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Chhattisgarh

बस्तर में “पीएम सूर्य योजना” को बैक कर्मियों की मनमानी का लगा ग्रहण !

विज्ञापनों में चमकता ‘सूर्य घर’, लेकिन बस्तर के गांवों में बैंक की फाइलों के नीचे दबा उजाला — प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के नाम पर फैल रही है उलझन और अविश्वास की छाया।

रायपुर hct : बस्तर के गांवों में प्रधानमंत्री “सूर्य घर” योजना का नाम अब परिचित तो हो गया है, पर इसका असर अभी तक सिर्फ़ पोस्टरों और विज्ञापनों तक ही सीमित है। शहरों की दीवारों पर चिपकी होर्डिंग्स में सूरज चमक रहा है, लेकिन गांवों की झोपड़ियों में अब भी दीये की लौ कांप रही है। सरकार इसे आत्मनिर्भर ऊर्जा क्रांति बताती है, मगर जिन आदिवासी इलाकों में यह योजना सबसे ज़रूरी है, वहीं सबसे अधिक निराशा का अंधेरा पसरा हुआ है।

प्रचार की आंधी, व्यवस्था की धूल

केंद्र और राज्य सरकारें इस योजना को सफल बनाने के लिए करोड़ों रुपये के विज्ञापन चला रही हैं। अखबारों के पन्नों से लेकर टीवी स्क्रीन तक, हर जगह “सूर्य घर” का नारा गूंज रहा है। पर वही किसान, जिनके घर इस योजना से रोशन होने थे, बैंक की चौखट से लौटाए जा रहे हैं। भानुप्रतापपुर की भारतीय स्टेट बैंक शाखा में कई किसानों ने बताया कि उन्हें सोलर पैनल के लिए आवेदन करने से हतोत्साहित किया जा रहा है।

बैंक का तर्क, किसान की उलझन

एक किसान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “बैंक कर्मी खुलेआम कहते हैं — सरकार की योजना कितने दिन चलेगी, कौन जाने! सब्सिडी आई तो ठीक, नहीं आई तो लोन तुम्हें ही भरना पड़ेगा।” इतना कहकर कर्मचारी खुद हंस पड़ते हैं, मानो किसानों की उम्मीद कोई मज़ाक हो। किसी ने कहा, “बिना लोन की जिंदगी ठीक है, सोलर के चक्कर में क्यों पड़ना?” — यानी बैंक न सिर्फ़ भरोसा तोड़ रहे हैं, बल्कि सरकारी योजना पर अविश्वास फैलाने का माध्यम बन गए हैं।

“अंतागढ़ का बैंक” मैनेजर नहीं, भगवान है

कांकेर ज़िले के कई ब्लॉकों में स्थिति और भी चौंकाने वाली है। दुर्गकोनदल, अंतागढ़, कोरर और कलेक्टरेट शाखाओं में सर्वे के दौरान पाया गया कि कई शाखाओं में या तो स्टाफ अधूरा है या मैनेजर ही नहीं हैं। अंतागढ़ की स्टेट बैंक शाखा तो सचमुच “भगवान भरोसे” चल रही है। जब बैंक की अपनी दिशा अस्पष्ट है, तो योजना की गाड़ी किसके भरोसे चलेगी?

सवाल जो सरकार तक पहुंचना चाहिए

किसानों की मानें तो बैंक कर्मियों की मनमानी अब खुले रूप में दिखाई दे रही है। कोई सोलर आवेदन लेने से कतराता है, तो कोई फाइल आगे नहीं बढ़ाता। यह वही जगह है, जहां सरकार का “सौर आत्मनिर्भर भारत” नारा सबसे पहले धराशायी होता दिखता है। प्रधानमंत्री के नाम पर चल रही योजना को लेकर बस्तर में जो भ्रम और भय का माहौल बना है, वह यह सोचने पर मजबूर करता है — क्या सच में योजनाओं का उजाला जनता तक पहुंच रहा है, या फिर वही पुराना अंधेरा बस नए नाम से लौट आया है।

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