मिर्रीटोला : स्कूल परिसर का हाल—गंदगी और बदबू से विद्यार्थी बेहाल
नेशनल हाईवे से सटे मिर्रीटोला में कचरा और खुली नालियों से बिगड़ती स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों पर सवाल

पुरूर (बालोद) hct : तहसील मुख्यालय गुरूर के अंतर्गत जिला बालोद का ग्राम मिर्रीटोला (पुरूर) काग़ज़ों में भले ही एक प्रमुख ग्राम पंचायत के रूप में जाना जाता हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट तस्वीर पेश कर रही है। नेशनल हाईवे-30 और तीन प्रमुख मार्गों के संगम पर स्थित यह गांव आज बदबू, कचरे और उपेक्षा का पर्याय बनता जा रहा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि स्वच्छता की कमी अब केवल गलियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र तक इसकी दुर्गंध पहुंच चुकी है।
दरअसल, गांव के भीतर कई स्थानों पर खुलेआम कचरे के ढेर, सड़ी-गली जैविक अपशिष्ट सामग्री और बजबजाती नालियां दिखाई देती हैं। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब इन्हीं गंदे नजारों के बीच बच्चों का भविष्य गढ़ने वाला एक इंग्लिश मीडियम स्कूल भी मौजूद है। स्कूल परिसर के समीप नेशनल हाईवे से लगी खुली नाली और कचरे का ढेर न केवल दृश्य प्रदूषण फैलाता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी जोखिम भी पैदा करता है।
कचरा, खुली नालियां और खतरा
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से साफ-सफाई की ओर कोई ठोस ध्यान नहीं दिया जा रहा है। नियमित कचरा उठाव, नालियों की सफाई और स्वच्छता अभियान जैसे बुनियादी काम या तो काग़ज़ों में सिमट कर रह गए हैं, या फिर कभी शुरू ही नहीं हो पाए। नतीजतन, बरसात और गर्मी के मौसम में बदबू असहनीय हो जाती है और मच्छर-मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है।
गांव की पहचान केवल उसके भौगोलिक महत्व से नहीं, बल्कि वहां की सामाजिक और प्रशासनिक संवेदनशीलता से भी बनती है। मिर्रीटोला जैसे प्रमुख ग्राम में जब प्राथमिक सुविधाएं ही उपेक्षित दिखें, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि स्वच्छता के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में भी कोई ठोस पहल दिखाई नहीं देती। स्कूल के आसपास का अस्वच्छ वातावरण बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।
ग्रामीणों की चिंता, प्रशासनिक चुप्पी
यह स्थिति केवल एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि ग्रामीण स्वच्छता प्रबंधन की बड़ी तस्वीर की ओर इशारा करती है। जब पंचायत स्तर पर निगरानी और जवाबदेही कमजोर पड़ जाती है, तो उसका सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ता है। साफ-सफाई जैसी बुनियादी जिम्मेदारी के अभाव में “अंधेर नगरी” जैसे मुहावरों का जिक्र लोगों की बातचीत में आना स्वाभाविक हो जाता है, क्योंकि जमीनी हालात वही कहानी दोहराते नजर आते हैं।
नेशनल हाईवे से गुजरने वाले राहगीरों और अभिभावकों के लिए भी यह दृश्य असहज करने वाला है। एक ओर आधुनिक शिक्षा की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर स्कूल के आसपास फैली गंदगी पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करती है। यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह समस्या केवल स्वच्छता तक सीमित न रहकर स्वास्थ्य और शिक्षा—दोनों के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।






