गरियाबंद : राहत राशि की लूट पर गिद्धों की दावत, गांधारी की भूमिका में पुलिस !
आदिवासी परिवार की चार लाख की आपदा राहत राशि बनी दलालों का शिकार...

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पीड़ित : कुमार सिंह नेताम, ग्राम बोईरबेड़ा, थाना मैनपुर, जिला गरियाबंद।
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परिस्थिति:
- वर्ष 2024 में पिता स्व. झुल सिंह नेताम की सांप काटने से मृत्यु हुई।
- शासन की ओर से ₹4 लाख आपदा राहत राशि खाते में जमा हुई।
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आरोप:
- यशवंत नागेश (कोटवार, बोईरबेड़ा):
- दो बार ₹10,000-₹10,000 ट्रांसफर कराया।
- कई बार नगद वसूली की।
- लगातार गाली-गलौज, धमकी और दबाव बनाकर प्रताड़ित किया।
- 07 सितंबर 2025 को सार्वजनिक रूप से गाली-गलौज व धमकी।
- राज निषाद (पिता रतनू निषाद, निवासी धवलपुर):
- सीधे तौर पर लगभग ₹2.50 लाख रुपये हड़प लेने का गंभीर आरोप।
- शेष राहत राशि पर भी निगाह और कब्जे का प्रयास।
लागू धाराएँ ( दोनों आरोपियों पर) –
यशवंत नागेश (कोटवार)
- धारा 420, 406 IPC – धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात।
- धारा 384 IPC – जबरन उगाही।
- धारा 504, 506 IPC – गाली-गलौज व धमकी।
- धारा 323 IPC – मारपीट।
- SC/ST Act (धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va)) – अनुसूचित जनजाति पर सार्वजनिक रूप से अत्याचार।
- विभागीय कार्रवाई – कोटवार के पद से निलंबन/बर्खास्तगी।
राज निषाद (धवलपुर निवासी)
- धारा 420, 406 IPC – बड़ी रकम हड़पने का मामला।
- धारा 120B IPC – आपराधिक षड्यंत्र (यदि दोनों की मिलीभगत सिद्ध हो)।
- धारा 384 IPC – धमकी या दबाव डालकर रकम हड़पना (यदि साबित हो)।
पुलिस-प्रशासन की ज़िम्मेदारी
- पीड़ित ने दो-दो आवेदन दिए हैं, दोनों में रकम हड़पने के ठोस आरोप और बैंक ट्रांजैक्शन की छायाप्रतियाँ हैं।
- यह मामला अब सामूहिक धोखाधड़ी और जनजातीय व्यक्ति की आपदा राहत राशि के दुरुपयोग का बन चुका है।
- पुलिस अधीक्षक को तत्काल FIR दर्ज कर दोनों आरोपियों (यशवंत नागेश और राज निषाद) को नामजद करना चाहिए।
- SC/ST Act लागू होने से जमानत मुश्किल होगी और गिरफ्तारी अनिवार्य है।
- पीड़ित को सुरक्षा और मुआवज़े की गारंटी दिलवाना भी प्रशासन का दायित्व है।
त्रासदी से शुरू हुई कहानी
गरियाबंद hct : ग्राम बोईरबेड़ा, थाना मैनपुर का यह मामला राहत से ज़्यादा व्यवस्था की लापरवाही और दबंगई का नमूना बनकर सामने आया है। धान कटाई के दौरान सांप के काटने से झुल सिंह नेताम की मौत हुई तो शासन ने संवेदना दिखाते हुए चार लाख रुपये की आपदा राहत राशि परिजनों को दी। लेकिन यह राहत उसी परिवार पर बोझ बन गई, क्योंकि गाँव का कोटवार और उसके सहयोगी उस रकम को निगलने पर आमादा हो गए।
कोटवार पर आरोप : दबाव, उगाही और धमकी !

पीड़ित कुमार सिंह नेताम ने जिला पुलिस अधीक्षक को दिए आवेदन में आरोप लगाया है कि ग्राम कोटवार यशवंत नागेश ने दबाव बनाकर दो-दो बार दस-दस हजार रुपये अपने खाते में ट्रांसफर कराए। यही नहीं, कई मौकों पर नगद रकम भी वसूली और गाली-गलौज, धमकी देकर आतंक का माहौल बनाया। आरोप यह भी है कि 7 सितंबर 2025 को भूतपूर्व सरपंच के घर के सामने खुलेआम गाली-गलौज करते हुए उसे पुलिस चौकी में फँसाने की धमकी दी गई।
दूसरा खिलाड़ी : राज निषाद की भूमिका
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इस खेल में धवलपुर निवासी राज निषाद पिता रतनू निषाद भी शामिल हो गया, जिसने करीब ढाई लाख रुपये राहत राशि से हड़प लेने का आरोप झेला। यानी एक आदिवासी परिवार की आपदा राहत राशि दबंगई और दलाली के गठजोड़ में साफ़-साफ़ लुट गई।

और इस प्रकरण में सिर्फ़ दबंग ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसे प्राणी भी मददगार की चादर ओढ़े गिद्ध की तरह अपना हिस्सा नोच ले गए। दलाली की इस मंडली में शामिल “मौका परस्त” लोगो ने चुप्पी साधकर और लीपापोती करके यह साबित कर दिया कि ज़मीर से बड़ी कीमत “माल” की होती है।
FIR दर्ज करने में ढिलाई
अब असली सवाल यह है कि जब पीड़ित ने बैंक खाते की जमा-निकासी की छायाप्रतियाँ तक सबूत के तौर पर जोड़ दीं, तो पुलिस ने FIR क्यों नहीं दर्ज की? भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 154 कहती है कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही FIR दर्ज होनी चाहिए। और यहाँ तो मामला धोखाधड़ी, उगाही, धमकी, गाली-गलौज और SC/ST Act तक पहुँच चुका है।
कानून साफ़ कहता है कि अनुसूचित जनजाति परिवार पर अत्याचार के मामले में FIR दर्ज करने में देरी खुद अपराध है। मगर पुलिस की फाइलें वहीँ अटक गईं, जहाँ प्रशासन की पुरानी आदतें शुरू होती हैं।
पत्रकार को भी मिली धमकी

इस मामले में जब हमारे संवाददाता मुकेश सोनी ने तह में जाकर जानकारी एकत्रित की, तब आरोपी कोटवार यशवंत नागेश ने उसे भी यह कहकर धमकी दी—
“तू मुझे फोन करके बहुत परेशान कर रहा है; मैं तेरी सारी पत्रकारिता, मुझे सामाजिक तौर पर प्राप्त (SC/ST एक्ट) के पचड़े में डालकर घुसेड़ दूंगा।”
यानी कोटवार की दबंगई सिर्फ़ राहत राशि तक सीमित नहीं रही, बल्कि सच को उजागर करने की कोशिश कर रहे पत्रकारों को भी डराने-धमकाने तक पहुँच गई…!
“इस प्रकरण पर संबंधित अधिकारियों व आरोपियों का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, लेकिन समाचार लिखे जाने तक उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी।”
