गरियाबंद में पीएम आवास के नाम पर रेत उत्खनन का खेल !
शिकायतों के बावजूद कार्रवाई शून्य, सवालों के घेरे में प्रशासन...

गरियाबंद hct : छत्तीसगढ़ में रेत के अवैध उत्खनन पर रोक लगाने के दावे जितने बड़े हैं, ज़मीनी हकीकत उतनी ही उलटी तस्वीर पेश कर रही है। विधानसभा से लेकर सचिवालय तक रेत माफिया पर चर्चा हो चुकी है, मानसून सत्र में मामला गूंज चुका है, स्थगन प्रस्ताव भी आ चुके हैं—लेकिन इसके बावजूद ज़िलों में हालात जस के तस हैं। गरियाबंद इसका ताज़ा उदाहरण बनकर सामने आया है, जहाँ अब बड़े नदी घाट ही नहीं, बल्कि उपनदियाँ भी रेत तस्करों का नया ठिकाना बन चुकी हैं।
हालात यह हैं कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को अब योजनाओं का रूप दे दिया गया है। “प्रधानमंत्री आवास योजना” का नाम लेकर खुलेआम रेत निकाली जा रही है, और यह सब दिनदहाड़े, बिना किसी भय के, मुख्य मार्गों के किनारे चल रहा है। सवाल यह नहीं कि रेत निकल रही है—सवाल यह है कि यह सब किसकी जानकारी और सहमति से हो रहा है।
छोटी नदी, बड़ा खेल
NH-130C (NH-30 का एक शाखा मार्ग) जो अभनपुर से शुरू होकर राजिम, गरियाबंद, देवभोग से ओडिशा के बलदियामाल तक जाता है, इस राजमार्ग पर धवलपुर के पास बहने वाली “झापन नदी” इन दिनों अवैध रेत उत्खनन का ठीहा बन चुकी है। बीते कई दिनों से यहां ट्रैक्टर-ट्रालियों के ज़रिये रेत परिवहन जारी है। स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक यह चोरी-छिपे नहीं, बल्कि खुली दबंगई के साथ किया जा रहा है।
पहले बड़ी नदी घाटों पर रेला हुआ करता था, दबाव बढ़ा, तो अब रेत माफिया छोटी नदियों की ओर रुख कर गए हैं ! नतीजा यह है कि इन जल स्रोतों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, नदी तल गहराता जा रहा है और आसपास के पर्यावरण पर सीधा असर पड़ रहा है।
“पीएम आवास की आड़ में निजी सौदे“
इस अवैध गतिविधि की जानकारी जब ग्राम पंचायत धवलपुर के निर्वाचित प्रतिनिधियों और सचिव से ली गई, तो किसी से भी स्पष्ट जवाब नहीं मिला। लेकिन वहीँ पुल के पास खड़े एक रसूखदार ने दबंगई दिखते हुए हमारे प्रतिनिधि को मोबाइल कैमरे से रेत उत्खनन की तस्वीर लेने पर आपत्ति जताते हुए स्वीकार किया कि उक्त अवैध रेत परिवहन उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है जिसे ‘मैनपुर’ तथा “आसपास के निर्माणाधीन भवनों में खपाया जाएगा, और न सिर्फ वही बल्कि और भी कई लोग है जो प्रधानमंत्री आवास के नाम पर मटेरियल सप्लायर के साठगांठ में अच्छे दामों पर बेच भी रहे है।” यह स्वीकारोक्ति इस बात की ओर इशारा करती है कि योजना का नाम सिर्फ ढाल है, असल मकसद निजी लाभ है।
सूचना के बाद भी खामोशी
इस पूरे मामले की जानकारी मैनपुर अनुविभागीय अधिकारी (रा.) को भी दी गई, जिस पर उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया गया, किंतु ज़मीनी स्तर पर उसका कोई असर दिखाई नहीं दिया। जिससे कार्रवाई केवल औपचारिकता तक सिमटकर रह गई।
हैरानी की बात यह है कि जिले से गुजरने वाली यह राजमार्ग ही प्रमुख मार्ग है; जहाँ से जिलाधीश महोदय सहित अनेक विभागीय अधिकारी सीमांत ‘देवभोग’ क्षेत्र (तहसील) के दौरे पर आते-जाते रहते हैं; और किसी की नज़र न पड़े !
उक्त तमाम बातें महत्वपूर्ण होने के बावजूद; अगर निर्बाध गति से रेत उत्खनन और परिवहन जारी रहता है तो यह मानने के लिए पर्याप्त आधार है कि समस्या महज़ लापरवाही की नहीं, बल्कि किसी गहरी अनदेखी की ओर इशारा करती है।






