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Chhattisgarh

किसानों के साथ सरकार का छलावा हुआ जग जाहिर- मयूरेश केसरवानी भाजपा कार्यकर्ता।

एक समय था जब एक किसान गर्व से कहता था कि “मेरा धान मेरा अभिमान”, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में भुपेश सरकार ने धान खरीदी पर दुर्भावनावश इतनी बंदिशें और इतने नियम बना दिये हैं कि आज किसान को अपना अभिमान भी अपमान की भांति प्रतीत हो रहा है। वर्तमान भुपेश सरकार द्वारा किये जा रहे किसानों के साथ छलावा अब जग जाहिर होता जा रहा है।

*लक्ष्मी नारायण लहरे (कोसीर)

2500 का वादा पुरा करने में असमर्थ भुपेश सरकार अपने वादाखिलाफी को मोदी सरकार की नाकामी बताकर अपना पल्ला झाड़ने पर लगे हैं। वहीं विपक्षी दबाव के आगे जब सरकार को झुकना पड़ रहा है, तो नित नए-नए दांव पेंच लगाकर किसानों को उनके हकों से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। कभी 7 क्विंटल के मौखिक आदेश का बहाना, कभी रकबे में कटौती का नियम, कभी किसानों के स्वयं के धान को जबरन धरापकड़ी, तो कहीं पर धान के क्वालिटी में जबरन के मिनमेख निकाना जाना, तो वहीं एक दिन में एक किसान द्वारा 80 क्विंटल ही तक ही बेचे जाने का नया फरमान और अंत में धान सोप्टवेयर में लिमिट का नया नियम। कुल मिलाकर समस्त मोर्चों पर वर्तमान की विफल इस सरकार का एक ही प्रयास है कि किसी भी तरह से एक किसान को उनके हकों से वंचित किया जाए। यहां तक कि बोरियों के वजहों से भी धान को पकड़ा जा रहा है।

मयूरेश केसरवानी भाजपा कार्यकर्ता

किसानो को चोर साबित करने पर पुरी तरह शासन प्रशासन अपनी ताकत झोंक चुकी है। सत्ताधारी दल के स्थानीय प्रतिनिधी रकबा कटौती को लेकर प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हैं और अपने आला नेताओं से मिलकर बात रखते हैं जिस पर बकायदा मुख्यमंत्री द्वारा कहा जाता है कि रकबा के संदर्भ में किसी को परेशान ना किया जाए जो सिर्फ एक ढकोसला से ज्यादा कुछ भी नही है। जब रकबा के संदर्भ में किसानों के हितों में मुख्यमंत्री महोदय को फरमान जारी करना था तो क्या कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी आदि को सपना आया है और उन्हे शौक है क्या जो किसानों को जबरन परेशान करेंगे।

एक सोची समझी साजिश के तहत किसानों के रकबे में कटौती की जा रही है जिसके कारण किसानो को भारी नुकसान हो रहा है। रकबा कटौती के नियमों के तहत जब जबरन किसानों के रकबे में कटौती की गई तब किन्ही सत्ताधारियों के भी रकबों में कटौती हो गई वहीं से किसान नेता का तमगा पाए सत्ताधारी दल के कुछ लोगो ने अपना नाम तो जोड़वा लिया लेकिन अब आम किसानो के साथ हो रहे अत्याचार अब उन्हे नही दिख रहे हैं। जानबुझकर विलंब से धानखरीदी करने वाले भुपेश सरकार आए दिन नए नए नियमों को ढाल बनाकर जिस प्रकार से किसानों के साथ अत्याचार पर उतारू है आने वाले त्रिस्तरीय चुनावों में किसान इन लोगों को उनका स्थान जरूर बताएगी।

किसानों के धान को जिस तरह से पकड़ा जा रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह धान नही बल्कि गांजा है। वर्तमान सरकार में जिस तरह से जुआ सट्टा पर कोई लगाम नही है और बेतहाशा शराब का रेवेन्यु सरकार पा रहा है उससे शराबबंदी की कोई उम्मीद करना बेमानी है। साल भर में रोजगार के नाम पर सिर्फ कागजों में विज्ञापनबाजी करने वाली सरकार ने सबसे ज्यादा यदि किसी के साथ छल किया है तो वह किसान है। किसान फसल लगाना जानता है तो वह काटना भी जानता है आने वाले समय में किसानों के साथ जो लोग गलत कर रहे हैं उनके सत्तारूपी फसल को किसान ही काटेगा और सत्ता से बेदखल करेगा।

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