गुरूर सरपंच संघ चुनाव में कांग्रेस के गुरुर को लगा झटका।
भाजपा समर्थक डाकेश साहू ने 47 मतों से जीत दर्ज की, कांग्रेस विधायक प्रतिनिधि टोमन साहू को मिली 25 वोटों से करारी शिकस्त। जनपद अध्यक्ष सुनीता साहू की रणनीति ने दिखाया असर।

विधायक प्रतिनिधि की करारी हार, जनपद अध्यक्ष का दांव पड़ा भारी
गुरूर (बालोद), hct : जनपद पंचायत गुरूर के सभा कक्ष में शनिवार को हुए सरपंच संघ अध्यक्ष पद के चुनाव ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता डाकेश साहू ने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार और विधायक प्रतिनिधि टोमन लाल साहू को बड़े अंतर से शिकस्त देते हुए अध्यक्ष पद पर कब्जा जमा लिया। इस नतीजे ने न सिर्फ कांग्रेस खेमे में बेचैनी बढ़ा दी है, बल्कि क्षेत्रीय विधायक संगीता सिन्हा की राजनीतिक रणनीति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
चुनाव में कुल 77 में से 72 सरपंचों ने मतदान किया, जिसमें डाकेश साहू को 47 और टोमन साहू को मात्र 25 वोट मिले। यह हार केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी एक बड़ा संदेश देती है — खासतौर पर तब, जब टोमन साहू को विधायक संगीता सिन्हा का “विश्वस्त मोहरा” माना जाता रहा है।
विशेष बात यह रही कि इस चुनाव को स्थानीय जनपद अध्यक्ष सुनीता संजय साहू ने पूरी सूझबूझ और रणनीति से साधा। उनका समर्थन प्राप्त कर डाकेश साहू ने जिस तरह बाज़ी मारी, उससे यह स्पष्ट हो गया कि जनपद स्तर पर जनाधार किस ओर झुक रहा है।
साफ़ है कि सरपंच संघ का यह चुनाव सामान्य संगठनात्मक प्रक्रिया भर नहीं रहा, बल्कि इसमें दो राजनीतिक धाराओं की सीधी टक्कर देखने को मिली। एक ओर थे विधायक प्रतिनिधि, जिनके पीछे वर्षों से सत्तासीन रहे सिन्हा दंपत्ति का राजनीतिक अनुभव था, वहीं दूसरी ओर थी जनपद अध्यक्ष की रणनीतिक दूरदर्शिता, जिसने उन्हें विजेता बना दिया।
हार की गूंज कांग्रेस खेमे में
टोमन साहू की हार के बाद विधायक कार्यालय में एक तरह का सन्नाटा पसर गया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा स्पष्ट झलक रही है। वहीं, यह हार विधानसभा क्षेत्र संजारी-बालोद में कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व की पकड़ को भी कमजोर करती दिख रही है।
भाजपा खेमा उत्साहित
डाकेश साहू की जीत से भाजपा कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह देखा गया। जगह-जगह उन्हें फूल-मालाओं से लादकर स्वागत किया गया और ढोल-नगाड़ों के साथ विजय जुलूस भी निकाला गया। समर्थकों ने इसे “नए नेतृत्व के उदय” के रूप में देखा है।
राजनीतिक संकेत साफ़ हैं
यह चुनाव परिणाम न केवल संगठन के भीतर नेतृत्व परिवर्तन का संकेत देता है, बल्कि आगामी स्थानीय निकाय या विधानसभा चुनावों में समीकरणों के बदलाव की भी आहट देता है। सत्ता के गलियारों में अब यह चर्चा जोरों पर है कि क्या यह हार सिन्हा दंपत्ति के लिए एक चेतावनी है?

