चुनाव नतीजे और बिना समय गंवाए 23 मई की रात 10-11 बजे ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों नरेंद्र मोदी की फटाफट शपथ! कितनी अतार्किक बात है यह। लेकिन मैंने ऐसी आशंका दिल्ली के एक आला कॉरपोरेट लॉबिस्ट से सुनी। उन्होंने मेरा 160 से 180 के बीच का आकलन, यह निचोड़ कि भाजपा 200 पार कतई नहीं के विश्वास में तपाक से कहा भाई साहब तब आप जान लें कि नरेंद्र मोदी 23 की रात को ही राष्ट्रपति भवन में शपथ करा लेंगे। वे नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे या भाजपा में नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह व आरएसएस में किसी को सोचने-विचारने का मौका नहीं देंगे।
उफ; सोचिए, मोदी की सत्ता ललक को लेकर कैसा एक्स्ट्रीम ख्याल ! मैंने तर्क दिया कि 23 मई की रात तक चुनाव आयोग नई लोकसभा के गठन की सूचना राष्ट्रपति को नहीं दे सकता। चुनाव प्रक्रिया खत्म नहीं हो सकती। न ही सांसदों के फटाफट दिल्ली पहुंच कर संसदीय दल की बैठक में मोदी को नेता चुनना संभव है। नेता का चुनाव, राष्ट्रपति को पत्र देना और राष्ट्रपति का हाथों-हाथ फैसला ले कर नरेंद्र मोदी को शपथ दिलवाना सब अव्यावहारिक और अतार्किक है। मेरी दलीलें सुनकर उन्होंने कहा- आप ठीक कह रहे हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी रिस्क नहीं लेंगे।
एनडीए की 240 सीट आ जाए तब भी उन्हें शपथ लेने की जल्दी होगी, क्योंकि पता नहीं उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार उनके नाम पर राष्ट्रपति को समर्थन पत्र देने में देरी कर दें। इसलिए नरेंद्र मोदी भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी बनने के नाते राष्ट्रपति से कहेंगे कि उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला लोकसभा में बहुमत साबित करने का वक्त दें। मोदी-शाह को संसदीय दल की बैठक बुलाने की जरूरत नहीं है। अमित शाह भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक से फैसला करा राष्ट्रपति को नरेंद्र मोदी के नेता चुन लिए जाने की सूचना देकर दावा कर देंगे।
मुझे बात जंची नहीं। मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी का नतीजों के बाद व्यवहार सीट संख्या से प्रभावित होगा। यदि भाजपा को 150 से 200 के बीच सीट मिली तो शपथ लेने की हड़बड़ी होगी। यदि सीटें 200 से ऊपर गईं तो भाजपाई ज्योतिषियों की 29 मई को दोपहर बाद शपथ की अटकल सही हो सकती है। दोनों स्थितियों में मोदी का शपथ का इरादा पक्का माना जाए।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जहां सवाल है वे पूरी तरह गुजराती लॉबी के कब्जे में हैं। नरेंद्र मोदी ने अपने सर्वाधिक भरोसेमंद अफसर भरतलाल को वहां इसलिए बैठाया हुआ है कि मोदी के यहां से लेटर टाइप हो कर जाए और राष्ट्रपति चुपचाप उन पर दस्तखत करते रहें। राष्ट्रपति के सचिव कोठारी हों या उनका पूरा सचिवालय सब मोदी-शाह के सौ फीसदी कब्जे में हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इमरजेंसी के वक्त के राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली से भी ज्यादा निरीह और लाचार हैं। वे हर तरह से गुजरातियों से घिरे हुए उनकी बंदिशों में हैं। नतीजों के बाद राष्ट्रपति किनसे मिले और क्या करे यह सब मोदी के प्रधानमंत्री दफ्तर से संचालित होना है।
क्या यह सब इतना आसान है? अपना मानना है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अजित डोवाल 23 मई से लोकसभा में बहुमत साबित करने का रोडमैप बनाए हुए होंगे। भाजपा को 150 सीट भी मिले तब भी सबसे बड़ी पार्टी के नेता के नाते नरेंद्र मोदी के शपथ लेने का हक बनता है। मोदी-शाह 150 से 200 सीटों से बीच की जीत को भी सवा सौ करोड़ लोगों के पूर्ण विश्वास वाली जीत का प्रोपेगेंडा बना देंगे। टीवी चैनल और मीडिया मोदी जिंदाबाद का जस का तस हल्ला बनाए रखेंगे। अमित शाह भाजपा के इलाकों में, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि में नौजवानों को सड़कों पर उतरवा कर जश्न करवाएंगे कि वाह मोदीजी जीत गए और देश की स्थिरता-सुरक्षा-आतंकवाद से लड़ाई के लिए नरेंद्र मोदी का फिर प्रधानमंत्री बनना भारत माता का वरदान है, आदि, आदि। कौन है विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद का नेता? कहां है विपक्ष का एलायंस? इसलिए नरेंद्र मोदी की शपथ सही। वही दे सकते हैं नेतृत्व और उन्ही से हिंदुओं की रक्षा। मतलब मोदी-शाह-डोवाल के रोडमैप का पहला हिस्सा राष्ट्रपति को मजबूर बनाना है, उन पर दबाव बनवाना है कि उनका संवैधानिक कर्तव्य है कि नरेंद्र मोदी को शपथ दिलाएं। बहुमत साबित करने का लंबा समय दें।
इसलिए अपना अनुमान है कि 23-24 मई को अल्पमत के बावजूद नरेंद्र मोदी सबसे बड़े दल के नेता के नाते बतौर प्रधानमंत्री शपथ लेंगे। राष्ट्रपति कोविंद उन्हें लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए महीने भर तक का वक्त दे सकते हैं। शपथ होने के बाद एनडीए की पार्टियों के उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार जैसे नेताओं की गर्दन पर सत्ता की बंदूक तान उनसे समर्थन पत्र लिया जाएगा। सत्ता में आते ही अपनी धमक, अपना जलवा बताने के लिए दस तरह के फैसले नरेंद्र मोदी लेंगे। उन्हें कोई रोक नहीं सकता। राष्ट्रपति भवन मैनेज तो सुप्रीम कोर्ट में भी वैकेशन जज के नाते चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सब कुछ संभाले हुए हैं। विपक्ष कितना ही चिल्लाए, उसकी सुनवाई के लिए कहीं कोई जगह नहीं। शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, मायावती, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव दिल्ली में वक्त काटते हुए, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और एक दिन पता पड़ेगा कि अचानक कोई पुलवामा हुआ और फिर पाकिस्तान के भीतर एयरस्ट्राइक।
और मोदी की जय! मोदी भक्त माहौल ऐसा बना देंगे कि नवीन पटनायक, चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, मुलायमसिंह सब सोचने लगेंगे कि नरेंद्र मोदी के लौह नेतृत्व का समर्थन कर बहती गंगा में हाथ धोया जाए। नामुमकिन यह भी नहीं कि सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स वाले टीआरएस से ले कर जगन रेड्डी से लिखवा लें और उनको कहें कि आप लोग ही हमारा यह पत्र राष्ट्रपति भवन पहुंचवा दें। हां, मोदी की दूसरी शपथ के बाद वह मुमकिन है, जिसकी अभी कल्पना नहीं की जा सकती है।
जाहिर है नरेंद्र मोदी व अमित शाह और उनके सलाहकार अजित डोवाल 23 मई की शाम से साम, दाम, दंड, भेद के तमाम तरीकों से वे तमाम नामुमकिन काम करेंगे, जिससे लोकसभा में बहुमत प्रमाणित हो। तीनों के दिमाग में सत्ता के बिना जीवन संभव नहीं है। मायावती व ममता बनर्जी के आगे नरेंद्र मोदी लेट जाएंगे, उन्हें उपप्रधानमंत्री का पद और अंबानियों-अदानियों के सारे बोरे पेश करा देंगे। मतलब नामुमकिन को मुमकिन बनाना इसलिए जरूरी है क्योंकि सत्ता के बिना आगे जीवन नामुमकिन है। तभी 23 मई के बाद है आजाद भारत के इतिहास का सर्वाधिक विकट महीना। मोदी-शाह-डोवाल 80 से 100 सीट के जुगाड़ का हर तरह का ब्लूप्रिंट बनाए हुए होंगे। यदि वैसा संभव नहीं हुआ तो यह भी संभव मानें कि देश में अंदरूनी या बाहरी सुरक्षा की इमरजेंसी की नौबत आ जाए और सब कुछ स्थगित हो।
जाहिर है यह सब एक्स्ट्रीम बातें हैं। लेकिन ध्यान रखें पुलवामा हमला, वायुसेना का सर्जिकल स्ट्राइक, तीन सौ मुंडियों का हल्ला और 26 फरवरी से लेकर अब तक जनमानस को मूर्ख बनाने की लगातार बहती झूठ की, गालियों की गंगा को। सो, नोट रखें कि नामुमकिन को मुमकिन बनाने का मोदी-शाह-डोवाल का असली खेल 23 मई के बाद शुरू होगा।
सवाल है क्या नरेंद्र मोदी में इतनी हिम्मत है जो 200 से कम सीट आए तब भी बलात अपना बहुमत, अपनी सत्ता बना डालें? मैं इसे इसलिए संभव मानता हूं क्योंकि नरेंद्र मोदी ने समझा हुआ है कि हिंदू और खास कर आरएसएस, भाजपाई नेता बिना गुर्दे और बिना रीढ़ के हैं। नरेंद्र मोदी ने पांच सालों में यही तो प्रमाणित किया है कि हिंदू डीएनए डरपोक, बिकाऊ, गुलाम और मूर्ख है तो मोदी-शाह क्यों न इस विश्वास में रहें कि वे नामुमकिन को मुमकिन कर सकते हैं।
राष्ट्रपति भवन मोदी का एक्सटेंशन है, संस्थाएं गुलाम हैं, नौकरशाही जूते चाट रही है, मीडिया भोंपू है, पार्टी और संगठन बंधुआ हैं और जब हिंदुओं की ऐसी तासीर से ही इतिहास में खैबर से आने वाले पांच सौ घुड़सवारों के लिए दिल्ली में राज आसान हुआ करता था तो 21 वीं सदी में 200 सीटें दिल्ली के तख्त की गारंटी क्यों नही हैं? नरेंद्र मोदी ने नागपुर के मोहन भागवत से लेकर राष्ट्रपति भवन के कोविंद, सुप्रीम कोर्ट के गोगोई सबकी तासीर समझी हुई है। तभी वे कोई कसर नहीं रख छोड़ेंगे अल्पमत को बहुमत साबित करने में। फिर अभी तो याकि 23 मई तक तो यों भी मोदी को ईवीएम की मशीनों से 300 सीटें निकलने का विश्वास है।
विश्लेषण- हरिशंकर व्यास (वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल नया इंडिया के संपादक हैं। यह लेख जनादेश साप्ताहिक से साभार लिया गया है।)