बलात्कार प्रेमी सरकार…!
नंगों को वस्त्र पहनाने की जिनकी जिम्मेदारी थी, वे मुँह ढापे हमाम में जा छुपे..
मणिपुर से शुरू हुई महिलाओं की नग्न परेड पर “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा बुलंद करने वाला 56 इंची छाती वाला महामानव के मुंह में आज तक दही जमा हुआ है। पश्चात, कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर से हुई बलात्कार की आग समूचे देश में फ़ैल चुकी है बिहार, उत्तराखंड और अब महाराष्ट्र का बदलापुर, पूरे देश में बुजुर्ग महिलाओं से लेकर ३ साल तक की मासूम बेटियां मानवभेड़ियों के हवस की भेंट चढ़ चुकी है। बलात्कारी; परोल पर आजाद हो रहें हैं, चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक के तौर पर नेताओँ जितवाने का ठेका दिया जा रहा हैं…?
4 साल की दो बच्चियों का स्कूल की बाथरूम में यौन शोषण
बदलापुर (महाराष्ट्र) : में एक नामी स्कूल में दो नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न के मामले से समूचा महाराष्ट्र; सड़क से लेकर रेल की पटरियों पर उतर आए। कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर से बलात्कार के बाद सड़क पर प्रदर्शन करते जनसैलाब के बीच, पहचानिए उस मानव भेंड़िए को आखिर कौन है ? जिसके अंदर अचानक अकेले में किसी बच्ची, किसी युवती, किसी (उम्रदराज) महिला को देखकर उसकी हवस की आग भभक उठे और उस आग में उस बच्ची, युवती और महिला से बर्बरता की तमाम हदें पार कर उसे मौत की नींद सुला दे…
ये बलात्कारी हमारे ही बीच का हमारा कोई बाप, बेटा, भाई, चाचा, भतीजा, मामा, काका, दादा, नाना, फूफा, शिक्षक या हम खुद हैं। हम लड़कियों पर तो बंदिशे लगा देते हैं मगर क्या अपनी मर्द जमात पर कोई बेड़ी लगा पाते हैं। कोई पकड़ा जाता हैं तो भीड़ में शामिल होकर यही तमाम शक्ल-ओ-सूरत वाले भोले मानुस जनसैलाब बनकर न्याय करने लग जाते हैं।
व्यंगकार *प्रमोद ताम्बट जी इस विषय पर गहरा कुठराघात करते हुए लिखते हैं :-
सब नंगे हमाम से बाहर हैं
कहा जाता है कि ‘हमाम में सब नंगे हैं’, लेकिन इस कहावत का कोई वस्तुनिष्ठ आधार नहीं है, जबरन इसे ‘हमाम’ और ‘नंगों’ पर थोपा जाता है। वास्तविकता तो यह है कि नंगे तो सब बाहर घूम रहे हैं, उन्हें झूठ-मूट ही हमाम के अन्दर बताने की साजिश की जा रही है।
इस बात के लिए प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं है कि-सारे नंगे, नंग-धडंग हालत में हमाम के बाहर घूम रहे हैं, क्योंकि कानून के मुताबिक उन्हें तो वास्तव में जेल की कोठरी में होना चाहिये था, परन्तु चूँकि वे जेल में नहीं हैं इसलिये यह स्वयं सिद्ध है कि वे बाहर ही घूम रहे हैं। चूँकि गली-गली, शहर-शहर नंगे नाच का शर्मनाक प्रदर्शन करने वाले सभी नंगे जेल की हवा में ना होकर ठाठ से खुले घूम रहे हैं इसलिये जाहिर है कि ‘हमाम’ में यदि सचमुच कोई मौजूद है तो वह ‘नंगा’ नहीं, कोई और ही हैं।
हमाम में अगर नंगे नहीं तो फिर कौन ?
हमाम में अगर नंगे नहीं तो फिर कौन हो सकता है, यह एक राष्ट्रव्यापी गंभीर प्रश्न है जिस पर समग्र राष्ट्र के बुद्धिजीवियों को चिंतन करना अत्यंत आवश्यक है। मुझे लगता है कि बाहर नंग-धडंग हालत में घूम रहे सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दुनिया के बड़े-बडे नंगों से घबराकर वे सारे लोग जिन्होंने शरीर पर शराफत के कपड़े पहन रखे है, हमामों में जा छुपे हैं ताकि नंगों के बीच रहकर उन्हें कोई शर्मिंदगी न उठाना पड़े और वे अपने छोटे-परिवार सुखी परिवार के साथ सुखपूर्वक रह सके और उनपर नंगों को कपड़े पहनाने का कोई नैतिक दायित्व भी न आ लदे।
नंगों को वस्त्र पहनाने की जिनकी जिम्मेदारी थी,
वे मुँह ढापे हमाम में जा छुपे…
आप हमाम के आस-पास चुपचाप हाथ बाँधे खड़े रहिये तो देखेंगे कि हमाम के अंदर आपको जाता हुआ तो कोई नंगा दिखाई नहीं देगा परन्तु बीच-बीच में हमाम के अन्दर से निकल-निकलकर नंगों में शामिल होते कई साफ-सुथरे कपड़ों वाले अक्सर दिखाई देते रहेंगे। यह बड़ी चिंता का विषय है कि जिन वस्त्रधारियों को नंगों को वस्त्र पहनाने की जिम्मेदारी निभाना थी वे सब मुँह ढापे हमाम में जा छुपे हैं और उनका दबेपॉव चुपचाप निकल-निकलकर नंगों में शामिल होने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। यही चलता रहा तो इस देश का क्या होगा।