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Chhattisgarh

फर्जी प्रकरण की जांच हेतु आयोग गठन का रास्ता साफ : जस्टिस पटनायक ने दी स्वीकृति।

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का रास्ता साफ हो गया है।

रायपुर । छत्तीसगढ़ की नव निर्वाचित कांग्रेस सरकार अपने वादे के मुताबिक अंततः पिछली सरकार के समय पुलिस के अत्याचारों और फर्जी प्रकरणों व गिरफ्तारियों जांच के लिए एक आयोग का गठन करने जा रही है। इस आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस एके पटनायक करेंगे। इसके साथ ही पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने हेतु गठित किये जाने वाले पैनल के नेतृत्व के लिए सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिर्वित्त जस्टिस आफताब आलम ने स्वीकृति दिए जाने की खबर से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का रास्ता साफ हो गया है।
ज्ञात हो कि पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में पूरे प्रदेश सहित बस्तर में समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, वकीलों राजनीतिज्ञों, आदिवासियों के खिलाफ भारी संख्या में नक्सली बता कर व अन्य मामले दर्ज किए जाने के आरोप लगे थे। जिस पर पूरे देश मे सरकार की किरकिरी हुई थी।
अभी हाल में ही पिछली सरकार के समय बस्तर आईजी रहे विवादास्पद पुलिस अधिकारी के कार्यकाल में प्रसिद्ध समाज शास्त्री व रिसर्चर नन्दनी सुंदर, संजय पराते, अर्चना प्रसाद, विनीत कुमार के खिलाफ दर्ज किए गए हत्या के प्रकरण में जांच के बाद उनके खिलाफ आरोप झूठा पाया गया। पता चला है कि वर्तमान पुलिस ने चालान से उनके नाम हटा लिया है। इस मामले में नन्दनी और उनके साथियों ने बयान जारी कर बताया है कि वे पुलिस अत्याचारों की जांच के लिए बस्तर गए थे; तब बदले की भावना व डराने के लिए यह फर्जी प्रकरण बनाया गया था।
इसी तरह का एक और बहुचर्चित मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है, जिसमें गोम्पाड़ फर्जी मुठभेड़ की जांच के लिए आ रहे आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के 7 समाजसेवियों व वकीलों को गिफ्तार कर जेल भेज दिया गया था जो फिलहाल अभी जमानत पर हैं।
          बस्तर में इसी तरह के कथित फर्जी मामलों को लेकर काम कर रही “लीगल एड” के अनुसार पुलिस बिना किसी साक्ष्य के नक्सली मामलों में निर्दोष आदिवासियों को फंसाते रही है और 95 प्रतिशत मामलों में वे निर्दोष बरी होते रहें हैं।
बस्तर में काम करने वाले समाजसेवियों के अनुसार दो हजार से ज्यादा निर्दोष केवल बस्तर की जेलों में बंद हैं, जबकि अभी 50 हजार से ज्यादा से ज्यादा वारंट तमिल होना शेष है। पता चला है कि अकेले बीजापुर जिले में 12 हजार वारंट तामील होना है।
           बस्तर के प्रकरणों के मामले में एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ‘लगभग हर मामले में कुछ चुनिंदा लोगों को पकड़ा जाता है और उन पर नक्सली होने का आरोप लगाया जाता है। इनमें से अधिकतर लोगों का नाम तक पता नहीं होता, इनमें ज्यादातर आदिवासी लोग होते हैं, जिन्हें पकड़कर अनिश्चितकाल के लिए जेल में डाल दिया जाता है।’
सूत्रों का कहना है कि जस्टिस पटनायक ने इस आयोग के लिए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इस एक सदस्यीय आयोग में  स्थानीय पत्रकार, वकील, पुलिस और नागरिक समाज संगठनों के सदस्य सहयोग देंगे।
आयोग का काम गलत तरीके से गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा करने सहित कई अन्य कदम होंगे।
इस आयोग की जांच के निष्कर्षों के आधार पर सुधारात्मक कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें गलत आरोपों में फंसाए गए या गिरफ्तार किए गए लोगों की रिहाई शामिल होगी।
जस्टिस पटनायक हाल ही में सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा की सीवीसी जांच की निगरानी को लेकर चर्चा में थे। पटनायक छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। वह 2009 से 2014 तक सुप्रीम कोर्ट में भी जज रह चुके हैं।
खबर है कि आयोग के लिए प्रेस के समक्ष चुनौतियों पर गौर करने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक और रिटायर्ड जज जस्टिस आफताब आलम के नेतृत्व में एक पैनल का गठन कर रही है। खबर के मुताबिक, यह आयोग एक विधेयक का मसौदा तैयार करेगी, जिसका उद्देश्य राज्य में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करना होगा।
फिलहाल अभी आयोग और पत्रकार सुरक्षा कानून को लेकर बन रहे पैनल को लेकर राजपत्र में प्रकाशन नही हुआ है, मगर इन दोनों के रास्ते मे आ रही प्रमुख अड़चन रिटायर्ड जस्टिस के चयन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गयी है।
कमल शुक्ला

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