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छत्तीसगढ़ में पीएम मोदी ने कहा, अर्बन नक्सलियों के बच्चे विदेश में पढ़ते हैं, आदिवासियों के बच्चों को थमा रहे बंदूक…!

*तो हाँ मैं नक्सली हूँ…

तुम कहते हो मैं नक्सलवादी हूँ
शहरी नक्सली नेटवर्क का हिस्सा हूँ
तुम्ही बताओ नक्सली किसे कहते हैं?
क्या है नक्सली होने की परिभाषा ?
दोष मढ़ने से पहले अपनी ज़ेहन टटोलना
और झाँकना कि असल नक्सली कौन है?
शहरी बम धमाकों से तुम सब आतंकी नही होते।
पर जंगल में रहने वाले सब तुम्हे नक्सली लगते हैं।
जंगल में सिर्फ नक्सलवादी नही रहते साहब!
आम निर्दोष, निरीह आदिवासी भी रहते हैं।
उतने ही देशभक्त और जिम्मेदार
जितने सीमा में तैनात सिपाही।
सदियों से अपने जल जंगल ज़मीन के संरक्षक!
तुम्हें कभी सिखाया नही गया,
पर तुम्हे सीखनी पड़ेगी,
कि अपने जल जंगल ज़मीन की,
रक्षा करना भी देशभक्ति होती है।
आम आदिवासी के हक़ में कुछ कहना
उनके संवैधानिक हितों के संरक्षण की बात करना
हो रहे शोषण अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना
जल,जंगल,ज़मीन के संरक्षण की बात करना
गर तुम्हारी नज़रों में नक्सली होना है!
तो हाँ मैं नक्सली हूँ।
और तुममे हिम्मत है….तो साबित करो!!

*(वर्षा सन्तोष कुंजाम ने सूचना का अधिकार से सम्बद्ध 5th नेशनल कन्वेंशन भुनेश्वर उड़ीसा में अपने स्पीच की समाप्ति के साथ इसे बोला था।)

छत्तीसगढ़ में पीएम मोदी ने कहा, अर्बन नक्सलियों के बच्चे विदेश में पढ़ते हैं, आदिवासियों के बच्चों को थमा रहे बंदूक…!

इधर आ ऐ सितमगर, हुनर आजमाएं।
तू तीर आजमा; हम जिगर आजमाएं।।

साहब जी, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि, कोई भी माँ अपने कलेजे के टुकड़े को कोख से पॉकेटमार, चोर, डकैत, हत्यारा, आतंकवादी अथवा नक्सली पैदा नहीं करता। ये सिस्टम ही उसे समाज विरोधी बनाता है, रही बात कि (अर्बन) नक्सली अथवा माओवादी; सेना के जवानों को क्यों मारते हैं ..? तो मेरे दृष्टिकोण से शायद ही ऐसा कोई माँ का लाल होगा जो अपनी धरती, अपनी माँ, अपनी बेटी या अपनी बहन अथवा बहू की सामूहिक बलात्कार का नजारा अपनी आँखों के सामने देखे, उसके मातृत्व की परीक्षा उसके स्तन को निचोड़े जाने तक बर्दाश्त करता रहे, कोई बुजूर्ग पिता, किसी के नाबालिग पुत्र, कोई विद्यार्थी को मारकर उसकी लाश को गलाने के लिए रसायनिक तत्व का उपयोग को कैसे बर्दाश्त कर सकता है, कैसे कोई माँ अपनी जवान बेटी की सामूहिक बलात्कार के बाद उसके गुप्तांग को हथियार डालकर चीर देने की विभत्स दृश्य को सह सकती है, कैसे और क्यों…? क्या इसलिए क्योंकि वे आदिवासी हैं…? या फिर वे जिस जल-जंगल-जमीन को अपना मानकर वर्षों से वहाँ निवासरत हैं…??
एक बात बताना साहब जी, बस्तर में अब तक माओवाद किसकी देन है…? क्या हकीकत में जिस क्षेत्र में बस्तर की सरजमीं पर अकूत प्राकृतिक सम्पदा छिपी है उस क्षेत्र विशेष में अथवा उसके आसपास रहने वाला हर आदिवासी माओवादी/नक्सली है…
चलिए आज हम उन जवानों के लिए उनके पक्ष में मानव अधिकार की बात करते हैं…, आप बस्तर से फोर्स हटवाकर राष्ट्रपति शासन लागू करवाने की पहल करें। हम समूचे बस्तर में शांति बहाली की पहल करते हैं…
साथ ही शर्त यह भी होगी कि अब तक जितने भी निर्दोष मारे गए हैं उसकी निष्पक्ष एवं न्यायिक जाँचकर दोषी लोगों को सजा दिलवाया जावे तथा अब तक जितनी भी जमीनों को कार्पोरेट घरानों के लिए काबिज किया/करवाया गया हो नि:शर्त उनके वास्तविक हकदारों को वापस दिलवाया जावे।

रही बात लाल सलाम कहने वाले नक्सली और अर्बन नक्सली की कुछ 95% लोगों के मन में इस बात को छत्तीसगढ़ की सत्तारूढ़ पार्टी ने घर कर दिया है कि “लाल सलाम” कहने वाले नक्सली अथवा नक्सल समर्थक हैं!
आपको इस बात से अवगत करा दूँ कि :- “लाल सलाम” एक अभिवादन है, क्रांति का…। जिस तरह से आप एक दूसरे से मिलते हैं तो अभिवादन स्वरूप – नमस्कार, राम-राम, सतश्री अकाल, जय जोहार, हाय-हेल्लो, दंडकम, प्रणाम, Good Morning…आदि कहते हैं उसी तरह सरकार की गलत नीतियों के खिलाफत रहने और प्रताड़ित जनता के हित की बात करने वाले क्रन्तिकारी लोग आपस में लाल सलाम कहते हैं। समय, काल और परिस्थिति के अनुसार अभिवादन का यह तरीका बदलता रहा है।
पहले के क्रन्तिकारी वंदे मातरम कहते थे अब के लाल सलाम कहते हैं।

कोई शक या सवाल…?
सवाल होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि मुझे वो कोर्स पसंद नहीं जिसमे कोई शक या सवाल हो।

दिनेश सोनी।

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