोग बिना आवागमन की सुविधा के साथ अपने बच्चों व परिवार के साथ, आखिर क्यों ?
भूख की तड़प रही लेकिन खानी पड़ी भय युक्त लाठियां !
इन्हें क्यों विश्वास में नहीं रखा जा सका, लॉक डाउन के बाद केंद्र सरकार को आम गरीब व जरूरतमंद परिवारों को त्वरित सहायता व आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाने थे; किंतु वे पलायन के पश्चात पुनः पलायन की स्थिति में आ गए। इसके साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का आंकड़ा देखा जाए तो इन 21 दिनों में लगभग 200000 ही टेस्ट हो पाए। जबकि देश की आबादी 130 करोड़ है केंद्र सरकार द्वारा कोरोना संबंधी स्वास्थ्य सुविधाओं का नियंत्रण अपने पास रखा गया जिसे समस्त राज्य सरकारों को समान रूप से उसकी आवश्यकतानुसार स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जानी थी। कोरोना से संबंधित स्वास्थ्य सुविधाओं संबंधी सभी आवश्यक सामग्री पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराया जाकर ज्यादा से ज्यादा जांच व चिकित्सा की व्यवस्था की जानी चाहिए थी, किंतु अपने उक्त कार्य में केंद्र सरकार असफल रही।
मात्र यदि छत्तीसगढ़ का ही आंकड़ा लिया जाए तो लगभग इन 21 दिनों में 3000 लोगों की ही जांच संभव हो पाई ! जबकि कटघोरा एक हॉटस्पॉट के रूप में छत्तीसगढ़ में उभरा जहां सभी व्यक्ति की जांच के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा कराए जाने की सराहनीय घोषणा की गई। किन्तु कटघोरा की आबादी लगभग 23000 रही जिसकी जांच किए जाने में लगभग 90 दिन अनुमानित लगना बताया गया। इसका प्रमुख कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। छत्तीसगढ़ में मात्र एम्स ही एकमात्र चिकित्सा सेंटर रहा जबकि इन 21 दिनों में छत्तीसगढ़ सहित संपूर्ण देश के सभी जिला मुख्यालयों में जांच व उपचार की व्यवस्था हो जानी चाहिए थी। यदि सभी जिला मुख्यालयों में इन 21 दिनों में जांच व स्वास्थ्य सुविधाओं का पर्याप्त व्यवस्था की गई होती तो आंकड़ा कुछ अलग होता, साथ ही कटघोरा से मरीजों को लेकर रायपुर नहीं लाना पड़ता। यदि देश भर के जिलों में भी स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया जाता तो जाँच व उपचार के साथ वास्तविकता से भी परिचय होता। कटघोरा की स्थिति को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र से शीघ्र ही स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए व्यवस्था किए जाने का आग्रह किया किंतु स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाई ना ही प्रदेश के सभी जिलों में चिकित्सा टेस्ट प्रारंभ हो पाया। यही स्थिति संपूर्ण देश में रही जिसका खामियाजा भविष्य में आम जनता को व आर्थिक व्यवस्था नुकसान उठाना पडेगा।
लॉक डाउन के इन 21 दिनों में आम जनता, गरीब परिवार, मज़दूर आदि लोगों ने जो अव्यवस्था व असहजता महसूस कर बर्दाश्त किया है वो जानते हैं अब पुनः 19 दिन ना जाने कैसे बिताएंगे। इन 21 दिनों में यदि सिर्फ दिल्ली का हाल जाना जाए तो लाखों गरीब परिवार भय और भूख से पीड़ित रहे हैं। एक निजी चैनल में प्रसारित समाचार के अनुसार लोग भोजन व्यवस्था हेतु सुबह 6:00 बजे से लाइन में लगकर अपने बारी का इंतजार करते हैं। कई लोग 3 से 5 किलोमीटर पैदल चलकर अपनी भूख मिटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ! उसके बाद भी उन्हें भोजन मिला या ना मिला यह नसीब की बात है, जबकि दिल्ली सरकार द्वारा नित्य दिन यह प्रसारित किए जा रहा है कि हमने इन लाखों परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था की है; साथ ही अन्य मनमोहक लुभावने घोषणाएं भी की जा रही है किंतु सत्यता से परे यह स्थिति सोचनीय है। यदि इन 21 दिनों के बाद भी आगामी 19 दिनों में व्यवस्था इस तरह होगी तो निश्चित है कोरोना से भी अधिक खतरा हमें अपनों से ही होगा। क्योंकि भय और भूख से जूझना एक आम गरीब परिवार के लिए क्या होता है ये AC कार में विचरण करने वाले प्राणी क्या जानेंगे ?
इन्हें तो तुगलकी फ़रमान और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात ही समझ आती है। एक ओर लाठी का भय, दूसरी ओर भूख की असहनीय पीड़ा, बेरोजगारी, खाली पेट और जेब; जनाब इन्हें सरकार का ही आसरा और रहम की आवश्यकता है। 21 दिन तो बीत गए, अब 19 दिन भी उक्त स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ अन्य व्यवस्था का भी यही हाल रहा तो हमें इन 40 दिनों के बाद और कितने दिनों की आवश्यकता होगी, यह कह पाना मुश्किल है।
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