ChhattisgarhPolitics
राजनीति के गर्म तवे में अंडे का ऑमलेट।
खानपान की स्वतंत्रता के साथ अंडों के पक्ष में है माकपा।
रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी आंगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन में बच्चों व गर्भवती माताओं को पोषक आहार के रूप में अंडा देने के पक्ष में है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि खानपान की स्वतंत्रता का ध्यान रखा जाना चाहिए और जो लोग अंडा नहीं खाना चाहते, उन्हें उतनी ही कैलोरी का अन्य शाकाहारी पोषक आहार उपलब्ध कराया जाए।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि प्रदेश की आधी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे कुपोषित है। इन कुपोषण से लड़ने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर अंडा एक सस्ता और सर्वोत्तम विकल्प है। जो लोग अंडा देने के विरोधी हैं, उनकी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा है कि शाकाहार या मांसाहार के नाम पर किसी भी समुदाय-विशेष को अन्य लोगों के खानपान पर प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार नहीं है और इसका हमारी संस्कृति से भी कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इस प्रदेश की 80% जनता अपने भोजन में मांस का भी उपयोग करती है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि संघी गिरोह द्वारा हिंदुत्व के नाम पर अंडा देने का जो विरोध हो रहा है, वह दरअसल आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को कुपोषित बनाये रखने की साजिश ही है और वे सब लोगों पर खानपान के मामले में एकरूपता थोपना चाहते हैं, जो स्वीकार्य नहीं है।
लेकिन वहीं अमित जोगी ने भी सरकारी स्कूलों के मिड डे मील में अंडे दिए जाने का विरोध किया है।
अमित जोगी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि पहले चंदाखोरी फिर शराबखोरी अब अंडाखोरी और सीनाजोरी। उन्होंने कहा कि राज्य के तीन पंथ कबीर पंथ, सतनाम और गायत्री पंथ के लोग न सिर्फ शाकाहारी होते हैं वे मांसाहारियों के साथ खाना भी नहीं कहा सकते ऐसे में अंडा सिर्फ आदिवासी क्षेत्र में ही दिया जाय। जोगी के अनुसार शाकाहारी अनुयायियों के साथ अंडा खिलाना न सिर्फ इन समाजों का बल्कि बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद १४, १९ और २१ में हर नागरिक को दिए मौलिक अधिकारों का भी सीधा-सीधा अपमान है।
दयाशंकर कबीरपंथी फेसबुक पर लिखते हैं – “अंडे का फंडा, कमीशन का एजेंडा”
अंडा एक उत्तेजनात्मक पदार्थ है, यदि इसे स्कूलों में खिलाया जाना बंद नहीं किया गया तो इसके परिणाम भयावह होंगे। जिससे भविष्य में रेप दर प्रतिशत बड़ेगा, ऐसी पौष्टिकता भी किस काम की जो मांसाहार को बड़ावा दे, और आपराधिक प्रवृति को जन्म दे।
सरकार को भविष्य में इसके भयावह परिणामों पर ध्यान देना चाहिए। और फिर पोषणता के लिए, अंडे के अलावा और भी विकल्प हैं। सरकार को दूरगामी सोच तथा भारतीय संस्कृति का ध्यान भी रखना चाहिए।
पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा अंडे पर मची बवाल को लेेेकर “बात बेबाक” लिखते हैं
सरकारी स्कूल में सप्ताह में एक दिन बच्चों को मध्यांह भोजन में अंडा दिए जाने के सरकारी फरमान और मचे बवाल को लेकर वर्ष 2001में फ़िल्म जोड़ी नं.1 का मशहूर गाना “आओं सिखाऊं तुम्हें अंडे का फंडा”अनायास याद आ गया। ये अंडा भी राजनीतिज्ञों की तरह दलबदलू निकला कभी मांसाहारी, कभी शाकाहारी खेमे में घुस जाता है। भले ही अंडे में दलबदलु प्रवृत्ति आ गई हो परंतु आज भी मिलावट से कोसो दूर है। ऐसा अंडे के पक्षधर लोगो का कहना है। दूध का क्या है, जितनी प्रदेश में गायें नही उससे ज्यादा तो दूध का उत्पादन होता है फिर शुद्धता की गारंटी कैसी, पर अंडा तो मुर्गी ही देगी। जैसे-जैसे राजनीति में दलबदलुओं की संख्या में इजाफा होते जा रहे है, वैसे वैसे अंडे भी देशी से फार्म वाले या प्लस्टिक वाले होते जा रहे है। देसी और फार्मी अंडे में क्या फर्क है ये तो खाने वाले ही जाने हमे इसकी बहस में पड़ना भी नही। टीआरपी के जमाने मे टमाटर, प्याज और शराब के बाद अब अंडा सेलिब्रिटी बन रहा है। स्कूलों में अंडे के उपयोग को लेकर धरना ,प्रदर्शन, हड़ताल होंगे रैलियां निकाली जाएगी तो समर्थन में भी लोग कुद पड़ेंगे, कुछ को अपनी नेतागिरी की दुकान सजाने के मौका भी मिलेगा। अंडे के फंडे में राजनीति की दखल से अंडा अब सेलिब्रिटी बन गया है। अंडे के सेलिब्रेटी बनने से मुर्गियां भी अकड़ने लगी है कहने लगी है हमें भी अपनी फिगर की चिंता है। रोज रोज अंडे देने की तकलीफ से अच्छा है हफ्ते में एक ही दिन अंडे दे ताकि फिगर खराब ना हो वरना खराब फिगर वाले मुर्गे मुर्गियों को कौन भाव देता है ? जब फिगर ही नही होगा तो फिर तंदूर से गुजर कर नेता और साहब की प्लेट में कैसे पहुँच अपनी किस्मत पर इठलायेंगी। अंडे के फंडे को गोबरहीन टुरी का समझा रहा था तो कहने लगी महराज तै कब ले अंडा के फांदा में पड़ गेस। सकूल में आज तक लइका मन ला मीनू वाले खाना मिलिस नही, पनियर दाल अउ भात मिल जाय वही बहुत हावय। अंडा के फंडा मा आगू देखबे गा कि लइका मन के अंडा के आमलेट कउन कउन के पेट मे जाथे।
और अंत मे :-
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक,
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक।
दूजा पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा ,
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा।।