शासकीय घांस जमीन को मलमा बताकर लाखों में किया सौदा !
पटवारी, आरआई, तहसीलदार की तिकड़मबाजी और भूमाफियाओं का दांव-पेंच ...
जिस तरह वंश वृद्धि के लिए संभोग करने से पहले नर और मादा चींटियां एक-दूसरे के पास पर (पंख) निकाल लेती हैं और संभोग के बाद नर चींटी मर जाता है और मादा अपना पर उखाड़कर एक नया समूह बनाती है। ठीक वैसे ही, भू-माफिया, दलाल जब जब भाजपा सत्ता में आई है; शासकीय जमीनों को अपनी बपौती समझकर तरह तरह की जुगत भिड़ा खरीदी बिक्री का खेला करे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह कि जिस विभाग के कर्णधारों के कंधे इन शासकीय जमीनों की संरक्षण की जिम्मेदारी / जवाबदेही होता है उसी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी ही इन भू-माफियाओं / दलालों के लंगोटिया बनकर सरकारी जमीन में हेराफेरी (कूटरचित कारनामे) कर अपना घर आबाद करने में माहिर होते हैं खासकर पटवारी इस घोटाले के मास्टरमाइंड होते है जो सरकारी जमीन को कैसे निजी नाम पर चढ़ाकर दलालों के माध्यम से उसे आसानी से बेचा जा सके आसान कर देता हैं।
कोरबा hct desk : जिला के तहसील ग्राम दादरखुर्द में स्वामित्व शासकीय घांस भूमि जिसका की पूर्व में मूल खसरा नम्बर 444, हल्का नम्बर – 00021, रकबा 0.016 हेक्ट./0.04 एकड़ जिसकी लंबाई 85 फीट एवं चौड़ाई 21 फीट आंका गया है, पर एक महिला लीला बाई वर्तमान उम्र 87 वर्ष, पिता स्व. धनऊराम पटेल के द्वारा काबिज होने का संकेत मिलता है, से जुड़ा एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है।
घांस जमीन को मलमा बताकर लाखों में किया सौदा !
प्राप्त दस्तावेज के आधार पर उक्त ज़मीन पर काबिज महिला, पब्लिक नोटरी के समक्ष पक्ष क्रमांक 01 जिसे विक्रेता /इकरारकर्ता अंकित किया जाकर विवरण में लीला बाई उम्र 87 वर्ष पिता स्व. धनऊराम पटेल जाति मरार, निवासी-ग्राम दादरखुर्द, तहसील व जिला कोरबा (छ०ग०) तथा क्रेता /इकरारग्रहिता अरविन्द माहेश्वरी उम्र 31 वर्ष पिता श्री छोटकू राम जाति सतनामी, निवासी दादरखुर्द (खरमोरा सरहद के पास) कोरबा, तहसील व जिला कोरबा (छ०ग०) को 50 रूपए के भारतीय गैर न्यायिक पत्रक में लेखा का प्रकार मलमा बिक्री इकरारनामा का स्वरुप दिया जाकर 09 फरवरी 2022 को रकम की आवश्यकता पड़ने का हवाला दिया जाकर 8 लाख रूपए नगद में बेच दिया गया।
लचर कानून का लाजवाब फायदा
स्वाभाविक है कि कोई भी नजूल अथवा घांस जमीन कानूनन खरीदी बिक्री नहीं किया जा सकता। जिसका तोड़, हरामखोर (जिसे मुफ्त या हराम की खाने का लत / आदत हो उसे आम बोलचाल में हरामखोर ही कहते हैं। इस विषय पर आदम गोंडवी साहब ने क्या जबरदस्त बात कही है – “जितने भी हरामखोर थे क़ुर्बों जवार में, परधान बनकर आ गए पहली कतार में…) सरीखे पटवारी, तहसीलदार और अन्य लोगों ने निकाल रखा है जिसका फायदा इस खरीदी – बिक्री में उठाया गया है।
दीपक तले अँधेरा !!
बता दें कि उक्त जमीन खरमोरा पक्की सड़क से लगी हुई; नगर निगम की नाक के नीचे, राजस्व अधिकारी की नजर के सामने जहाँ सार्वजानिक हाट – बाज़ार, दशहरा मैदान और तो और इसी स्थान में पटवारी कार्यालय होने के साथ -साथ बेशकीमती शासकीय भूमि है जो घांस मद में दर्ज है से जुड़ी उक्त जमीन की खरीदी-बिक्री का मामला सामने आने से भूमाफियाओं की गिद्ध निगाह पड़ गई है।
दबंगाई का आलम यह कि …
बात सिर्फ खरीदी-बिक्री तक सीमित होती तो मामला दबा भी दिया जाता, मगर उक्त भूमि में क्रेता के द्वारा दो मंजिला पक्का मकान तान दिए जाने से पत्रकार जगत की खोजी निगाह मामले की तह तक जा पहुंची और बात सुर्ख़ियों का रुख अख्तियार कर शासन से जवाब तलब को आतुर है। जाहिर सी बात है; मामला जाँच का विषय है और माननीय जिलाधीश से अपेक्षा भी कि दोषियों को बक्शा ना जाए…