SC/ST कानून छत्तीसगढ़ : “चखना सेंटर में मारपीट और क्लिनिक में शोषण” मामले में मिला न्याय
गरियाबंद में युवक की पिटाई और बालोद में अनुसूचित जाति की किशोरी से शोषण – SC/ST कानून छत्तीसगढ़ की ताकत से दो अलग-अलग पीड़ितों को न्याय की तस्वीरें मिलीं।

छत्तीसगढ़ में SC/ST कानून छत्तीसगढ़ के तहत दर्ज दो चर्चित घटनाएं सुर्खियों में हैं। एक ओर, गरियाबंद में एक युवक जातिसूचक गाली और मारपीट का शिकार हुआ। वहीं दूसरी ओर, बालोद में एक साहसी किशोरी को अदालत से न्याय मिला, जिसने रसूखदार कथित ऊँगली वाला डॉक्टर और पूर्व राजनीतिक पदाधिकारी के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी।
SC/ST कानून छत्तीसगढ़: गरियाबंद का मामला
अमलीपदर क्षेत्र की एक लाइसेंसी चखना दुकान (आहता) इन दिनों चर्चा में है। खुद को ‘पत्रकार’ बताने वाले प्रतीक मिश्रा और उनके भाई मयंक मिश्रा पर जातिसूचक गाली और मारपीट के आरोप हैं।
अमलीपदर निवासी 26 वर्षीय दिग्नेश्वर नागेश, पिता प्रभुलाल नागेश, ने शिकायत दर्ज कराई कि 18 जुलाई की रात प्रतीक मिश्रा के ‘चखना सेंटर’ में विवाद के दौरान दोनों भाइयों ने गाली-गलौज की। इसके बाद, जूते-चप्पलों से पिटाई भी की गई।
यह मामला पहले अमलीपदर थाने में दर्ज हुआ। हालांकि, बाद में SC/ST कानून छत्तीसगढ़ के प्रावधानों के तहत इसे अजाक थाना गरियाबंद ट्रांसफर कर दिया गया। FIR (अपराध क्रमांक 65/2025) भारतीय न्याय संहिता की धारा 296, 115(2), 351(2) और SC/ST Act की धारा 3(5), 3(2)ध, 3(2)vक के तहत दर्ज हुई।
आरोपी भाइयों ने गिरफ्तारी से बचने के बाद आत्मसमर्पण किया। पुलिस ने औपचारिक गिरफ्तारी कर उन्हें विशेष न्यायालय रायपुर में पेश किया, जहां से अंततः उन्हें न्यायिक हिरासत में केंद्रीय जेल भेजा गया। गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी लगे दोनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। नतीजतन, यह मामला अब जनचर्चा और प्रशासन की साख दोनों के लिए चुनौती बन गया है।
SC/ST कानून छत्तीसगढ़: बालोद की साहसी बेटी को न्याय
इसी कानून के तहत बालोद जिले में एक ऐतिहासिक फैसला आया। 21 जुलाई 2025 को जिला न्यायालय ने एक कथित ऊँगली वाला डॉक्टर और पूर्व ब्लॉक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष, ओंकार महमल्ला को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
गुरूर नगर पंचायत के पूर्व एल्डरमेन और स्थानीय विधायक के करीबी माने जाने वाले ओंकार पर आरोप था कि उन्होंने अपने क्लिनिक में इलाज के बहाने एक अनुसूचित जाति की किशोरी से शोषण किया। दरअसल, शुरुआत में राजनीतिक रसूख के चलते शिकायत दबाने की कोशिशें हुईं। गुरूर थाना प्रभारी तक पर आरोपी का पक्ष लेने के आरोप लगे।
लेकिन, पीड़िता ने साहस दिखाकर शिकायत दर्ज कराई। जागरूक पत्रकारों और सामाजिक संगठनों की मदद से मामला पुलिस अधीक्षक बालोद तक पहुंचा। इसके फलस्वरूप, गिरफ्तारी हुई और लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले ने साबित किया कि SC/ST कानून छत्तीसगढ़ केवल कागज़ी प्रावधान नहीं, बल्कि न्याय दिलाने का प्रभावी औजार है।
SC/ST कानून छत्तीसगढ़: समाज और प्रशासन के सामने सवाल
दोनों घटनाएं यह दर्शाती हैं कि चाहे युवक की गरिमा पर हमला हो या बेटी की अस्मिता पर, न्याय की उम्मीद तभी साकार होती है, जबकि शिकायत दर्ज हो और जांच निष्पक्ष हो।
- क्या प्रशासन लाइसेंसी दुकानों और रसूखदार व्यक्तियों पर निगरानी में और सख्ती बरतेगा?
- क्या जातिसूचक हिंसा और यौन अपराधों के मामलों में त्वरित कार्रवाई समाज का भरोसा लौटा सकती है?
- साथ ही, क्या राजनीतिक दबाव और रसूख के बावजूद कानून सबके लिए समान रहेगा?
गरियाबंद का मामला फिलहाल न्यायालय की प्रक्रिया में है। उधर, बालोद के फैसले ने यह दिखाया कि न्यायपालिका और SC/ST कानून छत्तीसगढ़ मिलकर पीड़ितों को राहत दे सकते हैं।
इन घटनाओं से यह उम्मीद है कि भविष्य में पुलिस और प्रशासन संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ ऐसे मामलों को संभालेंगे, ताकि अंततः न कोई युवक सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित हो और न कोई बेटी अपनी अस्मिता की लड़ाई में अकेली खड़ी हो।

