न्यायालय परिसर में बदहाल पार्किंग व्यवस्था।
10 रुपए की पार्किंग शुल्क पर 200 से 250 जुर्माना और शपथ पत्र भी !

रायपुर hct : राजधानी रायपुर के जिला एवं सत्र न्यायालय को जहाँ एक ओर समय की मांग और आवश्यकता को लेकर विस्तारित किया जा रहा है वहीं पार्किंग व्यवस्था की बदहाली को लेकर अब मीडिया की सुर्खियों में अपनी जगह कायम कर न्याय की गुहार लगा रहा है। न्यायालय परिसर से सटे कलेक्ट्रेट स्थित मल्टी लेवल पार्किंग जिसके बनने में लगभग 22 करोड़ से ज्यादा का खर्च न ह बताया जाता है। सर्व सुविधा युक्त उक्त मल्टी लेवल पार्किंग में एक साथ 750 से ज्यादा गाड़ियां पार्किंग की क्षमता होने के बावजूद न्यायालय परिसर में गाड़ियों का खचाखच भरा होना यहाँ की अव्यवस्था की कहानी खुद बयां करती है।
वाहन स्टैंड ठेकेदारों की मनमानी व गुंडागर्दी
वैसे तो पार्किंग के नाम पर वाहन स्टैंड ठेकेदारों की मनमानी व गुंडागर्दी किसी जिला व राज्य की नहीं बल्कि यह एक देशव्यापी समस्या है, फिर भी इससे संबंधित जिम्मेदार लोग चंद ठेकेदारों के गिरफ्त में इन समस्याओं को नजरअंदाज करते। बात रेल्वे स्टेशन की हो, सब्जी मार्केट की, बस स्टैंड की या अन्य किसी शासकीय अशासकीय कार्यालय की, जहाँ ठेकेदार के गुर्गे मनमानी और गुंडागर्दी करते रहें हैं तो अलग बात है, लेकिन बात यदि न्यायालय परिसर की हो और उसका समाधान ना हो यह समझ से परे है।
लगा होता है वाहनों का चारों ओर अंबार
कलेक्ट्रेट मल्टीलेवल पार्किंग बनने के बाद आम जनता जो अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए कलेक्ट्रेट या कोर्ट आती थी, ऐसा लगता था कि उक्त परिसर में ठेकेदारों की मनमर्जी व गुंडागर्दी से निजात मिल जाएगा, परंतु मामला तो और भी संगीन हो चला। कलेक्टर परिसर की पार्किंग व्यवस्था बंद होने से पार्किंग का सारा दबाव न्यायालय परिसर में होने लगा। अब हाल यह है कि न्यायालय परिसर में चारों ओर वाहनों का अंबार लगा होता है। मुख्य मार्ग से लेकर संपूर्ण न्यायालय परिसर में वाहनों की संख्या इतनी भरमार होती है कि अब सारा न्यायालय परिसर वाहन स्टैंड सा प्रतीत होता है।
जिम्मेदार नहीं ले रहा सुध
नवीन न्यायालय भवन के चारो ओर भू-तल पार्किंग और तो और अब फैमिली कोर्ट परिसर भी वाहन स्टैण्ड परिसर में तब्दील होता नजर आ रहा है, और जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी किस प्रकार निभा रहे हैं यह परिसर में देखने से स्वत: ज्ञात होता है। जिला न्यायालय रायपुर में अब लगातार न्यायाधीशों व वकीलों की संख्या में वृद्धि हो रही है, 60 से अधिक न्यायाधीश व वकीलों की संख्या भी चार हजार के करीब होने को है और प्रतिदिन हजारों पक्षकार, फिर भी व्यवस्था जस की तस।
मजे की बात तो यह है कि प्रतिदिन ये सभी न्यायालय परिसर की शानदार पार्किंग व्यवस्था के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी हैं। न्यायालय परिसर के गेट से लेकर अंदर तक ठेकेदार के गुर्गे किस प्रकार न्यायालय परिसर में आने वाले लोगों को इज्जत फरमाते हैं, यह आए दिन देखने को मिल ही जाता है। कलेक्ट्रेट परिसर में जिस प्रकार ठेकेदारों की गुंडागर्दी से आम जनता त्रस्त थी, अब यही हाल न्यायालय परिसर का हो चला है। अधिवक्ता संघ चुनाव के सुर्खियों में रही, समस्या भी न्यायालय परिसर में पार्किंग समस्या रही है।
संघ चुनावों में पार्किंग समस्या रही प्रमुख मुद्दा
विगत कई संघ चुनावों में अ धिकांश उम्मीद्वार ने अपने दावेदारी में पार्किंग समस्या को प्रमुख मुद्दा बताया। चुनाव सम्पन्न होते रहे लेकिन न्यायालय परिसर में पार्किंग की समस्या जस की तस बनी हुई है। पार्किंग की समस्या निरंतर और विकराल होते जा रही है। चिंता का विषय तो यह है कि न्यायालय परिसर के जिम्मेदार लोगों ने भी इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। वहीं ठेकेदार के अधीनस्थ कार्य करने वाले गुर्गो की भी रंगदारी जनसमान्य है जिससे न्यायालय परिसर में आने वाले आम जनता पीड़ित है।
चूँकि यह सब न्यायालय परिसर का मामला है इसलिए आम व्यक्ति इस परेशानी के खिलाफ शिकायत या बोलना नहीं चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोगों ने शिकायतें की लेकिन उनकी शिकायतों पर ठेकेदार या उसके अधिनस्थ लोगों पर क्या कार्रवाई हुई या नहीं हुई, यदि नहीं हुई तो क्यों यह यक्ष प्रश्न है ?
