मैनपुर : तालाब तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है सरकार की नहर नीति
सिंचाई विभाग के कागज़ी नहरों में बहा जनता का भरोसा, गर्मी हो या बरसात – ‘निस्तारी’ बनी सरकारी लाचारी

जल संकट से निपटने के लिए हर साल शासन-प्रशासन ‘कागज़ी योजनाओं’ की झड़ी लगाता है — फंड आता है, घोषणाएं होती हैं, और तस्वीरों में मुस्कुराते अधिकारी भी नज़र आ जाते हैं। लेकिन जैसे ही गर्मी शुरू होती है, पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है, और सरकारी योजनाएं ‘वाष्पित’ हो जाती हैं।
मैनपुर {गरियाबंद} hct : कभी तालाबों को गाँव की जान कहा जाता था, अब वहीं जान सांसत में है। तहसील मुख्यालय मैनपुर के एक ग्राम पंचायत में स्थित निस्तारी तालाब नामक जलस्रोत, आजकल खुद निस्तार की तलाश में है।
हैंडपंप हों या कुएं — पानी नीचे चला जाता है, और जवाबदेही भी। निस्तारी के नाम पर जो तालाब कभी गांव की जीवनरेखा माने जाते थे, आज वे खुद वेंटिलेटर पर पड़े हैं। कागजों में जिन तालाबों को ‘पुनर्जीवित’ दिखाया जाता है, वे जमीनी हकीकत में दम तोड़ते नजर आते हैं।
कागज़ों में जीवित तालाब
गर्मियों में सूख चुके खेतों की तरह ही यह तालाब भी अब सिर्फ कागज़ों में जीवित है, और बारिश के इस मौसम में भी इसमें पानी का नामोनिशान नहीं। वजह? नहर की सफाई वर्षों से नहीं हुई। हाँ, योजनाएं बनी हैं, प्रस्ताव भेजे गए हैं, और बैठकें भी हुई होंगी – पर सफाई नहीं हुई। अब ग्रामीणों को मजबूरी में अन्य तालाबों तक जाना पड़ रहा है, और शासन-प्रशासन को यह खबर तब लगती है जब जनता की सांसों में पानी की जगह धूल भर जाती है।
बताया जा रहा है कि यह निस्तारी तालाब एक 500 मीटर लंबी नहर नाली से पानी प्राप्त करता है। हर साल यह पानी ग्रामीणों के लिए जीवनदायिनी साबित होता है – बशर्ते वह नहर साफ हो। लेकिन इस बार नहर खुद ही सहायता की गुहार लगा रही है।
ग्रामीणों ने कई बार सिंचाई विभाग के एई को सफाई हेतु आवेदन दिया, आश्वासन भी मिला – जैसे सरकारी परंपरा है – लेकिन “आज तक काम शुरू नहीं हो पाया है।” एक आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता ने आखिरकार कलेक्टर को पत्र सौंपकर पूरे मामले में संज्ञान लेने की मांग की है।
अब सवाल उठता है — क्या तालाब फिर पानी से लबालब होगा, या इस बार भी योजनाओं की फाइलें ही भीगेंगी?
तालाब इंतज़ार में है… और जनता भी।

