देवभोग की पंचायतों में “स्वच्छता घोटाला” !
चार महीने में 31 लाख उड़ाए गए, लेकिन : कागजों में सफाई, लेकिन गांवों की गलियों में गंदगी का ढेर...

गरियाबंद hct : जिले का देवभोग ब्लॉक इन दिनों सफाई की नहीं, बल्कि गंदगी और घोटाले की कहानियों से बदनाम है। कागजों में तो पंचायतों ने गांव-गांव में स्वच्छता की मिसाल पेश कर दी, लेकिन जब आप गलियों से होकर गुजरेंगे, तो नालियों में सड़ांध, रास्तों पर कचरे के ढेर और बदबूदार माहौल ही आपका स्वागत करेंगे। पिछले चार महीनों में साफ-सफाई के नाम पर लगभग 31 लाख रुपये खर्च दिखाए गए, पर असलियत में झाड़ू तक नहीं चली। यही है सिस्टम का सच – सफाई नहीं, बल्कि खजाने की झाड़ू चल रही है।
सफाई सिर्फ़ फाइलों में !
गांव के लोग बताते हैं कि पंचायतें सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति कर रही हैं। ग्राम सभाओं में स्वीकृति की रस्म अदायगी होती है, उसके बाद कार्ययोजना को ठिकाने लगाकर सीधे बिल-पेमेंट का खेल शुरू हो जाता है। नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए जिन रास्तों पर रोज़ाना सैकड़ों लोग गुजरते हैं, वहां अब भी गंदगी के ढेर लगे हुए हैं। साफ है कि स्वच्छता सिर्फ रिपोर्टों और भुगतान के कागजों पर दिखती है, हकीकत में गांवों का हाल जस का तस है।
कार्ययोजना की लाश, कमीशनखोरी का ताज
पंचायती व्यवस्था का सिद्धांत कहता है कि ग्राम सभा ही सर्वोच्च है और बिना उसकी अनुमति कोई भी काम नहीं होना चाहिए। लेकिन देवभोग में यही ग्राम सभा सबसे पहले मारी गई। यहाँ योजनाओं की फाइल बनती है सिर्फ खानापूर्ति के लिए, ताकि बाद में भुगतान का जादू दिखाया जा सके। जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस गोरखधंधे में बराबर के हिस्सेदार हैं। सफाई की जगह यहां धंधेबाजी की झाड़ू इतनी तेज़ चल रही है कि सरकारी राशि हवा हो रही है और जनता गंदगी में जीने को मजबूर है।
बोगस बिलों की बारिश
देवभोग ब्लॉक की पंचायतों में सफाई के नाम पर जो बिल पेश किए गए, उनमें से कई फर्में ऐसी हैं जिनका जीएसटी नंबर तो मौजूद है लेकिन पिछले दो-तीन साल से उन्होंने टैक्स रिटर्न तक जमा नहीं किया। यानी सरकार को लाखों रुपये का राजस्व नुकसान। सवाल यह है कि जब फर्में टैक्स ही नहीं भर रहीं, तो फिर उन्हें पंचायतों से भुगतान कैसे हो गया? इससे बड़ा खुला खेल और क्या होगा? यही नहीं, जिन वस्तुओं का बिल प्रस्तुत किया गया, वे वस्तुएं जमीनी स्तर पर दिखती ही नहीं। यानी साफ है कि सिर्फ फर्जी बिल और बोगस भुगतान का सिंडिकेट चल रहा है।
सरपंच-सचिव का गठजोड़, विकास को ताला
जिन प्रतिनिधियों को गांव की सेवा और विकास के लिए चुना गया था, वही अब खुद के विकास में लगे हुए हैं। पंचायत राज अधिनियम की धारा 40 को धत्ता बताकर खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। कई जगह सरपंचों ने अपने ही रिश्तेदारों की फर्मों से बिल लगवाए और भुगतान करा लिया। सरकारी अधिकारी सब जानते हुए भी आंख मूंदे बैठे हैं। इस मिलीभगत ने पूरे सिस्टम को खोखला बना दिया है। जनता चाहकर भी सवाल नहीं पूछ पा रही, क्योंकि ग्राम सभाएं नाम मात्र की रह गई हैं।
गंदगी का साम्राज्य
31 लाख रुपये उड़ाने के बाद भी देवभोग के गांवों में हालत जस की तस क्यों है? जवाब साफ है — क्योंकि पैसे सफाई में नहीं, जेबों में खर्च हुए। गलियों में नालियां बजबजा रही हैं, बच्चों को गंदगी से होकर स्कूल जाना पड़ता है, मवेशियों के बीच संक्रमण फैलने का खतरा है। ये सब होते हुए भी जिला प्रशासन और जनपद स्तर के जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। मानो उनके लिए गांव वालों की जिंदगी से ज्यादा अहमियत उन फाइलों की हो, जिनमें सबकुछ “स्वच्छ” दिखा दिया गया है।
सिस्टम पर सवाल…
पंचायतें गांवों के विकास की रीढ़ मानी जाती हैं। लेकिन जब वही रीढ़ भ्रष्टाचार से टूटने लगे तो गांव विकास की जगह गंदगी का अड्डा बन जाते हैं। देवभोग की पंचायतों ने जो खेल खेला है, वह सिर्फ जनता के साथ नहीं, बल्कि शासन की मंशा के साथ भी धोखा है। “स्वच्छ भारत” का नारा लगाने वाली सरकार को जवाब देना चाहिए कि आखिर इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बाद भी गांवों में सफाई क्यों नहीं दिखती? या फिर यह मान लिया जाए कि स्वच्छता सिर्फ कैमरों और पोस्टरों में दिखाई जाने वाली उपलब्धि है?
असल समस्या यही है कि यहां सफाई जमीन पर नहीं, बल्कि फाइलों और खातों में की गई है। जिन लोगों को जनता ने अपना प्रतिनिधि बनाकर जिम्मेदारी दी थी, वही अब सफाईकर्मी नहीं, बल्कि “बिलकर्मी” बन बैठे हैं। चार महीने में 31 लाख रुपये झाड़ू की तरह उड़ गए, लेकिन गंदगी का एक ढेर भी नहीं हटा। यह सिर्फ कचरे का नहीं, बल्कि सिस्टम का पहाड़ बन चुका है, जो जनता को दबा रहा है और नेताओं-अफसरों को फायदा पहुँचा रहा है।

