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गंभीर संकट में भी देश के लोगों से झूठ बोलना दुर्भाग्यजनक : आफताब।

*कमलेश यादव।

राजनांदगांव। कांग्रेस नेता आफताब आलम ने कहा; केंद्र सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी द्वारा अपनी नाकामियों को छुपाने लगातार झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं तथा उनकी पार्टी सफलता के लिए भी धर्म एवं राष्ट्रवाद का आड लेती है और असफल होने पर साम्प्रदायिकता की आड़ लेती है, जब कोरोना जैसी महामारी देश में अपने पैर पसार रही है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने नाकामियों को छुपाने देशवासियों के समक्ष लगातार झूठ बोलकर गुमराह कर रहे हैं।
आलम ने विश्वव्यापी कोरोना संक्रमण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के झूठों के पुलिंदा को खोलते कहा कि हाल ही में जब नरेन्द्र मोदी मीडिया के सामने देश की जनता से मुखातिब हुए तो उन्होंने प्रमुख रूप से दस झूठ बोले जो इस प्रकार है।
श्री आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘पहला झूठ’ भारत सरकार ने सही समय पर सही कदम उठा लिया, जो कि सफेद झूठ है। भारत में पहला केस 30 जनवरी को आया, उस समय भारत ने कुछ एयरपोर्ट पर मात्र तापमान लेना प्रारंभ किया था, न कि उपयुक्त स्क्रीनिंग करना, डब्ल्यूएचओ की तरफ से चेतावनियां आने के बावजूद ट्रम्प के स्वागत में हजारों लोगों को जुटाया गया, डब्ल्यूएचओ द्वारा स्पष्ट बताए जाने के बावजूद भारत सरकार ने आक्रामक तरह से परीक्षण, पहचान व उपचार के लिए कोई कदम नहीं उठाया और जब मामला हाथ से निकल गया, तब अचानक बिना किसी तैयारी के तीन सप्ताह का लॉकडाउन घोषित कर दिया। इसका क्या नतीजा सामने आया हैए उसके बारे में प्रधानमंत्री ने एक शब्द भी नहीं कहा।

श्री आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘दूसरा झूठ’ उन्नत और अधिक सामर्थ्यवान देशों में भारत के मुकाबले अधिक कोरोना केस आए हैं और भारत ने उनके मुकाबले बहुत अच्छी तरह से इस महामारी का मुकाबला किया है। बिल्कुल झूठ! भारत में कोरोना केसों का सही आंकलन करना ही संभव नहीं है, क्योंकि प्रति दस लाख परीक्षण की दर भारत में लगभग सभी देशों से कम है। हम वास्तव में जानते ही नहीं हैं कि कोरोना से संक्रमित आबादी कितनी है। यह हमें सीधे मौतों से पता चलेगा कि वास्तव में संक्रमण का परिमाण क्या है, इसलिए प्रधानमंत्री ने जो आंकड़े बताए वे सभी झूठ हैं।

उन्होंने कहा कि श्री मोदी का ‘तीसरा झूठ’ आर्थिक संकट कोरोना संकट के कारण पैदा हो गया है। जिससे बचना मुमकिन नहीं था, सरासर झूठ। आर्थिक संकट पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था में 2019 के तीसरे मर्टर से ही भयंकर रूप में प्रकट हो चुका था। हालांकि वह जारी पहले से ही था। कोरोना का पहला केस आने से पहले ही ऑटोमोबाइल सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर में मंदी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी। कुल मैन्युफैख्रिंग गतिविधि सिकुड रही थी और वैश्विक एजेंसियों ने आने वाले साल में भारत की वृद्धि दर का आंकलन पहले से कम करके चार प्रतिशत से नीचे रहने की भविष्यवाणी कर दी थी। कोरोना महामारी से पहले ही मोदी राज में चार करोड़ नौकरियां जा चुकी थी। निश्चित तौर पर कोरोना संकट के कारण आर्थिक संकट और अधिक गहरायेगा, लेकिन मोदी सरकार इस महामारी का इस्तेमाल करके आर्थिक तबाही की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ने का काम कर रही है, ताकि बाद में मजदूरों के ऊपर अनिवार्य कठोर कदम्य उठाने के नाम पर उनसे 12 घंटे काम करवाने का कानून संशोधन किया जाए। हर प्रकार के श्रम अधिकार को समाप्त करने का काम किया जाए।

आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘चौथा झूठ’ प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीब, मजदूर और मेहनतकश परिवार के समान है और उनकी तकलीफों को कम करने का हर प्रयास किया जा रहा है, बेशक झूठ। सच्चाई यह है कि देश के गोदामों में करीब 7 से 8 महीनों के लिए पर्याप्त भोजन है। पर्याप्त बुनियादी सामग्रियां हैं, लेकिन इन खाद्य व बुनियादी सामग्रियों का सार्वभौमिक व सार्वजनिक वितरण करने का कोई ऐलान नहीं किया गया, लेकिन कल ही वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कारपोरेट घरानों को हुए आर्थिक हानि से निपटने के लिए क्या-क्या छूटें दी जाएगी, यह बता दिया था। कार्पोरेट घरानों के लिए असली श्राष्ट्र को संबोधन्य कल ही हो गया था, तभी यह बात बता दी गयी थी कि पूंजीपतियों को मजदूरों को और ज्यादा निचोड़ने के लिये, क्योंकि मुनाफा श्रम के शोषण से ही आता है। पूरी कानूनी छूट दी जाएगी। बेरोजगारी और भूख से तड़प रहे मजदूर इसके लिए मजबूर भी होंगे, क्योंकि ठेका, दिहाड़ी और यहां तक कि स्थायी मजदूरों की बड़ी आबादी बेरोजगार हो चुकी है।

आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘पांचवा झूठ’ सिर्फ लॉकडाउन को 3 मई तक जारी रखने से कोरोना महामारी से निपटा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत सरकार को पहले ही बता चुका है कि कोरोना संक्रमण भारत में अब जिस चरण में है, उसमें महज लॉकडाउन पर्याप्त नहीं है, बल्कि बहुत ही बड़े पैमाने पर मास टेस्टिंग, मरंटाइनिंग और ट्रीटमेंट की आवश्यकता है। इसके बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं और जो थोड़े-बहुत उठाए गए हैं, वे निहायत अपर्याप्त हैं। सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ व डॉक्टर इस सच्चाई का बयान बार-बार कर रहे हैं, लेकिन इसके बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘छटवां झूठ’ कोरोना की रोकथाम पूरी तरह से जनता की जिम्मेदारी है और इसलिए वह वफादार सिपाही की तरह लॉकडाउन के सारे नियमों का पालन करे, बुनियादी सेवाएं प्रदान कर रहे लोगों का सम्मान करें, बुजुर्गों का ध्यान रखे, गरीबों की मदद कर, वगैरह, लेकिन सरकार कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन के अलावा ठोस तौर पर क्या करे, इसके बारे में कोई बात नहीं, जो चीज सबसे जरूरी है वे तीन काम हैं। पहला व्यापक पैमाने पर मास टेस्टिंग, मरंटाइनिंग व ट्रीटमेंट, दूसरा गरीब मेहनतकश आबादी के लिए सभी बुनियादी वस्तुओं का सार्वभौमिक व सार्वजनिक वितरण और तीसरा सभी स्वास्थ्य कर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा उपकरण व टेस्टिंग किट्स मुहैया कराना। जिसके लिए स्वास्थ्य कर्मी शुरू से ही मांग कर रहे हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।

आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘सातवा झूठ’ प्रधानमंत्री ने सीमित संसाधनों का भी रोना रोया। हालांकि एनपीआर एनआरसी करने की गैरजरूरी और जनविरोधी प्रक्रिया चलाने के लिए ये सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं थे। हाल ही में सांसदों के वेतनों और भत्तों में भारी बढ़ोत्तरी करने में सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं थे। पूंजीपतियों को हर साल लाखों-करोड़ों रुपयों की छूट देने और सारे गबनकारी पूंजीपतियों को छूट देने और चार्टर्ड विमानों से भगाने में सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं थे। कोरोना महामारी फैलने के बाद 102 चार्टर्ड विमानों से धनपशुओं की औलादों को देश वापस लाने में सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं थे, लेकिन जब गरीब आबादी को इस संकट में खाना देने की बात आयी तो सीमित संसाधनों का रोना शुरू। इसी सरकार ने कल सुप्रीम कोर्ट में अपने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा सभी अस्पतालों का कोरोना से निपटने के लिए राष्ट्रीकरण करने का विरोध किया है। जिससे सरकार के पास इस संकट से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन आ गए होते, लेकिन जनता के लिए हमेशा ही संसाधन कम होते हैं। जबकि पूंजीपतियों, धनपशुओं के लिए जनता के श्रम की लूट से भरी गयी, सभी तिजोरियों के दरवाज़े पूरी तरह खुले होते हैं।

आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘आठवां झूठ’ वैसे तो गरीबों को प्रधानमंत्री ने अपना श्परिवार्य बताया, लेकिन इन्हीं गरीबों के बीच अल्पसंख्यकों की जो भारी आबादी है, उस पर कोरोना संकट के नाम पर संघ परिवार के गुंडे जो हमले कर रहे हैं, उसके बारे में प्रधानमंत्री के पास कहने के लिए एक शब्द भी नहीं था। इस रूप में भी फासीवादी गिरोह कोरोना संकट को गरीब मुसलमान आबादी को निशाना बनाने का एक अवसर बना रहे हैं। इस समय भी सीएए-एनआरसी के खिलाफ जारी जनांदोलन के नेतृत्व के लोगों की धरपकड़ जारी है। इस समय भी गौतम नवलखा व आनंद तेलतुंबड़े जैसे जनवादी अधिकार कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों पर झूठे मामले दर्जकर उन्हें गिरफ्तार करना जारी है। यहां भी दिख रहा है कि फासीवादी मोदी सरकार की प्रथामिकताएं क्या हैं और प्रधानमंत्री के नकली सरोकार की असलियत क्या है।
आलम ने कहा कि श्री मोदीजी का ‘नौंवा झूठ’ लॉकडाउन के दौरान सभी गतिविधियों को बंद करने की बात प्रधानमंत्री बार-बार कर रहे थे, लेकिन बुनियादी सेवाओं के अलावा और भी कई गतिविधियां जारी है। जैसे कि संसद सत्र न होने के बावजूद ऑर्डिनेंस के रास्ते चार में से तीन प्रस्तावित मजदूर विरोधी लेबर कोडों को लाने की पूरी तैयारी की जा चुकी है। यह किनके लिए बुनियादी कार्य है? अंबानियों और अडानियों के लिए। कायदे से इसके लिए जनता को ऐसी सरकार पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

इसके अलावा छोटे-छोटे बहुत से झूठ बोले गए जिनका यहां खंडन करना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री ने एक सच्चे फासीवादी की तरह यह भी बता दिया कि आने वाले दिनों में लॉकडाउन में और भी सख्ती बरती जाएगी और जिस भी क्षेत्र में कोरोना के नए मामले आएंगे उसकी सजा उस इलाके की जनता को सख्ती और बढ़ाकर दी जाएगी। यानी करेंगे प्रधानमंत्री और भरेंगे हम सब लोग।

थाली बजाने और मोमबत्ती जलाने जैसा कोई आह्वान प्रधानमंत्री ने नहीं किया, क्योंकि उससे पूरे देश में प्रधानमंत्री की भद्द ही पिटी थी। कई मध्यवर्गीय प्रगतिशील व जनवादी लोग अपनी बालकनी से जो देश देखते हैं, वे ‘गो कोरोना गो कोरोना’ का भयंकर उत्सव देखकर घबरा गए थे, लेकिन वास्तव में व्यापक गरीब आबादी में इस नौटंकी से मौजूदा व्यवस्था के प्रति नफरत और बढ़ रही थी। इसी वजह से प्रधानमंत्री ने इस बार खास तौर पर मजदूरों और गरीबों की मदद करने की बात की और किसी नयी विद्रुप नौटंकी करने का अपने भक्तों से आह्वान नहीं किया। भक्त ज्यादा श्वोकल्य हैं, इसलिए ज्यादा दिखते हैं। मेहनतकश आबादी की व्यापक व मूक बहुसंख्या इस प्रहसन से घृणा कर रही है। एक हिस्सा ऐसा भी है, जो बिना सोचे-समझे इस नौटंकी में शामिल हो जाता है। यह इस संकट के गहराने के साथ घटता जाएगा। पिछली दो नौटंकियों के दौरान ही यह घटा है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री के पास कोई प्रभावी ठोस कदम नहीं था, सिवाय लॉकडाउन बढ़ाने के, जबकि अब महज लॉकडाउन बढ़ाने से मरने वालों की संख्या को और संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या को प्रभावी तरीके से नियंत्रित करना संभव नहीं होगा। कोरोना संकट को पूंजीपति वर्ग एक अवसर में तब्दील कर रहा है। जिससे मजदूरों को और बुरी तरह से निचोड़ा जा सके और राष्ट्रहित के नाम पर उन्हें पूंजीवादी राष्ट्र के गुलामों की फौज में तब्दील कर दिया जाए। हमें भी इस संकट को एक अवसर में तब्दील करना होगा। जिसमें कि हम व्यापक जनता के सामने इस संकट के वास्तविक कारणों, इसके लिए जिम्मेदार शक्तियों और समूची पूंजीवादी व्यवस्था के सीमांतों को उजागर कर सकें। यदि क्रांतिकारी शक्तियां यह नहीं कर सकी, तो प्रतिक्रियावादी फासीवादी शक्तियां अपने मंसूबों में कामयाब होगी।

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