गरियाबंद में ‘प्रधानमंत्री आवास’ का कब्रिस्तान : आदेश ज़िंदा, ईमानदारी दफ़न…
मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बावजूद कलेक्टर पर असर नहीं; फर्जी मजदूरों के नाम पर करोड़ों की लूट - प्रशासनिक बेफिक्री ने गरीबों के हक को बना दिया कमाई का ज़रिया।

गरियाबंद hct : जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के नाम पर लगातार सोशल मीडिया में हो रहे घोटालों का उजागर यह साबित कर रहा है कि, प्रदेश में निरंकुशता हावी हो चुका है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के स्पष्ट निर्देश – “एक रुपये की भी गड़बड़ी हुई तो कलेक्टर पर कार्रवाई होगी”, के बावजूद कलेक्टर पर कोई प्रभाव ना पड़ना साफ संकेत करता है ‘प्रशासनिक अमला’ सरकारी आदेश को अपनी जूती के नोक पर रखता है।
‘लफंदी’ का हाल…
जिला के प्रथम धर्म नगरी राजिम विकासखंड फिंगेश्वर जनपद के ग्राम लफंदी ग्राम पंचायत में रोजगार सहायिका दिलेश्वरी साहू द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1 लाख 30 हजार रुपये की सहायता और मनरेगा से 25 हजार तक की मजदूरी के गड़बड़झाला उजागर होने के बाद, यह तो बस शुरुआत थी…
‘धनोरा’ भी बेहाल…
विकासखंड मैनपुर के तहसील अमलीपदर अंतर्गत ग्राम पंचायत धनोरा से भी योजना से जुड़े एक बड़ा घोटाला सामने आया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मजदूरों के भुगतान में वृहद अनियमितता और घोटाले की खबर ने तमाम मीडिया के सुर्ख़ियों में अपनी जगह सुरक्षित कर लिया है। पंचायत के रोजगार सहायक सचिव नकुल नागेश और आवास मित्र से कुमार नागेश पर मजदूरों की करोड़ों रुपये की बकाया मजदूरी राशि हड़पने का आरोप सामने आया है।
पोर्टल पर ‘फर्जी मजदूरों की जमात’
जब हितग्राहियों ने अपनी भुगतान स्थिति ऑनलाइन देखी, तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। जिनके घर अधूरे हैं, उनके भुगतान पूरे दिखाए गए। जिन मजदूरों ने काम ही नहीं किया, उन्हें भुगतान दिखाकर रकम उड़ा ली गई। यह संगठित साइबर-जुगाड़ का मामला है, जहाँ काली स्याही से पारदर्शिता का सर्टिफिकेट लिखा गया।
घेराव और चक्का जाम की चेतावनी
चार महीने से मजदूरों को भुगतान नहीं हुआ। पंचायत में गुहार बेअसर रही। अब वे सड़क पर उतरने को तैयार हैं। कलेक्टर कार्यालय घेराव और राष्ट्रीय राजमार्ग जाम की चेतावनी इस बात का संकेत है कि जनता का भरोसा तंत्र पर से उठ चुका है।
यह सिर्फ़ मजदूरी की लड़ाई नहीं, यह ईमानदारी की कब्र से न्याय की पुनः खुदाई है।
ग्रामीणों की मांग है कि दोषियों पर तत्काल FIR दर्ज हो और रकम की वसूली की जाए। वरना यह मामला “प्रधानमंत्री आवास योजना” नहीं, बल्कि “प्रधानमंत्री अव्यवस्था योजना” बनकर रह जाएगा। सवाल उठता है — जब आदेश होते हुए भी अधिकारी अंधे बने हैं, तो जनता का भरोसा किस पर रहेगा ?





