Chhattisgarh
वर्ष 2016 में हो चुकी महाजेंको की जन सुनवाई : रमेश अग्रवाल।
महाजेंको की जन-सुनवाई के नाम पर बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा।

रायगढ़। जहाँ एक तरफ प्रदेश की बची खुची वनसंपदा को बचाने के लिए देश भर के पर्यावरण विद,समाजिक कार्यकर्ता स्थानीय ग्रामीणों के सांथ एक जुट हो रहे है, तो दूसरी तरफ सरकार कुछ उद्योगपतियों की आड़ में अंधाधुंध विकास के नाम पर जल-जंगल जमीन को पूरी तरह नष्ट करने पर तुली है। प्रदेश में बस्तर से लेकर रायगढ़ जिले को इस अंधे विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। इसी बीच किरन्दुल और तमनार के सघन वन क्षेत्र को चोरी-छिपे अदानी को बेचे जाने की सरकारी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
बस्तर (किरन्दुल) में सामूहिक विरोध के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने थोड़ी संवेदनशीलता दिखाते हुए फिलहाल अदानी की एंट्री पर रोक लगा दी है। इसके बाद बारी आती है,रायगढ़ जिले के तमनार तहसील क्षेत्र के वनग्रामों में महाजेंको की जनसुनवाई की। जहां कम्पनी को एक इंच जमीन देने को ग्रामीण तैयार नही हैं। दूसरी तरफ जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का बड़ा समूह कम्पनी के भावी जनसुनवाई की प्रतीक्षा में पलक-पावड़े बिछाए बैठे है।
इधर तमनार में महाजेंको के विरोध के बीच एक चौकाने वाली सुनने में आई है, कि वर्ष 2016 में महाजेंको की जनसुनवाई हो चुकी है। पहली बार ग्रामीणों के द्वारा कम्पनी के व्यापक विरोध पर नजर रखने वालों को सुनने में अजीब जरुर लग सकता है। लेकिन वास्तविकता यही है कि इस खदान के लिये तो जन सुनवाई २०१६ में ही हो चुकी।
