‘अडानी पैनल’ हुआ ऑन, ‘बिजली बिल हॉफ’ योजना हुआ ऑफ !
रियायत नहीं, रायता फैला रही है सरकार, वो भी "धन्ना सेठ की थाली से छिनकर...!

जब जनता ने हॉफ बिजली बिल योजना को राहत का उजाला समझा, तब सरकार ने उसे सोलर पैनल के नाम पर सियासी बिजनेस प्लान में बदल दिया। भूपेश सरकार की योजना में जहां 400 यूनिट फ्री बिजली से जनता के चेहरे पर रौशनी थी, वहीं साय सरकार ने उसी मीटर को पलट कर, उसमें कॉरपोरेट करंट भर दिया।
रायपुर hct : जब सरकारें जनता के लिए नहीं, जनता पर काम करने लगें, तो नतीजा यही होता है। बिजली सस्ती करने की बजाय जनता को सोलर बिजनेस का ग्राहक बना दिया जाता है। छत्तीसगढ़ में हॉफ बिजली बिल योजना की हत्या कोई तकनीकी निर्णय नहीं, बल्कि एक पूरी तरह से प्रायोजित ‘धंधा योजना’ है और इसका इशारा ऊपर से आया है, बहुत ऊपर से…
भूपेश सरकार की ‘बिजली बिल हॉफ’ योजना ने गांव-गांव तक राहत पहुंचाई थी। 400 यूनिट तक फ्री बिजली ने आम जनता के बजट को थामे रखा था। लेकिन सत्ता बदलते ही इस योजना को ठिकाने लगाया गया। क्यों? क्योंकि साय सरकार को अब जनता की थाली नहीं, अडानी की झोली भरनी है।
‘सूर्यघर’ नहीं, ‘धंधाघर’ योजना है ये
पीएम सूर्यघर योजना का असली उद्देश्य अडानी के सोलर पैनलों की बिक्री बढ़ाना है, न कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाना। जिन कांग्रेस शासित राज्यों ने इसे नकार दिया, उन्होंने दरअसल जनता के हित में ही एक बड़ा कदम उठाया। लेकिन भाजपा शासित राज्य? वे तो सरकारी फरमान के गुलाम बनकर रह गए हैं।
छत्तीसगढ़ में भी वही स्क्रिप्ट चलाई गई – योजना बंद, बिजली दरें बढ़ाओ और जनता को मजबूर करो कि वो पीएम योजना के नाम पर अडानी का पैनल खरीदे।
अब जबरदस्ती की बारी : कर्मचारियों को ब्लैकमेल
सरकारी दबाव की हद तो तब हो गई जब पॉवर कंपनी ने अपने ही कर्मचारियों को धमकी भरे अंदाज़ में सोलर पैनल लगवाने का आदेश जारी कर दिया। मुख्य अभियंता ने फरमान जारी किया -“तीन दिन में अपने घर पर सोलर पैनल लगाओ, नहीं तो बिजली बिल में मिलने वाली रियायत बंद कर दी जाएगी।”
बोर्ड क्वार्टर, किराए के मकान, बहुमंजिला इमारत – कोई बहाना नहीं चलेगा। यहां तक कि जिनके पास खुद का मकान नहीं है, उन्हें उनके पुश्तैनी घरों में पैनल लगवाने का ज्ञान दिया जा रहा है। मानो कर्मचारी नहीं, कोई सेल्स एजेंट हों, जिन्हें टारगेट पूरा करना है।
क्या है फायदा और क्या है नुकसान
प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार Ranjeet Bhonsle जी; अपने फेसबुक वाल पर छ ग़ में सब्सिडी वाले रूफ टॉप सोलर पैनल स्कीम नफा और नुकसान के बारे में एक उत्कृष्ठ जानकारी साझा किए हैं। सवाल ये नहीं है कि सोलर लगाओ या नहीं। सवाल ये है कि क्या सरकार को अब अपने नीति निर्धारण का आधार कॉरपोरेट हित बनाना चाहिए?
‘हसदेव’ से ‘हाउसडेड’ तक – सब कुछ अडानी के हवाले
साय सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो सब साफ हो जाता है – हसदेव के जंगल काटे गए, क्योंकि खनन का ठेका अडानी को देना था। अब बिजली दरें बढ़ाईं जा रही हैं, ताकि अडानी के सोलर पैनल घर-घर पहुंचे। अगला कदम शायद ऑक्सीजन पर टैक्स लगाकर अडानी एयर प्यूरीफायर बेचवाना हो!
अगर जनता की जेब पर हमला कर, कॉरपोरेट की तिजोरी भरी जा रही है, तो समझ लीजिए… सरकार नहीं, दलाली की दुकान खुल चुकी है।
