कांकेर : ट्रक ड्राइवर पर भीड़ और पुलिस की बर्बरता, प्राइवेट पार्ट पर लात !
बस हादसे के बाद भीड़ और पुलिसकर्मी मिलकर ड्राइवर पर टूट पड़े, संवेदनशील अंग पर हमला — महज दो दिन पहले पंजाब में पत्रकार की पिटाई से मौत, वर्दीवालों की बर्बरता पर देशभर में सवाल

रायपुर hct : छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। 3 अगस्त को चारामा थाना क्षेत्र में एक ट्रेलर ने यात्रियों से भरी बस को टक्कर मार दी। हादसे में कोई यात्री घायल नहीं हुआ, लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने हादसे की भयावहता को पीछे छोड़ दिया।
ट्रेलर चालक को पकड़ने के बाद पुलिस और स्थानीय भीड़ ने मिलकर सड़क पर ही न्याय का तमाशा शुरू कर दिया। वीडियो में साफ दिख रहा है :- “ड्राइवर को घेरकर लात-घूंसे मारे जा रहे हैं, पुलिसकर्मी उसके बाल पकड़कर सड़क पर घसीट रहे हैं और इस बीच भीड़ में मौजूद एक युवक उसके प्राइवेट पार्ट पर जोरदार लात मारता है।” वह दर्द से कराहता रहा, लेकिन पुलिस की मौजूदगी में यह हिंसा थमी नहीं, बल्कि पुलिस खुद भी इसमें शामिल दिखी। यह दृश्य किसी सभ्य समाज का नहीं, बल्कि जंगल राज का था।
अवगत हो कि वारदात के वक्त भीड़ में शामिल एक शख्स ने ड्राइवर से मारपीट का वीडियो बना लिया, जो अब वायरल हो रहा है…
कैसे बनी सड़क ‘न्याय’ का मंच
बस को टक्कर मारने के बाद ट्रेलर चालक मौके से भागा। पुलिस की हाईवे पेट्रोलिंग टीम और कांकेर से भेजी गई दूसरी टीम उसका पीछा करती रही। मचांदुर नाका पर ट्रक खड़ा कर रास्ता रोका गया और चालक को पकड़ा गया। लेकिन गिरफ्तारी की प्रक्रिया कानूनन करने के बजाय, पुलिस ने भीड़ को खुली छूट दी और खुद भी मारपीट में शामिल हो गई।
पुलिस का इनकार, लेकिन वीडियो बोले सच
चारामा थाना प्रभारी जितेंद्र साहू ने घटना से इनकार किया और कहा कि ड्राइवर को बस वाहन से उतारकर थाने भेजा गया था। लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पुलिस के दावे को कमजोर कर देता है, जिसमें पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में ड्राइवर की पिटाई और घसीटने के दृश्य साफ दिखते हैं।
।। देखिए विडियो ।।
चालक यूनियन संघ के जिलाध्यक्ष याकूब गोरी ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा – “पुलिस का काम आरोपी को थाने ले जाकर कानून के तहत कार्रवाई करना है, न कि खुद सज़ा देना। वर्दीवालों का यह रवैया न्याय के नाम पर गुंडागर्दी है।”
देशभर में दोहराई जा रही कहानी
यह पहली बार नहीं है जब वर्दीवालों की मौजूदगी में इंसानियत को रौंदा गया हो। महज दो दिन पहले पंजाब से भी एक वीडियो सामने आया है, जिसमें 1 अगस्त को सरेराह एक पत्रकार की जानलेवा पिटाई पुलिसकर्मी करते दिख रहे हैं। समाचारों के अनुसार, उस हमले में गंभीर रूप से घायल पत्रकार की मौत हो चुकी है। यह दो अलग-अलग राज्यों की घटनाएं भले हों, लेकिन तस्वीर एक ही है — वर्दी के नाम पर कानून को ठेंगा दिखाना और भीड़तंत्र जैसा व्यवहार करना।
सवाल सिर्फ कांकेर का नहीं
कांकेर और पंजाब की घटनाएं एक ही संदेश देती हैं – जब कानून के रक्षक खुद हिंसा में शामिल हों, तो न्याय और मानवाधिकार की उम्मीद कैसे की जाए? अगर इस बर्बरता पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में कानून के नाम पर हिंसा और भी खुलकर नाचेगी, और कोई भी सड़क पर ‘न्याय’ के बजाय ‘लाठी’ का शिकार बन सकता है।
