चंदे के दम पर हुआ सेंट जेवियर्स का कार्यक्रम। कार्ड तक में कर डाला एडवरटाईजमेंट।
*अंकित सोनी।
करगीरोड कोटा (बिलासपुर)। शायद ये पहला मौका हो जब एक शिक्षण संस्थान ने अपने वार्षिक कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए नगर भर में अभिभावकों से चंदा इकट्ठा किया हो और हद तो ये हो गई कि स्कूल के कार्यक्रम का जो आमंत्रण कार्ड छपा उसमें भी एक नीजि ढाबे का विज्ञापन चिपका दिया गया !
अपने आप को शहर का सबसे बड़ा अंग्रेजी माध्यम का स्कूल कहे जाने वाले सेंट जेवियर्स ने अपने फंड से कुछ नहीं किया पूरे कार्यक्रम के लिए चंदा और विज्ञापन से भी फंड वसूल लिया गया। शिक्षण संस्थान के मूल्यों का इससे बड़ा अवमूल्यन शायद ही कहीं देखने को मिले। जानकारी ये भी प्राप्त हुई कि स्कूल प्रबंधन ने अपने यहां के दो महिला शिक्षकों की नियुक्ति सिर्फ इस काम के लिए लगा रखी थी कि कोई भी पेरेन्टस या नागरिक स्कूल के बाॅस से ना मिल पाए।
नगर मे स्थित सेंट जेवियर्स स्कूल में कल वार्षिकोत्सव का आयोजन हुआ । इस आयोजन में स्कूल के बाॅस के साथ ही विधायक और नेता भी शामिल हुए। स्कूल प्रबंधन ने इस आयोजन के लिए पूरे नगर भर बच्चों के पालकों से जहां से जितना मिला चंदा इकट्ठा किया। चंदा वसूलने के लिए स्कूल प्रबंधन ने अपने आमत्रण कार्ड में उपर एक ढाबे के विज्ञापन की पर्ची भी चिपका दी।
साल भर मोटी फिस वसूल करने वाले शिक्षण संस्थान ने कार्यक्रम में भाग लेने वाले हर बच्चे से ड्रेस के नाम पर भी पांच सौ से हजार रूपए वसूले उसके बाद स्कूल के कुछ लोगों को चंदा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी दी गई तब जाकर कहीं कार्यक्रम आयोजित हो पाया।
नगर में सामाजिक संस्थाओं तक ने कभी इस प्रकार का चंदा इकट्ठा नहीं किया जैसे सेंट जेवियर्स ने अपने कार्यक्रम के लिए कर डाला, वैसे भी ये कोई चैरेटी प्रोग्राम तो था नहीं जिसके लिए प्रबंधन इस स्तर तक जाता ये उसका अपना नीजि कार्यक्रम था फंड नहीं था तो नहीं कराना था या उतना ही कराना था जितना उसके पास फंड था, लेकिन ब्रांडिग और मार्केटिंग के इस दौर में ऐसे स्कूल कैसे पिछे रह सकते हैं जिनका काम ही व्यवसाय करना हो। कुछ पालकों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि – “हमें नहीं पता था इस तरह का कार्यक्रम होगा। स्कूल ने यहां पहली बार कार्यक्रम कराया लेकिन ना तो पानी की व्यवस्था थी ना ही बैठने की। चंदा तो हम सब से लिया गया कम से कम पानी तो पिला देते।” स्कूल का पूरा ध्यान सिर्फ मंच पर बैठे लोगों तक ही सीमित था। कार्यक्रम पांच बजे होना था लेकिन बच्चों को दो बजे से स्कूल बुला लिया गया और कार्यक्रम खतम होते तक बच्चे भूखे-प्यासे आठ बजे तक स्कूल में ही हाजरी देते रहे। स्कूल ने बाहर खाने-पीने का स्टाल लगा दिया था कि खाना-पीना हो तो बाहर जाओ और अपने पैसे से खाओ। पता ये भी चला है कि प्रबंधन ने बीस बीस रूपये का कूपन रखा था।