Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Chhattisgarh

लॉक डाउन का कहर : और सरकार ने ‘जमलो” की मौत पर 5 लाख देने का ऐलान किया !

ईमानदारी से जवाब दीजियेगा साहब, इन मौतों का जिम्मेदार कौन है ?

ऐ इंसान, तू मर चाहे भूख से मरे या फिर नक्सली करार दिया जाकर मर… तू मरने के लिए ही जन्मा है, क्योंकि तेरी मौत से सरकार को घड़ियाली आंसू बहाकर राजनीति करने में बड़ा मजा आता है। मौत तो एक दिन सबकी होनी ही है। चाहे वह स्वाभाविक हो या दुर्घटना से अथवा आत्महत्या या फिर हत्या से, लेकिन जब जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले और बिना किसी योजना, ठोस इंतजाम के समूचे देश को भावुकता की दरिया में बहाकर उसे एक ऐसे मुहाने पर ले जाकर छोड़ दे जहाँ सिर्फ और सिर्फ लाचारी और मज़बूरी में मौत ही मिले तो…?

मृतक जमलो की आधार कार्ड और उसके माता पिता

राजधानी। जमलो यह नाम है उस 12 साल की मासूम बच्ची का जो छत्तीसगढ़ से बीजापुर के आदेड गांव की थी, परिवार की आर्थिक तंगी से हतोत्साहित पढ़ने-लिखने की उम्र में जीवन गुज़र के लिए अपने गांव से मज़दूरी करने तेलंगाना के पेरुर गांव गयी थी। व्यवस्था की मार इतनी कि अरबों रुपये खर्च कर भी हमारी सरकार उसकी पढ़ाई का ज़िम्मा नहीं उठा पायी और तो और हमारी व्यवस्था ने उस मासूम को एक कुशल मज़दूर भी नहीं समझा।

फोटो साभार संवाद न्यूज़

जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन भाग – 02 लागू होने के बाद वो मासूम अपने गांव के 11 लोगों के साथ 100 किमी का सफर जंगली और पहाड़ी रास्ते से तय करते हुए पैदल ही अपने गांव लौट रही थी। लगातार तीन दिनों तक पैदल सफर कर 12 साल की ये बच्ची जमलो बीजापुर के मोदकपाल इलाके में पहुंची ही थी कि डीहाईड्रेशन का शिकार हो गयी, जिसके बाद बच्ची की मौत हो गयी।

धर कोरिया जिले से खबर मिली है कि रेलवे स्टेशन के कुछ दूरी उदलकछार के पास रेल्वे ट्रेक पर दो श्रमिकों का शव मिला है, जबकि दो अन्य बाल-बाल बच गए हैं। पूछताछ से पता चला है कि, ये श्रमिक मरवाही पेंड्रा गौरेला ज़िला में काम करते थे और सूरजपुर ज़िले के गेवरा उजगी पहुँचने के लिए पूरी रात पटरियों पर चलते रहे, लेकिन सुबह मालगाड़ी की चपेट में आ गए।

आप को बता दें कि उदलकछार से दर्रीटोला के बीच सुबह मालगाड़ी की चपेट में आने से ट्रेक पर चल रहे दो श्रमिक कमलेश्वर राजवाड़े और गुलाब राजवाड़े की मौत हो गई, जबकि साथ ही चल रहे दो अन्य श्रमिक बाल बाल बच गए। यह चारों श्रमिक पेंड्रा मरवाही गौरेला ज़िला के गोरखपुर स्थित खाद बीज बनाने वाली कंपनी में काम करते थे.और बीती शाम खाना खाकर रेल्वे ट्रेक पर रात भर चलते हुए घर की ओर जा रहे थे।

उक्त दोनों घटना ने दिलदहला कर रख दिया है, श्रमिकों के साथ हालात ही अलग हैं, इस लॉकडॉउन की जद में सबसे ज़्यादा नुक़सान कोई झेल रहा है तो वह श्रमिक ही है, और उनके मुआवज़े के लिए किसी भी सरकार के पास योजना तक नहीं है, अफ़सोस कि सोच तक नहीं है। अनाज यदि मिल रहा है तो वह बेहतर है, लेकिन जो इन श्रमिकों का अर्थ चक्र टूटा है, उसके लिए कोई मुआवज़ा नहीं है..

https://chat.whatsapp.com/LlQ2AGOSfSQI90mtErEfLQ

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page