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लॉकडाउन : खौफ या संयम

*भरत सोनी

रायपुर। कोरोना के नाम पर प्रधानमंत्री के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में चैत्र प्रतिप्रदा से लॉकडाऊन की घोषणा कर दी गई है। इसके साथ ही सम्पूर्ण देश में लॉकडाऊन हो चुका है। घोषणा के साथ ही आमजनता को घर पर रहने का आह्वान किया गया है। सरकार की ओर से आश्वस्त किया गया है कि सभी चीजें उपलब्ध होती रहेगी, फिर भी देश की जनता है कि,ये अपनी सरकार पर भरोसा नहीं कर पा रही है, आखिर क्यों ?

तुगलकी फरमान और खौफ का साया 

‘शक्ति’ का महापर्व प्रारंभ हो चुका है, आम लोगों के लिए मन्दिर व देवदर्शन बन्द हो गए हैं। ‘शक्ति’ देश के सुरक्षादारों के हाथों समाहित हो गई है।सुरक्षादारों को बडे दिनों के बाद ‘हाथ’ साफ करने का मौका मिला है। और वे इस मौके को बिलकुल खोना नहीं चाहते। कोरोना का खौफ ? प्रधानमंत्री के फरमान का खौफ ? जिंदगी का खौफ ? परिवार के पालन-पोषण का खौफ ? बेरोजगारी का खौफ ? और ना जाने क्या-क्या ? इन खौफो का खौफ कम पड़ गया था, इसलिए देश के सुरक्षादारों को भी बेखौफ हाथ की सफ़ाई करने का खौफ फैलाने का फरमान भी कई रसूखदार राजनेताओं ने दे दिया है और सुरक्षादार बेखौफ आमजनता की सुरक्षा के नाम पर हाथ की सफाई कर खौफ फैला रहे हैं।

अगर विश्व के लगभग 200 देश मिलकर कोरोना वायरस जैसे भयावह स्थिति व बीमारी का कोई ठोस उपाय नहीं निकाल पाये तो क्या इसके लिए आम जनता जिम्मेदार है।

जनता ने तुम्हें चुना है, अपने लिये, अपनी समस्या व व्यवस्था के लिए, ख़ौफ़ या भयावह स्थिति के लिए नहीं।  आम जनता को प्यार से समझना व समझाना होगा, ख़ौफ़ से नहीं। ऐसे राजनेताओं को भी समझना होगा जो ये कहते हैं कि; जो न समझे उनके लिए लाठी डंडे में तेल लगा कर रखो ! क्या इसी दिन के लिए आम जनता ने तुम जैसे इज्जतदार नेता को चुना है ? एक सरफिरे द्वारा तो गोली मारने का फरमान जारी किए जाने की भी चर्चा है। जरूर  तुम याद कर लो तुमने सत्ता में आने के लिए जनता से कौन कौन से वायदे किये हैं ? यदि वह सभी पूरे नहीं हुए तो आम जनता को भी ये अधिकार मिले कि तुम जैसे नेताओ को सरेआम …

ये दौर आम जनता को विश्वास में लेने का है, उनकी जरूरत को पूरा करने का है। उन्हें लाठी या गोली मारने का नहीं, लेकिन इन जैसे ईमानदार, नेता तो इन शब्दों का अर्थ भी नहीं जानते।
धन्य है इस देश की धरा ने कैसे कैसे लोगों को जन्म दिया है, जो संकट की इस घड़ी में आम जनता के लिए लाठी और गोली की बात करते हैं…!

सरकार जानती है कि कोरोना की भयावहता पर नियंत्रण करने में वह, ही नहीं कई देश असफल है इसलिए एकमात्र विकल्प है, लोगों को रोकना यानि लॉकडाउन। पर्याप्त चिकित्सा व आम जनता को राहत देने के लिए काफ़ी प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन कहीं-कहीं लगता है कि व्यवस्था नहीं सिर्फ घोषणाएं हो रही हैं।
राजनेता हर दिन, हर घंटे कोई न कोई घोषणा कर रहे हैं, लेकिन इन घोषणाओं पर अमल कहाँ हो रहा है, ये तो वही जान सकते हैं जो भाग्यशाली, सरकार की योजनाओं का लाभ ले चुके हों या ले रहे हो। बाकी को तो अपना परिवार, अपना जीवन असुरक्षित ही नजर आ रहा है। इसलिए वे अपने परिवार और पालन-पोषण की व्यवस्था के लिए घरों से बाहर निकल रहे हैं, लेकिन बाहर निकलते ही जिन पर आम जनता की सुरक्षा का भार है, वे ही आम जनता पर हाथ की सफाई आजमाकर लट्ठ मारकर उनका भरपूर पोषण व सुरक्षा कर रहे हैं । स्थिति यह है कि आम आदमी कराह रहा है और कराहते हुए आवाज निकल रही है कि वे वायरस से मरे या ना मरे, लेकिन वे खौफ रूपी वायरस से जरूर दम तोड़ देंगे। जबकि, ऐसे भयावह समय में देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा व पोषण की जिम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकारों की है। ऐसी स्थिति में आम जनता पर ‘खौफ का राज’ करना क्या उचित है ? यदि सरकारों से कुछ हो सकता है तो वे आम जनता को निःशुल्क चिकित्सा/स्वास्थ्य, भोजन, आवास व अन्य आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करा दें, जिनमें अनिवार्य रूप से मास्क व सेनेटाइजर जिनकी लगभग कालाबाजारी हो रही है वे आम जनता को निःशुल्क उपलब्ध हो तथा ऐसे मरीज जो कोरोना के संक्रमण से ग्रसित पाए जाते हैं; उनका सम्पूर्ण इलाज अविलंब निःशुल्क हो, फिर आम जनता 21 दिन नहीं और कई दिनों तक भी देश की सरकार व राजनेताओं पर भरोसा कर अपने घर पर ही रहेगी। किसी को भी सड़कों पर निकल कर आम गुंडों की तरह लठ्ठ खाने की जरूरत नहीं होगी।

सम्पूर्ण देश में समस्या गम्भीर है ये सब जानते हैं, लेकिन बड़े बोल सिर्फ उनके निकल सकते हैं जिनका पेट भरा है, जिनके बटुए भरे हैं, लेकिन जो जमीनी सतह पर इन समस्याओं को दो पाटन की स्थिति में झेल रहा है, वो देश का गरीब परिवार, निम्न आय वर्ग ही है। उनके लिए क्या गरीबी मारे या कोरोना ?

देश के इज्जतदार राजनेताओं देश की इस व्यवस्था के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो वह अवसरवादी राजनेता ही है जो आम जनता को वोट बैंक समझते हैं। 1₹ या 2₹ किलो चावल या गेहूँ देकर नेता समझते हैंं कि हमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, अब ये हमारा फरमान न मानें तो हमें पूरा अधिकार है इन पर लट्ठ चलाए। फिर इनका हाथ टूटे, पैर टूटे, कमर टूटे या जो भी स्थिति हो इससे हमें क्या ? इन्हें तो वही करना है जो हमने कह दिया। ऐसा नहीं है कि सत्ता चलाने के लिए लट्ठ चलाना आवश्यक ना हो, किन्तु वह लट्ठ शासक की निरंकुशता प्रगट ना करें। निःसंदेह, देश के सुरक्षादार, लट्ठमार लोग बहादुर है, लेकिन बहादुरी का भी समय होता है, आज सम्पूर्ण देश आपातकाल जैसी स्थिति से गुजर रहा है और इससे हम सभी को मिलकर निपटना है, अपनों को ही निपटाना नहीं। कहा जाये तो आम जनता पर जब तक कोई अनिवार्य स्थिति नहीं हो जाती, बल का प्रयोग करना उचित नहीं है। मानवता, इंसानियत, कर्तव्यनिष्ठा व आपसी सूझबूझ भी कोई चीज होती है।

आखिर सिर्फ तुम्हे ही नहीं, सभी को अपने जीवन व परिवार से प्यार है और सभी शासन के दिशा निर्देश का पालन भी कर रहे हैं।

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