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चली आना …; चली आना तू पान की दुकान पे

रायगढ़। *स्थानीय रामबाग के समीप कल एक पान की दुकान देखा जिसे देखकर बहुत खुशी का एहसास हुआ स्वतः ही मेरे मुंह से “वाह” निकल गया। एक छोटा हाथीऑटो में सड़क किनारे पान की दुकान देखना एक बढ़िया एहसास रहा।
सुबेरे से रात तक इस छोटे हाथी में दुकानदारी करने वाले भाई साहब से जब मैंने पूछा की :- भैया ये आइडिया कैसे आया ? तो उन्होंने कहा की :- “भैया ठेला लगाऊंगा तो 30 से 35 हजार लगेंगे, जगह खुद का न होने के कारण बेजाकब्जा की बात उठती है, बरसात के कारण ठेला को नुकसान भी होता है और कभी कब्जा हटाने का अभियान शहर में होता है तो सड़क किनारे गरीबों के ठेलों को ही प्रशासन सबसे पहले टारगेट करता है, ठेला कब्जा किया जाता है या तो ठेला पलटा भी दिया जाता है ये देखकर बड़ा दुख होता है। जिस पैसे से मैं ठेला बनाऊंगा उसी पैसे से डाउन पेमेंट करके छोटा हाथी ले लिया इसका फायदा मुझे मिल रहा है। इस दुकान को त्यौहार, शादी-ब्याह व भीड़ भाड़ वाले जगहों पर ले जाकर अपनी पान की दुकान के साथ आवश्यक जरूरी सामान की दुकानदारी कर अपना व्यापार बढ़ा सकता हूँ और किसी एक जगह पर अपना दुकानदारी करने का जगह भी निर्धारित कर सकता हूँ मेरे पास दोनों ऑप्शन खुले हैं।”
इस भाई साहब को उनके पिता का आशीर्वाद भी भरपूर मिल रहा है वो स्वयं इस दुकान के देख रेख में उनके साथ खड़े है (देखियें तस्वीर में) ये सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई मैंने सोचा कि इंसान जब कुछ करना चाहे तो वो कुछ भी अच्छा सोचकर काम कर सकता है बजाय दुसरों को दोष देने के खुद पर भरोसा होना चाहिए।
निवेदन है एक बार आप सभी इस पान की दुकान में जाकर अपनी सेवा करने का अवसर दुकानदार भाई को जरूर देवें ताकि मेहनतकश इंसान को सहयोग व हिम्मत मिल सके की उसका निर्णय सही है और उन्हें देखकर बाकी ठेले वाले भी अपनी खुद की छोटा हाथी के रूप में एक संपत्ति बनाकर अपनी दुकान लगायें और कब्जे हटाने के भय से छुटकारा पायें।

*साभार : विकास पाण्डे के फेसबुक वॉल से

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