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Chhattisgarh

एनटीपीसी डीजीएम विजय दुबे रिश्वतखोरी में गिरफ्तार, भ्रष्टाचार की विरासत उजागर

बिलासपुर एसीबी की बड़ी कार्रवाई, जमीन मुआवजा दिलाने के एवज में 4.50 लाख रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ा गया

रायपुर hct : भ्रष्टाचार की बेलगाम फसल अब केवल दफ्तरों तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली विरासत का रूप ले चुकी है। इसकी ताज़ा मिसाल रायगढ़ एनटीपीसी के उप-महाप्रबंधक (डीजीएम) विजय दुबे हैं, जिन्हें एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने मंगलवार को 4.50 लाख रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया। मामला जमीन मुआवजा भुगतान से जुड़ा है। लेकिन जो बातें परदे के पीछे से सामने आई हैं, वे बताती हैं कि दुबे परिवार में रिश्वतखोरी कोई अपवाद नहीं बल्कि परंपरा रही है।

दरअसल, विजय दुबे ने तमनार थाना क्षेत्र के तिलाईपाली निवासी सौदागर गुप्ता से उसके बेटों को मिलने वाले 16 लाख रुपए के मुआवजे में से 5 लाख रिश्वत की मांग की थी। एसीबी की टीम ने शिकायत की पुष्टि के बाद पेट्रोल पंप के पास दुबे को पैसे लेते हुए पकड़ लिया। गुप्ता ने बताया कि आरोपी अधिकारी पहले ही 50 हजार रुपए ले चुका था।

बड़बोलापन और घमंड बना कमजोरी

एसीबी की गिरफ्तारी के बाद जो अंदरूनी बातें प्रकाश में आईं, वे विजय दुबे के चरित्र पर और भी गहरे सवाल उठाती हैं। सूत्रों के अनुसार एक गुप्त जानकार ने हमसे यह जानकारी साझा करते हुए बताया कि उनके दादा जी ने लगभग 10 साल पहले जो अब से 5 साल पहले 92 साल की आयु पूरी कर स्वर्ग सिधार गए, ने सूत्रधार के पिताश्री को बातचीत में बताए रहे कि उनका पोता विजय शुरू से ही बड़बोले और घमंडी स्वभाव का रहा है। वह UPSC जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कर सका। तब …

पिता पर भी गंभीर आरोप

जब विजय दुबे UPSC में असफल हुआ; तो NTPC की नौकरी उसे मेरिट से नहीं, बल्कि कथित पैसों की ताकत से मिली। बताया जाता है कि उसके पिता रमेश कुमार दुबे ने लगभग 20 लाख रुपए देकर NTPC के इंटरव्यू बोर्ड से बेटे की नियुक्ति सुनिश्चित कराई थी। उल्लेखनीय है कि रमेश दुबे खुद भी एक विवादास्पद रेंजर रहे हैं, जिन पर रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं।

जैसे पिता वैसे पुत्र रिश्वतखोरी का “कुशल उत्तराधिकारी”

इस घटना ने साबित कर दिया कि रिश्वतखोरी केवल व्यक्तिगत लालच का मामला नहीं, बल्कि कई परिवारों में यह एक “संपत्ति” की तरह अगली पीढ़ी तक पहुंचाई जाती है। विजय दुबे का रिश्वत में धरे जाना इस बात की गवाही है कि जब पिता खुद व्यवस्था को कमजोर करने में लिप्त हों, तो संतान उस रास्ते को और अधिक निर्लज्जता से अपनाती है।

एसीबी की कार्रवाई से खलबली

एसीबी ने विजय दुबे को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (संशोधित अधिनियम 2018) की धारा 7 के तहत गिरफ्तार किया है। यह रायगढ़ जिले में पिछले एक साल के भीतर 8वीं बड़ी कार्रवाई है। एनटीपीसी जैसी महत्त्वपूर्ण कंपनी में बैठे उच्च पदस्थ अफसर की गिरफ्तारी से संगठन की छवि पर भी गहरी चोट पहुंची है।

सत्ता, सिस्टम और सवाल

अब बड़ा सवाल यह है कि जब ऐसे अफसर अपने परिवार की “खास विरासत” को ढोते हुए जनता के अधिकारों की लूट-खसोट में लगे हों, तो फिर आम आदमी किस पर भरोसा करे? सरकारी दफ्तरों की फाइलें तभी आगे बढ़ती हैं जब नोटों की गड्डियां टेबल के नीचे सरकाई जाएं। विजय दुबे की गिरफ्तारी महज़ एक शख्स का पतन नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र पर तीखा व्यंग्य है, जो भ्रष्टाचार को छुपाता नहीं बल्कि पोषित करता है।

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