Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

ConcernNational

एक शहर जहां दस सालों में लगभग 70 हजार कामगारों के साथ लाखों किसानो की जिंदगी बदहाल हो गयी। इतिहास के आईने से बर्बादी की एक झलक।

*रणजीत भोंसले।

इंदौर (मध्यप्रदेश)। शहर में घूमते अचानक सवाल कौंधा कि कभी मिनी बॉम्बे के नाम से जाने जाने वाला शहर आज बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसने क्यो मजबूर हुआ ? अपने इस सवाल का जवाब तलाशते अचानक सामना हुआ एक भयानक सच से जिसके कारण उद्योग और कृषि बेहतरीन संयोजन चलने वाली अर्थव्यवस्था अचानक गर्त में चली गयी वरना आज देश के सर्वसपन्न शहरों में इंदौर का नाम होता एक ऐसी संपन्नता जो गिने-चुने लोगो के किस्मत में ना होकर कामगार और किसान वर्ग की होती मगर सरकारों की असंवेदनशीलता ने पूरे शहर के उस विकास की ही नसबंदी कर दी।
हाँ वो सत्तर के दशक था जब इस शहर की लगभग एक चौथाई जनता और आसपास के लाखों किसान कपड़ा उद्योग से जुड़े थे। कामगारों को लगभग 300 रुपये प्रतिमाह मिलते थे लेकिन उस पैसे में से भी वो काफी कुछ बचा लेते थे उस वक्त कई सरकारी नोकरी में भी काम करने में इतना लाभ और सुविधा नही थी। किसान भी खुश थे शहर की 7 कपड़ा मिलों सहित जिनिंग मिलो में उनकी कपास की फसल अच्छे दामों में बिक जाती थी।
मेरे सवालों का जवाब देते ऐसे ही एक मिल कामगार प्रभुजी कुशवाहा ठंड के मौसम में आलाव तापते अतीत में चले गए। उन्होंने बताया कि मिल में काम सरकारी नौकरी से ज्यादा पसंद की जाती थी। लगभग 70 हजार लोग कभी खुशी से काम करते थे उनके आय से सैकड़ो दुकाने आबाद थी। उद्योग और कृषि का अद्भुत समन्वय था।
एक चौथाई जनता मिलो में काम करने वाली याने वोट बैंक बस राजनैतिक दलों की नजर उस पर पड़ी और वही से शुरुवात हुई कामगारों और किसानों की बर्बादी की दास्तान। मिल मालिक और कामगारों में उस वक्त के सत्ताधारी और विपक्ष का हस्तक्षेप बढ़ना शुरू हुआ और इस राजनीति के रस्साकशी में 80 के दशक से मिलो की उल्टी गिनती शुरू हुई एक-एक कर मिलों में ताले लगने शुरू हुए और 90 के दशक आते-आते लगभग सारी मिले बन्द हो गयी आज के हालात ये की उन 7 मिलो में से एक मिल भी चालू नही है।
इस दौरान 3000 रुपये प्रतिमाह तक पहुँच चुकी तनख्वाह पाने वाले सभी कामगारों के समक्ष रोजीरोटी का संकट सामने आ गया। सरकार सहित विपक्ष ने सिर्फ बाते कि लेकिन कामगारों और किसानों के लिए कुछ भी नही किया अपने हालात से लड़ते हुए लगभग आधे लोग तो इस दुनिया से चले गए।
    एक और विस्मयकारी बात बताते हुए कुशवाहा जी भावुक हो गए कि कोई माने या ना माने पर लगभग 1500 कामगार सहित कई किसानों ने उस वक्त आत्महत्या कर ली जिसका जिक्र किसी सरकारी दस्तावेज में नही। क्योकि काम छीन जाने से फ्रस्टेज हो चुके लोग शराब के नशे, गृहक्लेश आदि के चलते अपनी जीवनलीला समाप्त करने मजबूर हुए।
इतनी बड़ी त्रासदी का जिक्र कही नही हुआ एक कैंसर की भांति धीरे-धीरे इतनी बड़ी संख्या में लोग बर्बादी के कगार पर पहुँच गए। लगभग 65 वर्ष उम्र के पड़ाव पर पहुँच चुके प्रभुजी कुशवाहा ने अपनी नम आंखों राजनैतिक दलों से गुजारिश कि कम से कम आम इंसान और किसान जैसे वर्ग को राजनीति का हिस्सा ना बनाएं इतिहास से कुछ सबक लें। जब-जब इस वर्ग को लेकर राजनैतिक रस्साकशी बढ़ी तब तब जो इस वर्ग के हाथ मे था उससे भी इन्हें हाथ धोना पड़ा है।
कुशवाहा जी की बात सही जान पड़ती है सत्ता हासिल करने की होड़ में इस वर्ग का जमकर प्रयोग किया जाता है पर इतिहास गवाह है जब जब ऐसा हुआ एक पूरी पीढ़ी को दर्द आंसूं और हताशा ही हाथ लगी है चुनाव आयोग या सुप्रीमकोर्ट जैसे उच्च संवैधानिक संस्थाओं पर जनता की नज़र है कि आम कामगार जनता और किसान वर्ग को राजनैतिक छलावे से बचाया जा सके ऐसा कुछ इस देश मे सुनिश्चित किया जावे।
हालांकि व्यवसायिक दृष्टिकोण से आज भी इंदौर का मध्य्प्रदेश में अपना एक अलग स्थान है फिर भी आज जिस स्थान पर है उससे भी कई गुना उन्नत और समृद्ध होता अगर इन मिलों में राजनैतिक हस्तक्षेप नही होता। आज भी वो मिलें आज भी चल रही होती और उनके साथ किसान भी आगे बढ़ते होते जाहिर है अन्य व्यवसाय जिसमे आम लोग सहभागी होते है वो भी इसके साथ आगे बढ़ती होती।
   यहां इस बात का उल्लेख करना इसलिए जरूरी है कि वर्तमान में जिस हिसाब से बेरोजगारी और किसानों के लिए आंसू बहाए जा रहे वो सब इतिहास के उस अध्याय को देख बेमानी और सत्ता तक पहुँचने का एक रास्ता मात्र दिख रही वास्तव में कल भी कामगार और किसान इस देश मे उपेक्षित थे और आज भी महज उनका उपयोग किया जा रहा। पूंजीपतियों का राजनैतिक हस्तक्षेप से ना कल कुछ बिगड़ा था ना आज कुछ बिगड़ेगा। बस इस राजनैतिक नूराकुश्ती की कीमत चुकानी पड़ती है तो सिर्फ आमजनता को और किसानों को यह कटुसत्य है।

(उक्त लेख रणजीत भोंसले जी के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है। वे एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page