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Chhattisgarh

कॉर्पोरेटीकरण के लिए सूदखोर मुनीम का ‘बही खाता’ जनविरोधी और अपारदर्शी : माकपा

रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने संसद में आज पेश बजट को जनविरोधी और मजदूर-किसान विरोधी बताते हुए देश के कार्पोरेटीकरण के लिए निजीकरण की लीक पर चलने वाला बजट करार दिया है।
पार्टी ने कहा है कि बजट में एक ओर तो कॉर्पोरेटों को करों में भारी छूट दी गई है और दूसरी ओर राजस्व प्राप्तियों को जुटाने के लिए देश के बहुमूल्य सार्वजनिक उद्योगों का विनिवेशीकरण-निजीकरण किया जा रहा है और पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाकर जनता पर चौतरफा महंगाई का बोझ लादा गया है। वास्तव में इस बजट के जरिये कॉर्पोरेट भारत और विदेशी वित्तीय हितों को चुनावी उपहार दिया गया है, जिसने भाजपा के लिए भारी चुनावी फंडिंग की थी। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर कॉर्पोरेटों का शिकंजा और मजबूत होगा।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि भाजपा सरकार ने इस बजट को बही-खाता कहा है। इससे ही स्पष्ट है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को किसी सूदखोर मुनीम की तरह चलाना चाहती है। इसलिए पिछले वित्तीय वर्ष के ख़त्म होने के तीन माह बाद भी राजस्व प्राप्तियों को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है और इस वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में बजट आबंटन को छुपाया गया है। इस प्रकार यह सरकार बजट की पारदर्शिता को भी खत्म कर रही है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि रेलवे में पीपीपी मॉडल को लाना पिछले दरवाजे से रेलवे का निजीकरण करना ही है। रिटेल, बीमा, उड्डयन और मीडिया क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश से देशी उद्योग बर्बाद होंगे और बेरोजगारी बढ़ेगी। इससे उपजने वाले असंतोष को कुचलने के लिए ही श्रम सुधारों के नाम पर कॉर्पोरेटों की मंशा के अनुरूप मजदूरों के अधिकारों में कटौती के लिए श्रम कानूनों को बदला जा रहा है। मनरेगा के बजट आबंटन में 1000 करोड़ रुपयों की कटौती से गांवों में पिछले वर्ष के बराबर भी रोजगार पैदा नहीं होगा। किसानों को लाभकारी समर्थन मूल्य देने से इस सरकार ने इंकार कर दिया है और उनकी कर्ज़मुक्ति की कोई योजना उसके पास नहीं है। कृषि संकट से निपटने का काम ‘जीरो बजट फार्मिंग’ के नाम पर किसानों पर ही छोड़ दिया गया है। इस सरकार द्वारा शिक्षा नीति को बदलने का सीधा अर्थ है, शिक्षा को महंगा करना और इसमें हिंदुत्ववादी दृष्टिकोण घुसाना।
माकपा नेता ने कहा है कि इस बजट में आर्थिक मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था, कृषि संकट झेल रहे किसानों, औद्योगिक बदहाली से तंगहाल उद्योगों और बेरोजगारी से त्रस्त युवाओं के लिए कुछ भी नहीं है। वास्तव में तो दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के लिए आबंटन में तो पिछली बार की तुलना में कटौती ही की गई है। यहां तक कि अंतरिम बजट की तुलना में स्वच्छ भारत अभियान में 4500 करोड़ रुपयों की कटौती की गई है। सामाजिक कल्याण के कार्यों का सोशल स्टॉक एक्सचेंज के जरिये व्यावसायीकरण किया जा रहा है। कुल मिलाकर यह बजट देश में आर्थिक असमानता को और चौड़ा करेगा।
माकपा ने कहा है कि इस बजट के जनविरोधी प्रस्तावों पर अमल का हर कदम पर विरोध किया जाएगा और सड़कों पर आम जनता को लामबंद किया जायेगा।

*संजय पराते
सचिव, माकपा, (छ.ग.)

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