प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को दिल्ली में एक रैली को संबोधित करते हुए सीएए, एनआरसी और डिंटेशन कैम्पों को लेकर इतनी बार झूठ बोला कि उन्होंने दुनिया के सबसे झूठे माने जाने वाले अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को भी पीछे छोड़ दिया।
सीएए और एनआरसी को लेकर जहां पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है, वहीं प्रधानमंत्री मोदी इस व्यापक विरोध को रोकने के लिए झूठ पर झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने आज तक अपने किसी एक भाषण में झूठ शब्द का कभी इतनी बार इस्तेमाल नहीं किया, जितनी बार इस रैली में किया।
पहला झूठः
“मैं 130 करोड़ देश वासियों को बताना चाहता हूं कि 2014 में जब से मेरी सरकार बनी है, कभी भी एनआरसी शब्द पर चर्चा तक नहीं हुई।”
यह सरासर झूठ है, इसलिए कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा। इसके अलावा, मोदी के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद और संसद के बाहर कई बार यह एलान किया है कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा और घुसपैठियों को चुन-चुनकर देश से बाहर फेंका जाएगा।
दूसरा झूठः
देश में डिटेंशन कैम्पों के वजूद से ही इनकार करते हुए कांग्रेस पर अफ़वाह फैलाने का आरोप लगाते हुए पीएम मोदी ने कहाः “सिर्फ कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों द्वारा उड़ाई गई डिटेंशन सेन्टर वाली अफ़वाहें सरासर झूठ है, बद-इरादे वाली है, देश को तबाह करने के नापाक इरादों से भरी पड़ी है, यह झूठ है, झूठ है, झूठ है।” देश के मुसलमानों को न डिटेंशन सेन्टर में भेजा जा रहा है, न हिंदुस्तान में कोई डिटेंशन सेन्टर है। भाईयों और बहनों, यह सफ़ेद झूठ है, यह बद-इरादे वाला खेल है, यह नापाक खेल है। मैं तो हैरान हूं कि ये झूठ बोलने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।”
प्रधान मंत्री मोदी ने यह दूसरा सफ़ेद झूठ बोला। इसलिए कि विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में यह उल्लेख किया गया है कि असम में कई डिटेंशन कैम्प पहले से ही मौजूद हैं और मुम्बई और बैंगलोरू में इनका निर्माण किया जा रहा है।
2018 में बीबीसी ने असम के डिटेंशन कैम्पों से बाहर आए लोगों से बातचीत पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री रिपोर्ट पेश की थी। इसके अलावा, इंडियन एक्सप्रेस और मुम्बई मिरर ने भी इसी तरह की स्टोरी छापी थीं।
10 जुलाई 2019 को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि देश में आए जिन अवैध लोगों की नागरिकता की पुष्टि जब तक नहीं हो जाती और उन्हें देश से बाहर नहीं निकला जाता, तब तक राज्यों को उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखना होगा। उन्होंने कहा कि 9 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने प्रदेश में डिटेंशन सेंटर बनाने के लिए डिटेंशन सेन्टर का मॉडल दिया गया है।
तीसरा झूठः
“अगर आप जलाना चाहते हैं तो मोदी का पुतला जलाएं, लेकिन ग़रीबों को नुक़सान नहीं पहुंचाएं। आपको पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंकने से और उन्हें ज़ख़्मी करने से क्या मिलेगा”?
प्रधानमंत्री ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस के हाथों मारे गए प्रदर्शनकारियों के बारे में एक भी शब्द नहीं बोला। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज़ की भरमार है, जिनमें बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर बर्बरता करते हुए और उन पर पत्थर फेंकते हुए देखा जा सकता है। यहां तक कि पुलिस घरों में घुसकर लोगों को मारपीट रही है और तोड़फोड़ कर रही है।
चौधा झूठः
“एनआरसी का देश के मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है।”
पीएम मोदी ने यह दावा ऐसी स्थिति में किया है, जब असम में एनआरसी के तहत भारत के लाखों मुस्लिम अपनी नागरिकता खो चुके हैं, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के परिजन और सेना में सेवा करने वाले कई अन्य परिवार भी शामिल हैं।
पांवचा झूठः
“सिर्फ़ कांग्रेस और अर्बन नक्सल अफ़वाहें फैला रहे हैं।”
इस तथ्य को छोड़ अगर नज़र अंदाज़ भी कर दें कि प्रधानमंत्री ने उन करोड़ों प्रदर्शनकारियों पर आसानी से “शहरी नक्सलियों” का ठप्पा लगा दिया है, जो सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, कांग्रेस पर विरोध प्रदर्शन को हवा देने की बात झूठ और एक मज़ाक़ से ज़्यादा कुछ नहीं है। इसलिए कि कांग्रेस और विशेष रूप से उसके नेता राहुल गांधी को तो इसलिए आलोचना का निशाना बनाया जा रहा था कि वह विरोध प्रदर्शनों में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं और ऐसे वक़्त में देश छोड़कर दक्षिण कोरिया चले गए हैं।