2 महीने में धंसी भरदा–पेवरो सड़क, और झकझोर गई मुकेश चंद्राकर की हत्या
बालोद की भरदा–पेवरो सड़क पहली बारिश में ही टूट गई। 56 लाख के खर्च की पोल खुली और बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की दास्तां फिर ताज़ा हो गई।

बालोद hct : जिले के गुरुर विकासखंड में भरदा से पेवरो तक जाने वाली सड़क, जिस पर हाल ही में 56.88 लाख रुपये की लागत से संधारण कार्य हुआ था, पहली ही बारिश में धंस गई। दरअसल, महज़ दो महीने पहले जिस सड़क की उद्घोषणा ‘विकास’ के नाम पर की गई थी, वही अब जगह-जगह उखड़कर गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। डामर की परत उखड़ी, किनारे बैठ गए और सड़क की सतह इस कदर फट गई नतीजा यह हुआ कि अब यह सड़क राहगीरों और वाहन चालकों के लिए खतरा बन चुकी है।
मुकेश चंद्राकर – सड़क भ्रष्टाचार उजागर करने की जानलेवा कीमत
दरअसल, यह सड़क केवल बदहाली की मिसाल नहीं है, बल्कि एक पुराना डर भी जगा रही है। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने गंगालूर से नेलसनार तक 120 करोड़ की लागत से बन रही सड़क परियोजना में हुए भ्रष्टाचार को उजागर किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग में घटिया निर्माण, फर्जी बिलिंग और ठेकेदार–अफसर–माफिया की साठगांठ को बेनकाब किया। लेकिन सच सामने लाना यहां गुनाह साबित हुआ। नतीजा यह हुआ कि ठेकेदारों की नाराज़गी ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मुकेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई और उनकी लाश को सेप्टिक टैंक में फेंक दिया गया। यह सिर्फ हत्या नहीं थी, बल्कि एक चेतावनी थी – “जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएगा, उसकी ज़ुबान हमेशा के लिए बंद कर दी जाएगी।”
“यहां सड़कें भी टूटती हैं, और जो सच बोले, वो भी”
अब भरदा–पेवरो की यह सड़क भी हर गड्ढे के साथ वही सवाल दोहरा रही है।
महज़ दो महीने की उम्र में धंसकर ‘विकास’ का मज़ाक उड़ाती यह सड़क मानो कह रही हो – “यहां सड़कें भी टूटती हैं… और जो सच बोले, वो भी!” हालांकि यह सड़क 5 साल की गारंटी और वार्षिक संधारण के बड़े-बड़े वादों के साथ बनी थी, लेकिन हालात देखकर लगता है कि यह गारंटी सिर्फ कागज़ों पर ही जिंदा है।
बोर्ड चीख चीखकर बता रहा भ्रष्टाचार की गाथा
सड़क किनारे लगे बोर्ड पर साफ लिखा है कि निर्माण पर 56.88 लाख रुपये खर्च हुए, सड़क की 5 साल की गारंटी है और हर साल मरम्मत का दावा किया गया है। लेकिन पहली ही बारिश में डामर की परत गायब हो गई, किनारे बैठ गए और सड़क पर पानी का बहाव रुक गया। आखिरकार यह साफ हो गया कि गारंटी जनता की सुविधा की नहीं, बल्कि ठेकेदार की तिजोरी भरने की थी।
प्रशासन की खामोशी या मिलीभगत?
गुरुर ब्लॉक में यह कोई पहला मामला नहीं, लेकिन इस बार कई सवाल उठ रहे हैं। आखिर जब सड़क महज़ दो महीने में धंस गई, तो जिम्मेदार कौन है? क्या गुणवत्ता जांच केवल फाइलों में पूरी दिखाकर खानापूर्ति की गई? क्या ठेकेदार को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण मिला हुआ है? और क्या मुकेश चंद्राकर की हत्या जैसी घटनाएं ही अफसरों, पत्रकारों और आम जनता को खामोश रखने का असली हथियार बन चुकी हैं?
“यह सड़क नहीं, भ्रष्टाचार का स्मारक है”
ग्रामीण अब खुलकर नाराज़गी जता रहे हैं। उनका कहना है कि सड़क बनने के बाद उन्हें राहत की उम्मीद थी, लेकिन महज़ दो महीने में दरारें और धंसान देखकर समझ आ गया कि यह विकास नहीं, भ्रष्टाचार का स्मारक है। रोज़ाना गुजरते वाहन चालकों को झटके लगते हैं, और हर झटका यही सवाल खड़ा करता है – “क्या हमारी जान की कीमत सिर्फ ठेकेदार की डील तक सीमित रह गई है?”
सड़क टूटी, सच बोलने वाले भी
बालोद की यह सड़क अब सिर्फ गड्ढों का सिलसिला नहीं रही, बल्कि लोकतंत्र की उस कड़वी हकीकत की याद दिला रही है, जहां सड़कें टूटती हैं और सच बोलने वालों को जिंदा दफना दिया जाता है। मुकेश चंद्राकर की हत्या आज भी यही सवाल छोड़ती है – “क्या अगला सच बोलने वाला भी गड्ढे या टैंक में मिलेगा?”

