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Chhattisgarh

कवासी लखमा की सराहनीय पहल : माना कि मुठभेड़ फर्जी। कमल शुक्ला की माओवादियों से अपील “बन्द करो खून-खराबा।”

रायपुर। खबर है कि; आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। पत्र में लखमा ने बीते दिनों पुलिस नक्सली मुठभेड़ के दौरान क्रॉस फायरिंग में मारी गई व घायल हुए ग्रामीण महिलाओं को 10 लाख व 5 लाख की आर्थिक सहायता की मांग की है। साथ ही इस मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करने की मांग की है।
जन नेता कवासी लखमा का आभार कि उन्होंने सरकार का हिस्सा होते हुए खुलकर खुद ही इस मुठभेड़ को फर्जी बता कर छत्तीसगढ़ सरकार की छवि को बिगड़ने से बचाया। मगर इसी तरह का मामला बीजापुर में हुआ है, जहां जबरदस्ती शांति प्रक्रिया को बाधा पहुंचाते हुए माओवादियों के प्रभाव वाले अबूझमाड़ में 30 किमी घुसकर 10 से 15 ग्रामीणों को मार डाला गया है। इस मामले मे शीघ्र न्यायिक जांच कर ग्रामीणों को राहत और न्याय देकर बस्तर में शांति की राह में बढा जा सकता है। पूर्व सरकार के समय के फर्जी मुठभेड़ पर भी जांच, न्याय, मुआवजा और माफी मांगने की जरूरत है।
माओवादियों से भी अपील है कि अब बहुत हुआ, !! बन्द करें यह खून खराबा !! आपने सच मे आदिवासियों की लड़ाई खूब लड़ी है। बस्तर के जंगल और आदिवासियों को बचाने में भी आपका योगदान रहा है। पर इस लड़ाई में दोनों ही तरफ से केवल आदिवासी और किसान- मजदुरों के बच्चे ही मारे जा रहे हैं। जो जवान मारे गए हैं और जिन्हें और मारना है वे किसी सेठ नेता या मंत्री के बच्चे नही है, वे भी मार्क्स – माओ के सिद्धांतों के तहत सर्वहारा वर्ग से ही आते हैं। पुलिस का मुखबिर बता कर या वर्गभेद के बहाने निरीह और निर्दोष आदिवासियों का सजा देना बन्द करिये कामरेड।
          बस्तर केे अंदरुनी गाँवो में जहां आप युद्ध कर रहे हो, वहां किसी आदिवासी के पास अगर 20 या उससे अधिक एकड़ खेत भी है तो वह उन अन-उपजाऊ जमीन में खेती करके कोई आदिवासी कितना बड़ा पूंजीपति बन जायेगा। जो आदिवासी पुलिस खेमे में गए और जो आपके खेमे में है दोनो की मजबूरी केवल और केवल हथियार और डर है। जो आपके साथ हैं वो केवल इसलिए कि कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी ने उनकी लड़ाई को नही समझा। अपने जल जंगल जमीन और हक के लड़ने का उनका इतिहास बहुत पुराना है तब तो मार्क्स और माओ भी पैदा नही हुए थे। उन्हें आपके मार्क्स, लेनिन और माओ से मतलब नही है, वे अपनी लड़ाई के लिए सरकार की उपेक्षा और कॉरपोरेटपरस्त जिद की वजह से मजबूरी में आपके साथ है। अगर उनके बीच सही जन अदालत लगाना है तो बन्दूक का साया हटा करके तो देखो। बस्तर के आदिवासियों के बीच जबरदस्ती फर्जी वर्गभेद साबित करने से बाज आएं, यहां तो न जाति का झगड़ा है न स्त्री भेद। आप मे से अधिकांश साथी खूब पढ़-लिखकर यह तय कर पाए कि क्या करना है, कैसे लड़ना है आप जंगल मे कष्ट सह कर लड़ाई कर रहे हैं कोई सुविधा भोगने नही गए, पर यह भी तो सच है कि आदिवासियों को भी पढ़-लिखकर अपनी लड़ाई और विचार बनाने का हक है। मुझे पता है समय पर और उचित ईलाज आप लोगों को भी नही मिलता, कृपया सरकार के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य, वनोपज के उचित दाम जैसी मूल जरूरतों पर तत्काल समझौता हो।
पुनश्च दोनो पक्ष खून खराबा बन्द करें।
कमल शुक्ला

*कमल शुक्ला के फेसबुक वॉल से साभार।

 

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