आरटीआई में खुलासा : “बोरे-बासी” के आयोजन में “व्यापक” घोटाला।
भूपेश सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल, "संवाद और व्यापक" ने मिलकर दिया घोटाले को अंजाम

रायपुर hct : छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में श्रमिक दिवस के अवसर पर आयोजित ‘बोरे-बासी दिवस’ कार्यक्रम में कथित तौर पर करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार उजागर हुआ हैं। आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों और सूत्रों के आधार पर दावा किया जा रहा है कि “संवाद” ने इस आयोजन के नाम पर बिना किसी निविदा प्रक्रिया के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि चमकाने तथा कमीशनखोरी की लालच में अपनी चहेती एजेंसी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इस महाघोटाले को अंजाम दिया है।
आयोजन की आड़ में भारी खर्च, प्रक्रिया पर सवाल
छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा हर साल 1 मई को श्रमिक दिवस के अवसर पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं, इस आयोजन में मुख्यमंत्री, मंत्री और नौकरशाह “छत्तीसगढ़ी संस्कृति” को बढ़ावा देने के लिए बोरे-बासी खाते और सोशल मीडिया पर प्रचार करते थे। इन आयोजनों में मंडप, सजावट, खानपान और प्रचार-प्रसार से जुड़ा कार्य लगातार एक ही एजेंसी को सौंपा गया। आयोजित कार्यक्रमों की संपूर्ण जिम्मेदारी कुछ चुनिंदा एजेंसियों को सौंपी जाती रही। इनमें प्रमुख रूप से रायपुर की “मेसर्स व्यापक इंटरप्राइजेस” का नाम सामने आया है, जिसे प्रचार-प्रसार और अन्य व्यवस्थाओं का कार्य बार-बार बिना टेंडर आबंटित किया गया। इस आयोजन के पीछे बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है।
आरटीआई कार्यकर्ता का खुलासा
आरटीआई कार्यकर्ता आशीष देव सोनी ने प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर बताया कि – “यह आयोजन वर्षों से नियमित रूप से होता आ रहा है और संबंधित विभागों को इसकी तिथि पहले से ज्ञात होती है। बावजूद इसके, विभाग ने जानबूझकर टेंडर प्रक्रिया से बचने के लिए समय की कमी का बहाना बनाया और अपनी पसंदीदा एजेंसियों को काम सौंपा। विभागीय दस्तावेजों में यह उल्लेख है कि “समय की कमी” का हवाला देकर निविदा आमंत्रित नहीं की गई…!
बिना निविदा करोड़ों का कार्य
- वर्ष 2022 में मेसर्स शुभम किराया भंडार को बिना टेंडर ₹3 करोड़ का कार्य आवंटित।
- वर्ष 2023 में मेसर्स व्यापक इंटरप्राइजेस को ₹8.32 करोड़ की राशि का भुगतान बिना निविदा के किया गया।
- वर्ष 2024 में भी यही प्रक्रिया दोहराई गई, जब आयोजन कृषि महाविद्यालय रायपुर में हुआ।
“व्यापक इंटरप्राइजेस” पर विशेष मेहरबानी
मेसर्स व्यापक इंटरप्राइजेस को न केवल बोरे-बासी आयोजन, बल्कि राजिम पुन्नी मेला, महिला सम्मान जैसे अन्य सरकारी आयोजनों में भी मंडप, सजावट और प्रचार-प्रसार का ठेका दिया गया। आरोप है कि बिना किसी जांच-पड़ताल के इस एजेंसी के करोड़ों रुपये के बिल स्वीकृत किए गए।
इन आयोजनों के लिए स्वीकृत की गई राशि और भुगतान की प्रक्रिया में निविदा की अनदेखी कर, चहेती एजेंसियों को सीधे कार्य सौंपा गया। दस्तावेज बताते हैं कि योजना बनाकर आयोजन की फाइलें कार्यक्रम तिथि के ठीक पहले चालू की जाती थीं, ताकि ‘समयाभाव’ का हवाला देकर निविदा प्रक्रिया को दरकिनार किया जा सके।
एक दिन के आयोजन में 8 करोड़ का भोजन !
राजधानी रायपुर स्थित साइंस कॉलेज मैदान में 2023 में आयोजित ‘बोरे-बासी महोत्सव’ में सरकार की छवि निखारने पर फोकस साफ तौर पर देखा गया। मुख्यमंत्री और मंत्रीमंडल के सदस्य परंपरागत छत्तीसगढ़ी भोजन खाते हुए सोशल मीडिया पर तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करते नजर आए। इस आयोजन में व्यापक इंटरप्राइजेस को 8 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया। पर्दे के पीछे, आयोजन पर खर्च हुई राशि को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह एक सांस्कृतिक उत्सव था या राजनीतिक छवि निर्माण का महंगा प्रयास? जानकार हतप्रभ हैं कि एक दिन के आयोजन में इतने बड़े पैमाने पर भोजन वितरण किसे और कैसे किया गया? इसके प्रमाण भी जांच के दायरे में आने चाहिए।
क्या भाजपा सरकार जांच करवाएगी ?
वर्तमान भाजपा सरकार से इस कथित घोटाले की जांच की मांग उठ रही है। आरटीआई दस्तावेजों से पता चलता है कि विभागीय अधिकारियों ने शासकीय प्रक्रियाओं की अनदेखी कर चहेती एजेंसियों को लाभ पहुंचाया। टेंडर प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए हर साल समय की कमी का बहाना बनाया गया। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह छत्तीसगढ़ में हालिया वर्षों का एक बड़ा राजनीतिक और वित्तीय घोटाला माना जाएगा।
निष्कर्ष
‘बोरे-बासी’ जैसे लोक-जीवन से जुड़े आयोजन, जो छत्तीसगढ़ की पहचान को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए गए थे, की आड़ में अगर भ्रष्टाचार हुआ है, तो यह केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों का भी अपमान है, यह लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रशासनिक जवाबदेही पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। यदि जांच होती है, तो यह स्पष्ट हो सकता है कि सरकारी खजाने का कितना दुरुपयोग हुआ और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या वर्तमान सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में ठोस कदम उठाएगी, या यह मामला भी धीरे-धीरे फाइलों में दफन हो जाएगा ?
