KCG : श्री सीमेंट फैक्ट्री विरोध में माहौल तनावपूर्ण
बसों में तोड़फोड़ जनसुनवाई रद्द करने की मांग गरमाई...

खैरागढ़ hct : छुईखदान ब्लॉक के ग्राम संडी माइंस में प्रस्तावित श्री सीमेंट फैक्ट्री को लेकर ग्रामीणों के बीच पिछले कई सप्ताहों से simmer कर रही बेचैनी शनिवार को बड़े जनविस्फोट के रूप में सामने आ गई। विरोध का यह स्वरूप केवल एक रैली भर नहीं रहा, बल्कि यह हजारों ग्रामीणों की सामूहिक चेतना का वह उभार बन गया जिसने पूरे इलाके का माहौल तनावपूर्ण कर दिया। विचारपुर, बुंदेली, पंडरिया, संडी, कर्रापानी, कोसमटोला सहित लगभग 39 गाँवों से लोग ट्रैक्टरों के काफिलों, बाइक रैलियों और पैदल जत्थों के रूप में छुईखदान नगर पहुँचे। भीड़ में महिलाओं की मजबूत उपस्थिति, युवाओं का उत्साह, बुजुर्गों की दृढ़ता और बच्चों की भागीदारी ने इस विरोध को केवल “आंदोलन” नहीं, बल्कि “जनभावना” का प्रत्यक्ष रूप बना दिया।
जमीन ही जीवन का आधार है
ग्रामीणों की मुख्य चिंता उस उपजाऊ भूमि को लेकर है, जिसे पीढ़ियों से खेती का आधार माना जाता रहा है। प्रभावितों का कहना है कि सीमेंट संयंत्र के चलते भूमि बंजर हो सकती है, प्रदूषण बढ़ेगा और भूजल पर दीर्घकालिक खतरा मंडराएगा। आंदोलन के बीच यह आवाज उस माहौल में गूंजती रही – “जमीन ही जीवन का आधार है। जमीन गई तो भविष्य अंधकार में धकेल दिया जाएगा।” इस एक वाक्य ने उस भीड़ की मानसिकता और आशंकाओं का सार प्रस्तुत कर दिया।
उग्र भीड़ का बस में पथराव
जैसे-जैसे विरोध जत्थे नगर में इकट्ठा होते गए, तनाव भी बढ़ने लगा। भीड़ का एक हिस्सा उग्र होने लगा और इसी दौरान कुछ बसों को रोके जाने की घटना हुई। इसके बाद दो–तीन बसों के कांच टूटने की सूचना से माहौल और गरमाने लगा। यद्यपि अधिकतर ग्रामीण शांतिपूर्ण विरोध के पक्षधर थे, लेकिन भीड़ के एक हिस्से की उत्तेजना ने प्रशासन की चिंताएँ बढ़ा दीं। इसके तुरंत बाद पुलिस बल तैनात किया गया, छुईखदान के प्रमुख चौराहों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई और कलेक्टोरेट परिसर को एहतियातन ‘छावनी’ जैसा रूप दे दिया गया। प्रशासनिक अमला पूरे घटनाक्रम पर लगातार नजर रखे हुए है और स्थिति को नियंत्रण में रखने की कोशिश जारी है।
बगैर सहमति, जनसुनवाई !
इस पूरे विरोध का केंद्र बिन्दु 11 दिसंबर को प्रस्तावित जनसुनवाई है, जिसे ग्रामीण किसी भी स्थिति में होने नहीं देना चाहते। उनका कहना है कि जनसुनवाई का आयोजन स्थानीय लोगों की वास्तविक सहमति के बिना आगे बढ़ाया जा रहा है और यह औपचारिकता मात्र बनकर रह जाएगी। ग्रामीणों ने मंच से स्पष्ट शब्दों में कहा – “यह आंदोलन किसी पार्टी का नहीं, किसी नेता का भी नहीं। यह लड़ाई हमारी जमीन, हमारे पर्यावरण और हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा की लड़ाई है।” भीड़ के इस सामूहिक संकल्प ने विरोध को और मजबूत स्वर दिया।
इतिहास गवाह है कि छुईखदान–गंडई क्षेत्र में भूमि, जल, जंगल से जुड़े मुद्दों पर ग्रामीण एकजुटता दिखाते रहे हैं। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गाँवों की महिलाएँ बड़ी संख्या में तख्तियाँ और नारें लेकर पहुंचीं। बुजुर्गों ने पुराने अनुभव साझा करते हुए कहा कि किसी भी औद्योगिक परियोजना से पहले स्थानीय लोगों की सहमति और दीर्घकालिक पर्यावरणीय असर का आकलन अत्यावश्यक है। वहीं युवाओं ने कहा कि विकास का मतलब केवल फैक्ट्रियाँ नहीं, बल्कि टिकाऊ और सुरक्षित भविष्य भी होना चाहिए।
“आंदोलन” पार्टी-पॉलिटिक्स से परे
इस विरोध के बाद पूरे क्षेत्र में राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है, हालांकि ग्रामीण लगातार यह स्पष्ट कर रहे हैं कि उनका आंदोलन पार्टी-पॉलिटिक्स से परे है। उनका आग्रह है कि पहले परियोजना से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव, भूजल पर पड़ने वाले संभावित दुष्परिणाम और भारी वाहनों की आवाजाही से गांवों पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक असर का निष्पक्ष अध्ययन कराया जाए। जब तक यह नहीं होता, विरोध जारी रहेगा।
मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद ग्रामीणों के हौसले में कमी नहीं है। लोग साफ तौर पर कह रहे हैं कि यदि जनसुनवाई रद्द नहीं की गई तो संघर्ष और व्यापक होगा। यह आंदोलन अब उस मोड़ पर है जहाँ भावनाएँ ही नहीं, बल्कि अपनी जमीन बचाने का दृढ़ संकल्प प्रमुख शक्ति बनकर उभरा है।





