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Chhattisgarh

नक्सल पीड़ितों को मिला नया सहारा — सरकार ने लगाए कृत्रिम पैर

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा की पहल पर बस्तर के छह पीड़ित फिर से खड़े हुए अपने पैरों पर

रायपुर वनोपज संग्रहण या खेती कार्य जैसे अपने दैनिक जीवन के बीच जंगलों से गुजरते समय नक्सलियों द्वारा बिछाए गए आईईडी बमों में घायल होकर कई बस्तरवासी अपने पैर गंवा बैठे थे। ऐसे लोग वर्षों से अपाहिज की दर्दभरी जिंदगी जी रहे थे — आशा लगभग खत्म हो चुकी थी।

मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निर्देश और उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा की पहल पर इन पीड़ितों को अब कृत्रिम पैर का सहारा मिला है। पहले चरण में नक्सल हिंसा प्रभावित छह लोगों को समाज कल्याण विभाग के फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर, माना कैंप रायपुर में कृत्रिम पैर लगाए गए और उन्हें चलने की ट्रेनिंग दी गई।

अपनों के सहारे से अब अपने पैरों पर

आईईडी ब्लास्ट में पैर गंवाने के बाद से दूसरों पर निर्भर इन ग्रामीणों की जिंदगी में अब उम्मीद लौटी है।
कृत्रिम पैर पाकर वे इतने उत्साहित हैं कि स्वयं चलकर उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा के निवास पहुंचे और अपनी खुशी व्यक्त की।

 नक्सलियों द्वारा बिछाए आईईडी में पैर गवाने वाले नक्सल पीड़ितों को मिला कृत्रिम पैर का सम्बलदिल्ली से बस्तर तक – शांति की गुहार

बस्तर क्षेत्र के लगभग 70 नक्सल पीड़ितों ने बीते सितंबर में दिल्ली जाकर जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया था।
उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह और राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात कर अपनी व्यथा सुनाई और बस्तर में स्थायी शांति की मांग की थी। वापसी के बाद उपमुख्यमंत्री श्री शर्मा ने उनसे मुलाकात कर भरोसा दिया था कि सरकार उनकी पुनर्वास में हरसंभव मदद करेगी।

सरकार की पहल से नया जीवन

 नक्सलियों द्वारा बिछाए आईईडी में पैर गवाने वाले नक्सल पीड़ितों को मिला कृत्रिम पैर का सम्बलउपमुख्यमंत्री श्री शर्मा के निर्देशानुसार समाज कल्याण विभाग ने कृत्रिम अंग लगाने की प्रक्रिया शुरू की।
बस्तर से नौ नक्सल पीड़ितों को बुलाया गया, जिनमें से छह — गुड्डू लेकाम, अवलम मारा, सुक्की मड़कम, सोमली खत्री, खैरकम जोगा और राजाराम — को रायपुर में कृत्रिम पैर लगाए गए।

कदमों में फिर लौटी आत्मनिर्भरता

कृत्रिम पैर लगने के बाद ये पीड़ित नई ऊर्जा से भर गए हैं।
उन्होंने कहा कि अब उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं, वे खुद चल-फिर सकते हैं और कुछ नया करने का सोच सकते हैं।
हालांकि नक्सल हिंसा ने जो छीना उसकी भरपाई असंभव है, पर सरकार की संवेदनशील पहल ने उन्हें जीवन की नई राह दी है।

 

 

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