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Chhattisgarh

बालोद : सागर हॉस्पिटल में स्वास्थ्य से खिलवाड़, सेहत के सौदे में व्यवस्था मौन !

बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों की मौजूदगी के किए गए सिजेरियन ऑपरेशन की तस्वीरों ने खड़े किए गंभीर सवाल

स्वास्थ्य विभाग की आँखमिचौली और आँखों के सामने पनपते अवैध को वैध कराने का कारोबार अब चंद सिक्कों की खनक भर नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का रूप ले चुका है, जिसके सीधे शिकार गरीब और आम जनता हो रही है। परिणाम यह है कि अनेक लोग अपनी जान और माल दोनों से हाथ धो बैठे हैं। पीड़ितों ने अपनी व्यथा कई स्तरों पर व्यक्त की, किंतु अस्पताल संचालक की कथित ऊँची पहुँच और अधिकारियों तक मज़बूत पहुँच के कारण हर आवाज दबती चली गई। अंततः कुछ पीड़ितों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर अपनी आपबीती हमारे समक्ष रखी, जिससे बालोद शहर के बीचो-बीच संचालित सागर अस्पताल की कई गंभीर परतें खुलती चली गईं।

बताया जाता है कि यह एक निजी अस्पताल है, जहाँ मरीजों की जान जोखिम में डालने में अस्पताल प्रबंधन द्वारा कोई कोताही नहीं बरती जा रही। इसके बावजूद यह अस्पताल उसी ढर्रे पर संचालित है, जहाँ न तो स्वास्थ्य विभाग की कोई वास्तविक पहुँच दिखाई देती है और न ही कोई ठोस कार्रवाई होती है। इससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि कहीं जिला स्वास्थ्य विभाग इस अस्पताल प्रबंधन से भयभीत तो नहीं, या फिर कथित ऊँची पहुँच के चलते स्वयं को असहाय समझ बैठा है।

कथित सिज़ेरियन ऑपरेशन और बिना विशेषज्ञ टीम का सच

इसी बीच एक और अत्यंत गंभीर और चिंताजनक आरोप सामने आया है। शिकायतकर्ताओं के अनुसार डॉ. खोटेश्वर की पत्नी डॉ. मंजू (क्षत्रिय) खोटेश्वर (बी.ए.एम.एस.) तथा उनके सहयोगी भोज ठाकुर द्वारा सिज़ेरियन जैसे जटिल ऑपरेशन स्वयं किए जाने की तस्वीरें भी सामने आई हैं।

सबसे भयावह तथ्य यह है कि इन कथित ऑपरेशनों के समय न तो कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ, न कोई निश्चेतना विशेषज्ञ (एनेस्थीसिया स्पेशलिस्ट) और न ही किसी सर्जन की विधिवत टीम मौजूद थी। जबकि यह एक सर्वविदित नियम है कि सिज़ेरियन जैसे ऑपरेशन के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम का होना अनिवार्य होता है।

जानकारी के अनुसार डॉ. मंजू (क्षत्रिय) खोटेश्वर एक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और उनके सहयोगी भोज ठाकुर के पास भी किसी मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री का स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यदि यह आरोप सत्य पाया जाता है तो यह न केवल चिकित्सा नियमों का, बल्कि मानव जीवन के साथ सीधा खिलवाड़ है।

चेतावनी के बाद भी सन्नाटा क्यों?

15/04/25 को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा जारी चेतावनी पत्र में स्पष्ट कहा गया था कि तीन दिनों के भीतर अस्पताल की कमियाँ सुधारकर उचित दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएँ, अन्यथा नर्सिंग होम एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी और इसकी पूरी जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की होगी। किंतु हैरानी इस बात की है कि इस चेतावनी के बावजूद अब तक न तो सुधार के ठोस प्रमाण सामने आए और न ही किसी प्रकार की प्रभावी दंडात्मक कार्रवाई की गई।

बालोद जिले के पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा मामले पर कुल 10 बिंदुओं पर शिकायत दर्ज कराई गई थी। उसी के आधार पर दिनांक 01/01/25 को एक जाँच टीम सागर अस्पताल में पहुँची और निरीक्षण के पश्चात 21/01/25 को रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। शिकायतकर्ता का कहना है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कराने में भी लगभग 11 माह का लंबा इंतजार करना पड़ा। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली कछुआ चाल से भी धीमी बनी रही और कथित अनियमितताएँ कुकुरमुत्ते की तरह फैलती चली गईं।

जाँच रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष (रिपोर्ट के अनुसार) :

  1. सागर हॉस्पिटल, गंजपारा, बालोद में किए जा रहे ऑपरेशन अधिकृत स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा न होकर महिला चिकित्सक द्वारा किए जाने की जानकारी प्राप्त हुई।
  2. संस्थान में कोई भी एम.बी.बी.एस. चिकित्सक पदस्थ नहीं पाया गया।
  3. अस्पताल के दस्तावेजों में संचालक के अलावा किसी भी डॉक्टर का उल्लेख नहीं है और इसकी सूचना मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय को नहीं दी गई।
  4. जाँच के दौरान अस्पताल संचालक व्हीलचेयर पर उपस्थित पाए गए।
  5. मरीजों के अनुसार, संचालक की पत्नी डॉ. मंजू (बी.ए.एम.एस.) द्वारा ही नियमित राउंड और उपचार किया जाता है।
  6. नर्सिंग होम एक्ट के अंतर्गत जारी पंजीयन प्रमाण पत्र प्रदर्शित नहीं किया गया।
  7. कर्मचारियों के कार्य-समय और नाम की विधिवत जानकारी चस्पा नहीं की गई।

नर्सिंग होम एक्ट क्या कहता है?

जाँच अधिकारी द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि उपर्युक्त सभी तथ्य छत्तीसगढ़ राज्य उपचर्यागृह तथा रोगोपचार संबंधी स्थापनाएँ अनुज्ञापन अधिनियम 2010 एवं नियम 2013 (नर्सिंग होम एक्ट) का उल्लंघन हैं। इसके अंतर्गत जुर्माने से लेकर अनुज्ञा निरस्तीकरण और अस्पताल सील करने तक का प्रावधान है।

मानव जीवन की कीमत क्या सिर्फ़ एक फाइल है?

इसके बावजूद अभी तक स्थल पर कोई ठोस और प्रभावी कार्रवाई नजर नहीं आती। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न स्वयं जन्म लेता है कि क्या आम नागरिक की जान व स्वास्थ्य अब केवल फाइलों और चेतावनियों तक सीमित हो गया है? जब नियम तोड़े जाएँ और व्यवस्था मौन साधे रहे, तो यह मौन किसी की रक्षा करता है – या किसी को संरक्षण देता है?

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